हम पिछले कुछ सप्ताह से इंतजार कर रहे हैं और बारीकी से नजर रखे हुए हैं। एक बार घोषणा (शुल्क के संबंध में) हो जाए तो शायद उद्योग की बैठकें होंगी। अमेरिकी बाजार में निर्यात करने वाली एक अग्रणी फार्मा कंपनी के प्रबंध निदेशक ने यह बात कही। उन्होंने विभिन्न देशों की कई वस्तुओं की श्रेणियों पर अमेरिकी शुल्क के ऐलान से एक दिन पहले भारतीय फार्मा कंपनी जगत के माहौल के बारे में बताया।
फार्मास्युटिकल उत्पाद अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के निशाने पर हैं, जिन्होंने संकेत दिया है कि इस श्रेणी पर 25 प्रतिशत तक शुल्क लगाया जा सकता है। भारत दवाओं के आयात पर पांच से 10 प्रतिशत का शुल्क लगाता है। इसलिए जवाबी शुल्क के मामले में भारतीय फार्मा निर्यात पर शुल्क की मात्रा अभी स्पष्ट नहीं है। दूसरी ओर भारतीय फार्मा निर्यातक अमेरिका में इस्तेमाल जेनेरिक दवाओं का 47 प्रतिशत आपूर्ति करते हैं।
फार्मा उद्योग पिछले कुछ समय से ‘हालात के मुताबिक योजना’ पर चल रहा है। गुजरात की एक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। जब तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो जाती, तब तक कोई कारोबारी या रणनीतिक फैसला नहीं किया जा सकता है। लेकिन मूल्य-श्रृंखला इस कदम के अनुरूप कैसी होगीं, हम इसके तरीकों को समझने की कोशिश कर रहे हैं।’
उन्होंने बताया कि अगर कोई भारतीय निर्यातक किसी वितरक को एक डॉलर की दर पर दवा बेचता है तो जब तक वह फार्मेसियों तक पहुंचती है, तो उसकी कीमत पहले ही 10 डॉलर हो चुकी होती है और ग्राहक के लिए अंतिम बिक्री मूल्य तो इससे भी ज्यादा होता है। अधिकारी ने बताया, ‘वितरक मार्जिन बहुत ज्यादा है और क्या अमेरिका इसे कम करने पर विचार करेगा, यह ऐसी बात है जो हमें देखनी होगी।’
स्थानीय उद्योग ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि वह शुल्क को अमेरिकी खरीदार पर डालेगा या नहीं। यह फैसला इस वृद्धि की मात्रा पर निर्भर करेगा। उद्योग के एक अन्य दिग्गज ने कहा कि सभी निर्यातक शायद इस संबंध में एकराय न हों। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि लोग पहले अपना खुद का कारोबार सुरक्षित करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा, ‘हर कोई अपने लिए अधिकतम मूल्य हासिल करने का प्रयास करेगा।’ दक्षिण के एक राज्य के अन्य प्रमुख निर्यातक कंपनी के प्रबंध निदेशक ने कहा कि काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि बड़ी कंपनियां इसमें क्या भूमिका निभाती हैं।