भारतीय रिफाइनरों द्वारा तीन महीने तक रिकॉर्ड खरीद के बाद अगस्त में रूस से कच्चे तेल की आवक जुलाई के मुकाबले 14 फीसदी कम रही। उद्योग सूत्रों और आवक के आंकड़ों के अनुसार, रूस के व्यापारियों द्वारा अधिक छूट देने से इनकार किए जाने के कारण कच्चे तेल पर बचत रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गई है।
दूसरी ओर, इराक ने अपनी कम कीमतों के कारण भारत में अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाई है। रूस से कच्चे तेल की आवक बढ़ने से पहले इराक भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता था।
बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा किए गए आयात आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, भारत में कच्चे तेल के कुल आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी भी जुलाई के मुकाबले अगस्त में 3 फीसदी से अधिक घटकर 40 फीसदी के नीचे आ गई। जबकि इस दौरान इराक की हिस्सेदारी में करीब 2.4 फीसदी की वृद्धि हुई।
वंदा इनसाइट्स की संस्थापक वंदना हरि ने कहा, ‘मैं रूस की हिस्सेदारी को 43 फीसदी से घटकर 40 फीसदी तक आने को पिछले महीनों के दौरान दिखने वाले उतार-चढ़ाव के दायरे में ही मानूंगी और इसलिए यह कोई खास मायने नहीं रखता है।’ उन्होंने कहा, ‘रूस से कच्चे तेल की लगभग पूरी खरीद हाजिर आधार पर होती है। ऐसे में छूट यह निर्धारित करती है कि भारतीय रिफाइनर कितनी मात्रा में खरीदारी करेंगे।’
रिलायंस इंडस्ट्रीज और इंडियन ऑयल के नेतृत्व में भारतीय रिफाइनरों ने अगस्त में रशियन ग्रेड कच्चे तेल का 18 लाख बैरल प्रतिदिन आयात है। जुलाई में यह आंकड़ा 21 लाख बैरल प्रतिदिन और एक साल पहले की समान अवधि में यह आंकड़ा 15.4 लाख बैरल प्रतिदिन था। पेरिस की मार्केट इंटेलिजेंस एजेंसी केप्लर से बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा प्राप्त आंकड़ों से यह खुलासा हुआ है।
अगस्त में कच्चे तेल का कुल आयात जुलाई के मुकाबले करीब 6.6 फीसदी घटकर 45 लाख बैरल प्रतिदिन रह गया। इस दौरान रूस से आवक में गिरावट दोगुनी रही जिससे भारत के कुल आयात में रूस की हिस्सेदारी 43 फीसदी से घटकर 40 फीसदी रह गई। उद्योग के अधिकारियों ने बताया कि रूस की घरेलू रिफाइनिंग कंपनियों द्वारा खपत बढ़ी है और इसलिए अगस्त में निर्यात के लिए कम तेल बचा।
इराक से आयातित कच्चे तेल की हिस्सेदारी अगस्त में बढ़कर करीब 19 फीसदी हो गई जो जुलाई में करीब 16 फीसदी थी। भारतीय खरीदारों को की गई आपूर्ति के आधार पर इराकी कच्चे तेल की कीमतें कम होती जा रही हैं। मगर सल्फर की मात्रा के लिहाज से इराकी ग्रेड की गुणवत्ता रूसी ग्रेड के मुकाबले कमतर है। हालांकि भारतीय रिफाइनरियों के लिए इराकी ग्रेड अधिक उपयुक्त है।
भारतीय सीमाशुल्क आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल से जून की अवधि में इराकी तेल की कीमत 597 डॉलर प्रति टन और रूसी तेल की कीमत 609 डॉलर प्रति टन थी। इस दौरान रूसी तेल पर बचत करीब 44 करोड़ डॉलर पर रिकॉर्ड निचले स्तर तक घट गई। अगस्त में सऊदी अरब से भारत को हुई आपूर्ति में मुकाबले 17 फीसदी और पिछले साल के मुकाबले एक तिहाई की गिरावट आई। उन्होंने कहा कि कीमतों में तेजी के कारण खरीदार दूर रहे। उधर, अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद अगस्त में जुलाई के मुकाबले 41 फीसदी बढ़कर 35 लाख बैरल प्रति दिन हो गया।