facebookmetapixel
नवंबर में थोक महंगाई शून्य से नीचे, WPI -0.32 प्रतिशत पर रही; खाद्य तेल व दलहन पर निगरानी जरूरीई-कॉमर्स क्षेत्र की दिग्गज कंपनी फ्लिपकार्ट का मुख्यालय सिंगापुर से भारत आएगा, NCLT ने दी मंजूरीघने कोहरे और गंभीर प्रदूषण से उत्तर भारत में 220 उड़ानें रद्द, दिल्ली में कक्षाएं ऑनलाइन चलेंगीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे अम्मान, भारत-जॉर्डन द्विपक्षीय संबंधों में प्रगाढ़ता का नया अध्यायपहली छमाही की उठापटक के बाद शांति, दूसरी छमाही में सेंसेक्स-निफ्टी सीमित दायरे में रहेडॉलर के मुकाबले लगातार फिसलता रुपया: लुढ़कते-लुढ़कते 90.80 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक पहुंचाभारत के निर्यात ने रचा रिकॉर्ड: 41 महीने में सबसे तेज बढ़ोतरी से व्यापार घाटा 5 महीने के निचले स्तर परमनरेगा बनेगा ‘वीबी-जी राम जी’, केंद्र सरकार लाने जा रही है नया ग्रामीण रोजगार कानूनGST कटौती का असर दिखना शुरू: खपत में तेजी और कुछ तिमाहियों तक बढ़ती रहेगी मांगविदेशी कोषों की बिकवाली और रुपये की कमजोरी का असर: शेयर बाजार मामूली गिरावट के साथ बंद

कीमत बढ़ाकर जिंस में तेजी से निपट रहीं कंपनियां

Last Updated- December 12, 2022 | 7:43 AM IST

पिछले एक महीने के दौरान कंज्यूमर ड्यूरेबल्स विनिर्माताओं ने इनपुट लागत के दबाव से निपटने के लिए उत्पादों की कीमतों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी की है। दो दौर के तहत मूल्य वृद्धि 5 से 6 फीसदी के दायरे में पहले ही हो चुकी है। कंपनियों का कहना है कि यदि महंगाई का दबाव बरकरार रहा तो गर्मी की शुरुआत से ठीक पहले कीमतों में एक बार फिर बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है।
ब्रोकरेज फर्म जेपी मॉर्गन के विश्लेषकों ने एक हालिया रिपोर्ट में कहा है कि धातु से लेकर कृषि उत्पादों और कच्चे तेल तक, जिंस कीमतों में तेजी आई है। इसकी झलक उनकी कीमतों में स्पष्ट तौर पर दिख रही है।
अब जरा इस पर विचार करते हैं: पिछले एक महीने के दौरान इस्पात से लेकर तांबा, एल्युमीनियम, जस्ता, निकेल, टिन और सीसा तक सभी धातु की कीमतों में 4 से 24 फीसदी के दायरे में वृद्धि हुई है। कच्चे तेल की कीमतों में एक महीने के दौरान  21.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई जबकि सोया तेल और पाम ऑयल की कीमतों के इस दौरान 9 से 12 फीसदी के दायरे में वृद्धि हुई।
इस्पात के मामले में भी ऐसी ही स्थिति है। क्रिसिल के अनुसार, पिछले कुछ महीनों के दौरान इस्पात की कीमतों में 29 फीसदी की वृद्धि हुई है। क्रिसिल रिसर्च की निदेशक ईशा चौधरी ने कहा, ‘लौह अयस्क की लागत बढऩे से कीमत में तेजी आई है।’
जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक (वाणिज्यिक एवं विपणन) जयंत आचार्य ने कहा, ‘लौह अयस्क से लेकर उपभोग की वस्तुओं और गैस तक पूरी मूल्य शृंखला के तहत कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई है। कोकिंग कोल की कीमतें नवंबर और दिसंबर में 100 डॉलर एफओबी (फ्री ऑन बोर्ड) ऑस्ट्रेलिया प्रति टन थीं जो अब फरवरी में बढ़कर औसतन 150 डॉलर एफओगी ऑस्ट्रेलिया प्रति टन हो चुकी हैं।’
दूसरी ओर, महंगाई का दबाव बढ़ते ही सीमेंट की कीमतों में 10 से 15 रुपये प्रति बैग की तेजी आई है। भारती सीमेंट्स के निदेशक रवींद्र रेड्डी ने कहा, ‘इनपुट लागत के दबाव के कारण मूल्य वृद्धि हमारे नियंत्रण से बाहर है। हम उसे उसे कम करने के लिए कुछ नहीं कर सकते क्योंकि पेटकोक का काफी हद तक आयात किया जाता है और समुद्री माल भाड़ा काफी बढ़ चुका है। ईंधन की कीमतें भी आसमान छू रही हैं और इसलिए हमारी लॉजिस्टिक लागत बढ़ गई है।’ इन सब का सीधा असर भवन निर्माण उद्योग पर पड़ा है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद रियल एस्टेट की गतिविधियों में तेजी आई है लेकिन अब उसे निर्माण लागत में तेजी जैसी बाधाओं से जूझना पड़ रहा है। वाहन और ड््यूरेबल्स कंपनियों पर भी इसका असर दिख रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च इनपुट लागत रियल एस्टेट कंपनियों के लिए चिंता की बात है क्योंकि इस क्षेत्र की कई कंपनियां अनबिकी इन्वेंट्री से जूझ रही हैं। जिंस कीमतों में तेजी परिणाम अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक कीमत के तौर पर सामने आएगा क्योंकि रियल एस्टेट कंपनियां उसका भार खुद सहन करने की स्थिति में नहीं हैं।
ब्रिगेड एंटरप्राइजेज के कार्यकारी निदेशक एवं अध्यक्ष (इंजीनियरिंग) रोशिन मैथ्यू ने कहा, ‘सस्ते आवास खंड में इसका असर कहीं अधिक दिखेगा क्योंकि वहां मार्जिन काफी कम होता है। उद्योग डीजल कीमतों में तेजी के प्रभाव से भी जूझ रहा है।’
पूर्वांकर के प्रबंध निदेशक आशिष आर पूर्वांकर ने कहा, ‘हम डिजाइन में बदलाव कर सीमेंट की मात्रा को कम करते हुए लागत के प्रभाव से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा हम कट ऐंड बेंड के सुदृढीकरण से भी नुकसान को कम करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं।’
गोदरेज अप्लायंसेज के बिजनेस हेड एवं कार्यकारी उपाध्यक्ष कमल नंदी ने कहा कि मूल्य वृद्धि अपरिहार्य थी। उन्होंने कहा, ‘पिछले कुद महीनों के दौरान मूल्य वृद्धि को लेकर विनिर्माताओं का रुख काफी उचित रहा है क्योंकि वैश्विक महामारी के मद्देनजर त्योहारी सीजन में कंपनियां मांग को प्रभावित नहीं करना चाहती थीं। लेकिन अब उसे बरकरार रखना संभव नहीं है और इसलिए जनवरी के बाद चरणबद्ध तरीके से अप्लायंसेज की कीमतों में बढ़ोतरी की जा रही है।’

First Published - February 26, 2021 | 11:34 PM IST

संबंधित पोस्ट