देश में फर्टिलिटी क्लीनिक (प्रजनन संबंधी) बाजार में बड़े पैमाने पर विलय-अधिग्रहण के जरिये कुछ बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं क्योंकि केंद्र सरकार तेजी से बढ़ते इस क्षेत्र को नियमन के दायरे में लाने का प्रयास भी शुरू कर रही है। महानगरों में, हर छह जोड़ों में से एक बांझपन से प्रभावित होता है और इसके चलते देश भर में फर्टिलिटी क्लीनिक खुल रहे हैं।
इन क्लीनिक में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) की सुविधा दी जाती है जिसकी लागत लगभग 1.7 से लेकर 2 लाख रुपये तक है और इसके अलावा नौ महीने की गर्भावस्था अवधि के दौरान 1-1.5 लाख रुपये की और आवश्यकता पड़ती है।
देश में एक वर्ष में 200,000-250,000 से अधिक आईवीएफ चक्र होते हैं। उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि फर्टिलिटी क्लीनिक की बढ़ती मांग से इस क्षेत्र की विलय एवं अधिग्रहण (एमऐंडए) गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है।
उनके अनुसार, संगठित खिलाड़ियों और मॉम-ऐंड-पॉप शॉप के बीच अधिक साझेदारी बढ़ रही है। वेंचर इंटेलिजेंस के आंकड़ों से पता चलता है कि 2018 से अब तक, इस सेगमेंट में पहले से ही प्रमुख प्राइवेट इक्विटी (पीई) खिलाड़ियों और वेंचर कैपिटलिस्ट (वीसी) से 31.8 करोड़ डॉलर का निवेश देखा गया है।
एक अंतर्राष्ट्रीय निवेश कंपनी, वर्लइन्वेस्ट ने पहले भारत में वेकफिट, पर्पल, एपिगेमिया जैसे कुछ स्टार्ट-अप में निवेश करते हुए भारत के स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में अपना पहला निवेश किया था। इसने इस महीने की शुरुआत में फर्टी9 फर्टिलिटी सेंटर में नियंत्रक हिस्सेदारी हासिल की थी।
फर्टी9 फर्टिलिटी सेंटर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और कार्यकारी निदेशक विनेश गढिया ने कहा, ‘भारतीय आईवीएफ श्रेणी वृद्धि की राह पर अग्रसर है जिसके 2026 तक 1.5 अरब डॉलर से अधिक के स्तर पर पहुंचने की उम्मीद है। यह सालाना 15 प्रतिशत चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है। इस वृद्धि को और परिपक्व बनाने के लिए इस क्षेत्र में मजबूती लाना अहम होगा।’
उन्होंने कहा कि यह आईवीएफ क्लीनिकों में निवेश के लिए एक उपयुक्त समय है क्योंकि जनसांख्यिकीय स्तर के लाभ इस वक्त शीर्ष स्तर पर दिख रहे हैं और प्रतिभाशाली लोगों की भी कमी नहीं है। गढि़या ने कहा, ‘नियमों के लागू होने के साथ ही इस क्षेत्र में एकीकरण शुरू हो गया है और वैश्विक निवेशक भारत को लेकर आशान्वित हैं।’ इस सेगमेंट की प्रमुख कंपनियों की फंडिंग पहले से ही पीई के जरिये हुई है और वे विभिन्न क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी का विस्तार करने की योजना बना रही हैं।
टीए एसोसिएट्स के समर्थन से चलने वाले इंदिरा आईवीएफ के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक (एमडी) नीतिज मर्दिया ने कहा कि इसके 50 प्रतिशत से अधिक केंद्र अब टीयर2 और टीयर3 शहरों में हैं। उन्होंने कहा, ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार, हर छह में से एक दंपति यहां बांझपन से पीड़ित है। यह ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी समस्या भी है।’
करीब 6,000 करोड़ रुपये के इस बाजार में संगठित श्रेणी की हिस्सेदारी अब 17-18 प्रतिशत है और यह श्रेणी 15-20 प्रतिशत की दर से तेजी से बढ़ रही है। वहीं कुल उद्योग में एक डॉक्टर वाले क्लिनिक, असंगठित खिलाड़ी और संगठित श्रृंखला शामिल हैं और यह उद्योग 12-15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
मर्दिया ने कहा, ‘हमने साझेदारी के लिए 600 से अधिक क्लीनिकों की पहचान की है और हम उनमें से 70-80 के संपर्क में हैं। हमें उम्मीद है कि इस वित्तीय वर्ष में 20 क्लीनिक और अगले पांच वर्षों में उन क्षेत्रों में लगभग 150 क्लीनिक से जुड़ेंगे जहां हम मौजूद नहीं हैं। यह विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में है, और बाद में हम पूर्वोत्तर की ओर बढ़ेंगे।’
उन्होंने कहा कि उन्हें इंदिरा आईवीएफ में 20-25 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद है। वहीं इंडिया आईवीएफ ने वित्त वर्ष 2023 के दौरान 1,205 करोड़ रुपये का कारोबार किया, जिसकी एबिटा मार्जिन 30-35 प्रतिशत थी।
इसी तरह नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी के सीईओ शोभित अग्रवाल ने कहा कि वह भी विभिन्न क्षेत्रों में अपने विस्तार की योजना बना रहे हैं। अग्रवाल ने कहा, ‘इससे पहले, आईवीएफ के लिए लोग किसी खास मशहूर केंद्र में जाते थे या अक्सर दूसरे शहर में अपना इलाज पूरा करके फिर वापस लौट आते थे।
अब इस इलाज की मांग करने वाले दंपती की बढ़ती संख्या के साथ विभिन्न क्षेत्रों में इसका विस्तार करना महत्वपूर्ण हो गया है।’ टीजीपी ग्रोथ के समर्थन से चल रही नोवा आईवीएफ, स्त्री रोग विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम कर रही है जो किसी मरीज को नोवा के सेंटर में भेजे जाने से पहले ही पहले चरण का इलाज करती हैं।
अग्रवाल ने कहा कि कंपनी कई बीमा कंपनियों और कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है ताकि बांझपन के इलाज को जीवनशैली से जुड़ी बीमारी के इलाज के रूप में शामिल किया जा सके। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस तेजी से बढ़ते सेगमेंट पर लगाम लगाने के लिए सहायक प्रजनन तकनीकों (एआरटी) के नियमों को सख्त बनाया है। इस तरह के कदम से संगठित खिलाड़ियों को फायदा मिलने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में अधिक साझेदारी और अधिग्रहण किए जाएंगे। इससे बेहतर गुणवत्ता और अनुपालन सुनिश्चित होगा।
साथ ही अग्रवाल ने कहा कि सरकार अब इस क्षेत्र को नियमन के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है जो सही दिशा में उठाया जाने वाला कदम है। उन्होंने महसूस किया कि क्रियान्वयन में कुछ समय लगेगा, क्योंकि शुक्राणु दाताओं की कोई राष्ट्रीय पंजी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यों को फर्टिलिटी क्लीनिकों की निगरानी के लिए तंत्र को और मजबूत करने और निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता होगी।