मॉनसून के जल्द आने, मांग में सुस्ती और चीन के स्टील (Steel) की कीमतों में कमी से भारतीय इस्पात उद्योग पर दबाव पड़ रहा है। चपटे इस्पात के बेंचमार्क हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) की कीमतें जनवरी में लगभग 46,600 रुपये प्रति टन थीं। लेकिन उसके बाद भारत ने जब आयातित इस्पात पर 12 प्रतिशत का अस्थायी सुरक्षा शुल्क लगा दिया तो कीमतें बढ़ गईं।
बाजार पर नजर रखने वाली कंपनी बिगमिंट के आंकड़ों के अनुसार 29 अप्रैल को एचआरसी का मासिक औसत मूल्य (मुंबई को छोड़कर) 52,900 रुपये प्रति टन था लेकिन 24 जून तक व्यापार-स्तर का मूल्य (वह कीमत जिस पर वितरक डीलर को बेचता है) लगभग 4 प्रतिशत कम हो गया। बिगमिंट ने कहा कि इस्पात वितरकों को कमजोर मांग का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें पूछताछ में कमी तथा पूछताछ के पक्की बिक्री में तब्दील होने की धीमी दर शामिल है।
20 जून को बिगमिंट के आकलन के अनुसार निर्माण और बुनियादी ढांचे में इस्तेमाल लंबे इस्पात के मामले में ब्लास्ट फर्नेस रिबार का व्यापार-स्तर का मूल्य पिछले सप्ताह के मुकाबले प्रति टन 1,300 रुपये प्रति घटकर 51,900 रुपये प्रति टन (मुंबई को छोड़कर) रह गया। परियोजनाओं की श्रेणी में मुंबई में दाम घटकर प्रति टन 51,000 से 51,500 रुपये रह गए और मॉनसून की बारिश के कारण निर्माण गतिविधियों में नरमी और बोली की पेशकश में लगातार असमानता से प्रभावित थे।
मॉनसून में बाजार के कमजोर मनोबल के कारण लंबे इस्पात के दाम कम हैं। वैश्विक कमोडिटी एचआरसी के दामों पर अंतरराष्ट्रीय कीमतों, भू-राजनीतिक चुनौतियों और धीमी मांग का असर है। इस्पात उत्पादकों ने कमजोर कीमतों के कई कारण बताए हैं। आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया (एमएम/एनएस इंडिया) में निदेशक और उपाध्यक्ष (बिक्री और विपणन) रंजन दर ने कहा कि मॉनसून के अलावा अंतर्निहित मांग का माहौल विभिन्न कारकों से आकार लेता है।
उन्होंने कहा, ‘उद्योग का निर्यात सीमित है। इससे घरेलू बाजार में अतिरिक्त सामग्री आ रही है। अमेरिका के टैरिफ कदमों के बाद व्यापार में बदलाव हो रहा है। एक या दो चीनी खेप कम कीमत पर भारत में उतरी हैं और रूस से कुछ बुकिंग हुई है जहां मांग कमजोर है।’
एक अन्य प्रमुख इस्पात उत्पादक ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि नकदी के मसलों और मॉनसून के कारण बुनियादी ढांचा श्रेणी की मांग कमजोर है। यात्री वाहनों की बिक्री कम हो गई है और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं पर मॉनसून के जल्दी आने का असर है। बिगमिंट के आंकड़ों से पता चला कि अप्रैल में भारत की मोटे तौर पर इस्पात खपत 1.093 करोड़ टन थी, जो मार्च के 1.296 करोड़ और फरवरी के 1.129 करोड़ टन से कम रही।