केंद्र सरकार की हिंदुस्तान जिंक में शेष हिस्सेदारी बेचने की योजना अधर में लटक सकती है। वेदांत के कंपनी के 2.98 अरब डॉलर की जस्ता संपत्ति के प्रस्तावित अधिग्रहण का विरोध हो रहा है। केंद्र ने मूल्यांकन और संबंधित पक्ष से लेन-देन के आधार पर विरोध किया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस हालिया घटनाक्रम के कारण जारी विनिवेश योजना पर असर पड़ सकता है। इस मुद्दे के कारण निवेशकों में अनिश्चितता का भाव पैदा हो गया है और वे हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) में साझेदारी लेने में सावधानी बरतेंगे।
सरकार की योजना इस वित्त वर्ष में एचजेडएल में अपनी हिस्सेदारी बेचने की थी। यदि सरकार ऐसा कर पाती तो सरकार वित्त वर्ष 23 के लिए पुन: संशोधित लक्ष्य 50,000 करोड़ रुपये के लक्ष्य को हासिल कर लेती। शेयर के दाम के मुताबिक सरकार 35,000 से 40,000 करोड़ रुपये प्राप्त कर सकती थी। एचजेडएल में सरकारी की हिस्सेदारी 29.53 फीसदी थी और इस कंपनी में सबसे बड़ी साझेदार वेदांत है। सरकार की योजना इस कंपनी में बचे हुए शेयरों को हिस्सों में खुले बाजार में बेचने की थी। सरकार ने अपने हिस्से के विनिवेश के लिए पांच वाणिज्यिक बैंकों को नियुक्त किया है। अधिकारी ने बताया, ‘अब तक रोड शो शुरू हो चुका होता लेकिन हमने इसे कुछ समय के लिए निलंबित करने का फैसला किया।’ खुले बाजार में हर बार में बेचे जाने वाली हिस्सेदारी का आकार भी अंतिम रूप से तय नहीं हुआ।
इस मतभेद के बीच सरकार ने कहा कि वह लेन-देन का विरोध करना जारी रखेगी और कानूनी विकल्पों को भी तलाश करेगी। सरकार चाहती है कि एचजेडएल खदानों का अधिग्रहण करने के लिए नकदी रहित तरीकों को तलाशे। अधिकारी ने कहा कि इस मामले में कई स्तरों पर सूचना की कमी थी। जैसे यह विश्लेषण नहीं किया गया था कि प्रस्तावित लेन-देन से कंपनी और उसके शेयर धारकों के शेयर के मूल्य निर्धारण में बढ़ोतरी हुई थी। उन्होंने कहा कि वे जिस मूल्य व मूल्य निर्धारण पर पहुंचे थे, वह भी स्पष्ट नहीं था। उन्होंने कहा कि ऐसे किसी भी लेन-देन को अधिग्रहण करने वाले और सार्वजनिक शेयर धारकों के हितों का समुचित ढंग से संतुलन स्थापित करना चाहिए। इसके अलावा ज्यादा पारदर्शिता भी अपनाई जानी चाहिए।
खनन मंत्रालय ने एचजेडएल को भेजे पत्र में कहा था कि यह सौदा संबंधित पक्ष के लेन-देन से संबंधित था और सरकार अपनी असहमति दोहराना चाहेगी। एचजेडएल ने बताया कि कंपनी के निदेशक मंडल की बैठक के समक्ष मंत्रालय का यह पत्र रखा जाएगा। इस बारे में स्वीकृति के लिए साझेदारों की बैठक बुलाई जानी थी। अधिकारी ने बताया, ‘बैठक में अल्पांश शेयरधारकों में बहुसंख्यक ने सौदे के खिलाफ मतदान किया था। इस क्रम में 36 फीसदी अल्पांश शेयरधारकों में से 29.5 ने खिलाफ मतदान किया था।’
संबंधित पक्ष लेन-देन के सौदे दो कंपनियों के बीच होते हैं। इसके तहत एक ही समूह की दोनों कंपनियां हो सकती हैं या एक कंपनी के प्रवर्तक समूह का अन्य में खासतौर पर रुचि हो। नियामक मानदंडों के अनुसार पक्ष से संबंधित लेन-देन को अल्पांश शेयरधारकों से स्वीकृति लेने की जरूरत होती है। ऐसे प्रस्ताव में प्रर्वतक समूह को वोट देने का अधिकार नहीं होता है। सरकार ने 2002 में एचजेडएल की 26 फीसदी हिस्सेदारी अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाले समूह को बेच दी थी।