भारत की वृद्धि में सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में ऋण तक पहुंच, औपचारिकीकरण और रोजगार के लिए पहल की कवायद के बावजूद अर्थव्यवस्था में उनकी हिस्सेदारी स्थिर रही है।
एमएसएमई मंत्रालय ने 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में इस सेक्टर का योगदान बढ़ाकर 50 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण उद्योगों पर पड़ने वाले बुरे असर के कारण यह समय-सीमा चूकने के आसार हैं। वित्त वर्ष 2015 में जीडीपी में एमएसएमई की हिस्सेदारी 32.2 फीसदी थी, जो वित्त वर्ष 20 (महामारी से पहले के स्तर) में घटकर 30.5 फीसदी रह गई।
महामारी के दौरान वित्त वर्ष 2021 में यह और गिरकर 27.3 फीसदी पर आ गई और वित्त वर्ष 2023 में 30.1 फीसदी पर पहुंच गई, जो महामारी से पहले के स्तर से थोड़ा कम है। महामारी से पहले और बाद में आर्थिक क्षेत्रों के प्रदर्शन की तुलना में जीडीपी में एमएसएमई की हिस्सेदारी में बदलाव बहुत कम है। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की स्थिति तो एमएसएमई से भी खराब है।
वहीं दूसरी तरफ, देश के सभी सूचीबद्ध उद्यमों का कॉरपोरेट मुनाफा और जीडीपी का अनुपात वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 5.2 फीसदी पर पहुंच गया, जो 2011 के बाद का शीर्ष स्तर है। यह वित्त वर्ष 2020 में 1.7 फीसदी था। वित्त वर्ष 2021 से वित्त वर्ष 2024 के दौरान निफ्टी 500 फर्मों का कर बाद मुनाफा (पीएटी) 34.5 फीसदी संयुक्त सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है, जबकि नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर इस दौरान 10.1 प्रतिशत रही है।
कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों की जीडीपी में हिस्सेदारी महामारी के दौरान बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में करीब 19 फीसदी हो गई थी, जो वित्त वर्ष 2024 में सुस्त हो कर 16 फीसदी रह गई। यह अभी भी वित्त वर्ष 2020 के महामारी के पूर्व के स्तर 16.8 फीसदी की तुलना में कम है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा एमएसएमई को दिया गया ऋण, गैर-खाद्य ऋण के अनुपात में घट रहा है।