दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को जेनसोल इंजीनियरिंग और ब्लूस्मार्ट मोबिलिटी को जापान की वित्तीय सेवाएं मुहैया कराने वाले समूह ओरिक्स द्वारा उन्हें लीज पर दिए गए 175 इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर किसी तीसरे पक्ष को सौंपने या उन पर कोई अधिकार जताने से रोक दिया गया। इलेक्ट्रिक कैब सेवाएं देने वाली कंपनी ब्लूस्मार्ट, संकटग्रस्त कंपनी जेनसोल इंजीनियरिंग की सहायक कंपनी है।
ओरिक्स की याचिका मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 9 के तहत दायर की गई थी। यह धारा अदालत को मध्यस्थता कार्यवाही में विभिन्न पक्षों को मध्यस्थता शुरू होने से पहले, उसके दौरान या यहां तक कि मध्यस्थता में फैसला दिए जाने के बाद भी अंतरिम राहत देने का अधिकार देती है लेकिन यह उसके अमल से पहले ही संभव है।
न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने कहा, ‘प्रतिवादियों को 175 वाहनों के संबंध में तीसरे पक्ष को सौंपने या कोई अधिकार जताने से रोका जाता है।’ओरिक्स ने जेनसोल इंजीनियरिंग और ब्लूस्मार्ट मोबिलिटी के साथ स्वच्छ ऊर्जा वाले वाहनों को बढ़ावा देने की पहल के तौर पर लीज समझौता किया था। इस समझौते के तहत ब्लूस्मार्ट के कैब परिचालन को मदद दी जानी थी। इसमें जेनसोल और ब्लूस्मार्ट के सह संस्थापक अनमोल सिंह जग्गी इस लीज की देनदारियों के गारंटर बने।
ओरिक्स ने अब दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाया है जिसमें 4 करोड़ रुपये की लीज भुगतान में चूक भी शामिल है। इसने जेनसोल और ब्लूस्मार्ट को लीज पर दिए गए वाहनों को हटाने से रोकने की मांग की है।
ओरिक्स ने अदालत को यह सूचना भी दी कि समझौतों में विवाद समाधान के तहत इसका इरादा मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू करने का है। अदालत अब इस मामले की अगली सुनवाई 16 मई को करेगी। ओरिक्स की याचिका अधिवक्ता राजेश जांगड़ा के माध्यम से दायर की गई थी। ब्लूस्मार्ट ने 16 अप्रैल को दिल्ली-एनसीआर, बेंगलूरु और मुंबई के कुछ हिस्से में कैब बुकिंग रोक दी थी जिन तीन शहरों में यह सक्रिय है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा जेनसोल इंजीनियरिंग के प्रवर्तकों और निदेशकों, अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी को कथित फर्जीवाड़ा करने और फंड के लिए शेयर बाजार में पहुंच बनाने से प्रतिबंधित करने के एक दिन बाद कैब बुकिंग रोक दी गई थी। इसके अलावा बाजार नियामक ने दोनों को किसी भी सूचीबद्ध कंपनी में प्रमुख पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया।
अपने अंतरिम आदेश में सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अश्विनी भाटिया ने कहा, ‘प्रवर्तक एक सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनी को इस तरह चला रहे थे जैसे कि वह उनकी एक मालिकाना कंपनी हो। कंपनी के फंड को संबंधित पक्षों को भेजा गया और गैर-संबद्ध खर्चों में इस फंड का इस्तेमाल किया गया जैसे कि कंपनी का फंड प्रवर्तकों का अपना पिगी बैंक हो।’
सेबी के मुताबिक प्रवर्तकों ने निजी लक्जरी के लिए बड़े पैमाने पर पूंजी का दुरुपयोग किया जिसमें डीएलएफ गुड़गांव में द कैमेलियस में एक अपार्टमेंट की खरीद, बेहद महंगा गोल्फ सेट लेना और निजी क्रेडिट कार्ड का भुगतान शामिल है। जेनसोल इंजीनियरिंग ने दो सरकार समर्थित कर्जदाताओं भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्था (इरेडा) और पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) से सावधि ऋण लिया था। कुल ऋण राशि में से कंपनी ने ब्लूस्मार्ट में तैनात किए जाने वाले 6,400 इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के लिए 663.89 करोड़ रुपये अलग रखे थे। हालांकि राशि के इस्तेमाल में काफी अंतर था।