निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावी बॉन्डों के खरीदारों और उन्हें भुनाने वालों की सूची जारी किए जाने के एक दिन बाद आज भारतीय कंपनी जगत ने इस पर दोटूक प्रतिक्रिया दी। कई कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि राजनीति दल चुनावों पर जितना खर्च करते हैं, उसका बेहद मामूली हिस्सा बॉन्डों से जुटाया गया है।
कंपनी जगत यही मानता है कि इस तरह के आंकड़े ‘गुमनाम’ रहने चाहिए थे। एक कंपनी के वरिष्ठ कार्याधिकारी ने कहा कि चुनावी बॉन्ड की गोपनीयता सरकारी नीति का हिस्सा है और लोगों ने इसका पालन किया है। कंपनियों को इसके लिए ‘पूछताछ’ के झंझट में डालना उचित नहीं है।
हालांकि बड़े कारोबारी घराने इस मसले पर कुछ नहीं बोले मगर कंपनियों के कार्याधिकारियों ने कहा कि देश में चुनावी चंदा बड़ी समस्या बनी हुई है।
एक कार्याधिकारी (CEO) ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘भारत में अक्सर चुनाव होते रहते हैं और यह कभी पता नहीं चलता कि चुनावों मे असल में कितनी रकम खर्च हुई। राजनीतिक दल चुनावों में जितना खर्च करते हैं, उसे देखते हुए चुनावी चंदा तो बहुत कम रहता है।’
उन्होंने कहा कि पहले चुनाव के लिए सरकार से खर्च लेने का विचार सामने आया था मगर उस पर आम सहमति नहीं बन पाई ।
चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों की सूची में शामिल एक प्रतिष्ठित कारोबारी समूह के एक अधिकारी ने कहा कि चुनावी ट्रस्ट और चुनावी बॉन्ड कानून के दायरे में आने वाले वैध विकल्प हैं। उन्होंने सवाल किया कि कंपनी जगत को बदनाम करने की कोशिश क्यों की जा रही है? उन्होंने दावा किया कि पहले भी चुनावों में दिए गए चंदे का स्वेच्छा से खुलासा किया गया था। चंदा देने का जरिया जो भी हो, एक-एक पाई बहीखाते में लिखी गई है। अधिकारी ने कहा, ‘दुर्भाग्य से चुनावी मौसम में हर बात पर सियासत होने लगती है।’
चुनाव आयोग द्वारा जारी दस्तावेजों में शामिल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की एक कंपनी ने नाराजगी जताते हुए कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। मगर उससे जुड़े एक सूत्र ने चुनावी चंदे के हर हिस्से का खुलासा वार्षिक रिपोर्ट में होने की बात से इनकार कर दिया। जब उससे पूछा गया कि इसे गुमनाम रखने का वादा करने के बाद खुलासा करना क्या ठीक है तब उसने कहा, ‘इसे गुमनाम ही रखना चाहिए था।’
अधिकतर कंपनियां चुनावी बॉन्डों पर अपने खर्च को किसी तरीके से वार्षिक रिपोर्ट में दिखाती हैं, मगर कोलकाता की आईएफबी एग्रो इंडस्ट्रीज जैसी कुछ कंपनियां इसके खुलासे पर पूरी साफगोई बरतती हैं।
2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट में कंपनी ने कहा, ‘जैसा पहले बताया गया था, कारोबार दिक्कतों से जूझ रहा है और कामकाज चलाते रहने तथा शेयरधारकों के हितों की रक्षा करने के लिए कंपनी ने 2022-23 के दौरान चुनावी बॉन्ड के जरिये 18.30 करोड़ रुपये चंदा दिया है।’
कंपनी जगत के कुछ लोगों ने निजी तौर पर चुनावी बॉन्ड खरीदकर चंदा दिया है। इनमें बायोकॉन की कार्यकारी चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ भी शामिल हैं। शॉ ने 6 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे।
उन्होंने एक्स पर एक यूजर के पोस्ट का जवाब देते हुए कहा, ‘मैं हमेशा पारदर्शिता में यकीन रखती हूं और आपने जो देखा है वह सही है।’ माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर यूजर ने जब पूछा कि क्या उनसे चंदा मांगा गया था तो जवाब में शॉ ने कहा, ‘सभी राजनीतिक दल चंदा चाहते हैं।’
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करते हुए निर्वाचन आयोग ने चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों और उसे भुनाने वाले राजनीतिक दलों का विवरण गुरुवार को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया था। स्टेट बैंक ने 12 मार्च को चुनावी बॉन्डों के आंकड़े निर्वाचन आयोग को सौंप दिए थे।