GST के रिकॉर्ड संग्रह से राजस्व विभाग गदगद है तो वहीं कपड़ा कारोबारियों को डर सता रहा है कि कहीं जीएसटी की दरों में बढ़ोतरी न कर दी जाए। जीएसटी दरों पर चल रही अटकलों और कारोबारियों की आशंका पर विराम लगाते हुए सीजीएसटी आयुक्त ने व्यापारियों को भरोसा दिलाया कि सरकार कपड़ा उद्योग की परेशानियों को समझती है और इसके सरलीकरण के प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिए जीएसटी कमेटी में कपड़ा कारोबारियों को भी शामिल किया जाएगा।
कपड़ा कारोबारियों की संस्था भारत मर्चेंट्स चैम्बर के 64वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में उद्योग जगत के लोगों को संबोधित करते हुए मुंबई के सीजीएसटी चीफ कमिश्नर डॉ. डी के श्रीनिवास ने कहा कि सरकार कपड़ा उद्योग की परेशानियों को बहुत अच्छे से समझती है। वह कपड़ा उद्योग में आने वाली कठिनाइयों से भी परिचित है। सरकार भी जीएसटी का सरलीकरण चाहती है। सीजीएसटी चीफ कमिश्नर के नाते इस बात की पुरजोर कोशिश करेंगे कि कपड़ा उद्योग की आवाज सरकार तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि सरकार उद्योग की बात अवश्य सुनेगी और उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा।
कपड़ा बाजार में जीएसटी को लेकर अटकलें तेज है कि सरकार एक बार फिर से जीएसटी दरों में बढ़ोतरी करने वाली है। इसी आशंका को व्यक्त करते हुए भारत मर्चेंट्स चैम्बर के अध्यक्ष विजय लोहिया ने कहा कि कपड़े पर जीएसटी की दर 5 फीसदी ही रखी जाए, इसकी दर को बदला ना जाए। पिछले साल जीएसटी परिषद ने कपड़े पर जीएसटी की दर 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी करने का प्रस्ताव किया था, जिसे उद्योग के कड़े विरोध के कारण स्थगित किया गया। अगर भविष्य में कपड़े पर जीएसटी बढ़ाई गई तो उद्योग पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जीएसटी रिफंड में देरी व आईटीसी -04 की अनिवार्यता को समाप्त किया जाए।
जीएसटी रिफंड में देरी पर कारोबारियों की तरफ से उठाए जा रहे सवालों पर डॉ. डी के श्रीनिवास ने कहा कि अगर किसी का भी रिफंड बकाया है तो उसकी सूची बनाकर उनके कार्यालय में भेजी जाए, जिसे निजी तौर पर देख कर व्यापारियों को रिफंड नियम से दिलवाएंगे। वह चैम्बर के प्रतिनिधि को भी एडवाइजरी कमेटी में प्रतिनिधित्व दिलाएंगे जिससे व्यापारियों की रोजमर्रा की दिक्कतों का निपटारा हो सके। श्रीनिवास के अलावा सीजीएसटी के प्रिंसिपल कमिश्नर शम्भूनाथ व कमिश्नर धीरेंद्र लाल भी मौजूद थे।
थोक कारोबारी राजीव सिंगल के अनुसार कपड़ा कारोबारी जीएसटी कोड के जंजाल में उलझे हुए हैं। सभी तरह के कपड़े (फेब्रिक) पर पांच फीसदी की दर से जीएसटी लागू है। व्यापारी परेशान हैं कि उन्हें टैक्स नहीं, बल्कि बिल बनाना और अकाउंटिंग का काम महंगा पड़ रहा है। दरअसल जीएसटी प्रणाली के तहत कपड़ों पर किस्म के अनुसार अलग-अलग कोड (एचएसएन) निर्धारित कर दिया गया है। बिक्री के बिल के साथ व्यापारियों को उसका एचएसएन कोड भी लिखना पड़ रहा है। व्यापारी परेशान हैं क्योंकि ढेर सारे कोड में उलझकर थोड़ी सी गलती उन्हें जीएसटी की नजर में दोषी बना देगी। ज्यादा कोड होने से गलती की आशंका लगातार बनी रहती है जिसको सरल करने की जरूरत है।
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चैम्बर के उपाध्यक्ष नरेंद्र पोद्दार ने कहा कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मंदी के बादल मंडरा रहे हैं जबकि हमारे यहां पिछले दस महीने से लगातार जीएसटी संग्रह बढ़ रहा है। ऐसे में सरकार को भी उद्योग की मदद करनी चाहिए जिससे जीएसटी में वृद्धि जारी रहे। कारोबारियों की उलझनों को दूर करने के लिए स्पष्टता और सरलीकरण जरूरी है। कारोबारियों ने वित्त मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि दिसंबर 2022 के दौरान एकत्रित सकल जीएसटी राजस्व 1,49,507 करोड़ रुपये है। इसमें सीजीएसटी 26,711 करोड़ रुपये, एसजीएसटी 33,357 करोड़ रुपये, आईजीएसटी 78,434 करोड़ रुपये (वस्तुओं के आयात पर जमा किए गए 40,263 करोड़ रुपये सहित) और उपकर 11,005 करोड़ रुपये (वस्तुओं के आयात पर जमा किए गए 850 करोड़ रुपये सहित) शामिल हैं।