सेफ इन इंडिया फाउंडेशन (एसआईआईएफ) की शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वाहन उद्योग में शिक्षित और अधिक वेतन वाले कामगारों के मुकाबले कम पढ़े लिखे और कम कमाने वाले कामगारों के चोटिल होने का खतरा अधिक रहता है। क्रश्ड 2024 रिपोर्ट भारतीय वाहन उद्योग में श्रमिक सुरक्षा की स्थिति पर किया गया छठा सालाना अध्ययन है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हर महीने 8 हजार रुपये से कम कमाने वाली श्रेणी के कामगारों के किसी हादसे में अंगुलियां गंवाने की दर औसतन 2.27 है। इसके मुकाबले 20 हजार रुपये से ज्यादा कमाने वाले कामगार में यह औसतन 1.54 है। इसके अलावा, पांचवीं कक्षा (प्राथमिक शिक्षा) से कम पढ़ाई करने वाले कामगारों में अंगुली खोने की दर औसतन 2.23 है जबकि डिप्लोमाधारक कामगारों में यह औसतन 1.72 हैं।
अंगुली में चोट लगने वाले प्रति चोटिल कामगारों ने औसतन दो (1.94) अंगुलियां गंवाई और इसका सीधा संबंध उनकी आय और दुर्घटना की गंभीरता से रहता है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वेतन और शिक्षा जितनी कम रहती है दुर्घटना में अंगुलियां खोने का डर उतना ही अधिक रहता है, क्योंकि कम वेतन वाले कामगारों को अवैध तरीके से मशीन चलाने के काम के लिए रखा जाता है।’
ऑटोमोटिव स्लिकल डेवलपमेंट काउंसिल ने इसे कौशल रोजगार मानते हुए प्रेस चलाने वालों के लिए कम से कम 8वीं कक्षा तक की शिक्षा होना अनिवार्य करने का सुझाव दिया है। इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि श्रमिकों और उनके पात्र आश्रितों को प्राथमिक और अन्य इलाज की सुविधा देने और असाध्य रोग होने, चोटिल होने, बेरोजगारी पर, बच्चों के जन्म पर और मृत्यु पर मुआवजा देने वाले ईएसआईसी का ई-पहचान पत्र अधिकतर श्रमिकों को हादसे के बाद दिया गया, जबकि ईएसआईसी नियमों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उन्हें यह कार्ड नियुक्ति वाले दिन ही मिलनी चाहिए थी।
इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब वित्तीय स्थिति वाली महिलाओं पर नियोक्ता पावर मशीन चलाने का दबाव डालते हैं और कुछ कारखानों में तो पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ही मशीन चलाती हैं। हालांकि, वे इस नौकरी के लिए पुरुषों के मुकाबले कम वेतन पाती हैं।