देश में बैंकों को विलय और अधिग्रहण (एमऐंडए) के लिए धन मुहैया कराने की अनुमति देने के प्रस्तावित कदम को आसान बनाने के लिए ‘संवेदनशील क्षेत्रों’ में बैंकों के कर्ज की नीति पर फिर से विचार करने की जरूरत पड़ सकती है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पूंजी बाजारों, रियल एस्टेट और जिंसों को इससे जुड़े जोखिमों और संपत्ति की कीमत में उतार चढ़ाव को देखते हुए इन्हें पूंजी बाजार के रूप में परिभाषित किया है।
इस समय बैंकों द्वारा किसी वित्त वर्ष में संवेदनशील क्षेत्र को दिया गया कुल कर्ज, उस बैंक में वित्त वर्ष के पहले हुए कुल जमा का 5 प्रतिशत तय किया गया है। रिजर्व बैंक की ‘रिपोर्ट ऑन ट्रेंड ऐंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन इंडिया 2023-24’के मुताबिक वित्त वर्ष 2024 में संवेदनशील क्षेत्रों में बैंकों का कुल कर्ज 46.62 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो उनके कुल कर्ज और अग्रिम का 27.2 प्रतिशत है।
वित्त वर्ष 2023 की तुलना में इसमें 34.1 प्रतिशत वृद्धि हुई है। वरिष्ठ बैंकरों ने कहा कि इस क्षेत्र में बैंकों के उल्लेखनीय कर्ज को देखते हुए विलय व अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराना मौजूदा तय सीमा में मुश्किल होगा। अगर संवेदनशील क्षेत्रों में पूंजी बाजार उपक्षेत्र को ज्यादा महत्त्व दिया जाए, तब भी संभवतः यह अपर्याप्त होगा।
इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के माध्यम से इन मसलों को बैंकिंग नियामक के समक्ष उठाया जा सकता है। रिजर्व बैंक द्वारा पिछले सप्ताह हिस्सेदारों की प्रतिक्रिया के लिए जारी मसौदे में वाणिज्यिक बैंकों के पूंजी बाजार जोखिम (सीएमई) पर संवेदनशील क्षेत्र के जोखिमों का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।
मौजूदा मानदंडों के तहत बैंकों को विलय और अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने की अनुमति नहीं है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) ऐसा कर सकती हैं, भले ही इसके लिए उन्हें बैंक से कर्ज लेना पड़े। यह बैंकों द्वारा विलय और अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने जैसा ही है।
बहरहाल विदेशी बैंकों को विलय और अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने की अनुमति होती है और वे अपने विदेशी कार्यालयों के माध्यम से इसके लिए ऋण दे सकते हैं। एक अन्य मसला दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (2016) को लेकर है, जिसमें बैंक कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के माध्यम से अधिग्रहण के लिए धन देते हैं। ऐसा इसलिए है कि सीआरआईपी के तहत अधिग्रहण में बैंक द्वारा दिए गए धन का इस्तेमाल हिस्सेदारी खरीदने के लिए नहीं होता है बल्कि कंपनी के मौजूदा कर्जदाता बैंकों के ऋण भुगतान के लिए होता है।