चेन्नई के उद्यमी सी शिवशंकरन के स्वामित्व वाली कंपनियां भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की अगुआई में भारतीय बैंकों के साथ कर्ज निपटान करार पर हस्ताक्षर करने वाली हैं और इससे ये खाते एक बार फिर स्टैंडर्ड बन जाएंगे। शिवा इंडस्ट्रीज ऐंड होल्डिंग्स, विनविंड पावर एनर्जी, हाई-टेक हाउसिंग प्रोजेक्ट्स, स्टर्लिंग एग्रो प्रॉडक्ट्स एसबीआई को निपटान शुल्क के तौर पर 81 करोड़ रुपये चुकाएंगी जबकि उनका बकाया 280 करोड़ रुपये है। इसके तहत लेनदार संपत्तियां व अन्य प्रतिभूतियां निपटान की रकम मिलने के बाद मुक्त कर देंगे।
शिवा समूह की तरफ से बैंकों के साथ यह दूसरा निपटान है। इससे पहले समूह इस महीने आईएलऐंडएफएस के बकाए का भुगतान कर चुका है। इस साल जुलाई में आईएलऐंडएफएस ने समूह की एक अन्य फर्म शिवा शेल्टर्स ऐंड कंस्ट्रक्शन की तरफ से कर्ज पुनर्गठन प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। शिवा शेल्टर्स ने 2 जनवरी को 70 करोड़ रुपये चुकाए जबकि कुल बकाया 76.8 करोड़ रुपये था।
आईएलऐंडएफएस की सहायक आईफिन ने 175 करोड़ रुपये की आवंटित रकम में से कंपनी को कर्ज के तौर पर 50 करोड़ रुपये वितरित किए, जिसके लिए चेन्नई की 17 एकड़ जमीन जमानत के तौर पर पंजीकृत की गई थी। 30 मई 2019 को यह कर्ज एनपीए के तौर पर वर्गीकृत हो गया।
शिवा शेल्टर्स की तरफ से निपटान की रकम दिए जाने के बाद जमानत वाली जमीन मुक्त कर दी जाएगी। बैंकिंग सूत्रों ने कहा कि बैंक के साथ निपटान में तेजी आई है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल बैंकों को शिवा इंडस्ट्रीज के प्रवर्तकों की तरक से निपटान की हुई पेशकश के साथ आगे बढ़ने की इजाजत दी थी। शिवा इंडस्ट्रीज ने 328 करोड़ रुपये की पेशकश की थी जबकि उनके ऊपर 5,000 करोड़ रुपये बकाया है।
दिवालिया संहिता की धारा 12 ए के तहत निपटान की इजाजत है, अगर लेनदारों की समिति के 90 फीसदी सदस्य इस पर सहमत हों। एसबीआई पहले इस निपटान प्रक्रिया का हिस्सा नहीं था, लेकिन बाद में शामिल हो गया। अदालत ने कहा, जब 90 फीसदी या इससे ज्यादा लेनदारों ने पाया कि निपटान की इजाजत हितधारकों के हित में होगी और दिवालिया प्रक्रिया वापस ले ली तो अपील प्राधिकरण इस पर हुई अपील पर बैठ नहीं सकता।
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शिवा इंडस्ट्रीज के मामले में सीओसी ने प्रवर्तक वल्लाल आरसीके (शिवशंकरन के पिता) की निपटान योजना 94.2 फीसदी वोट के साथ मंजूर कर ली, लेकिन एनसीएलटी ने इसे ठुकरा दिया और कंपनी को परिसमापन में भेज दिया। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करते हुए लेनदारों के हक में फैसला दिया।