विलय-अधिग्रहण के मोर्चे पर भी देश के दो दिग्गज कारोबारी समूहों में तगड़ी प्रतिस्पर्धा दिख रही है। अदाणी और अंबानी समूह पिछले कुछ वर्षों से शीर्ष दो पायदान पर बने हुए हैं। मगर 2024 में किए गए विलय-अधिग्रहण सौदों के मामले में अदाणी समूह के मुकेश अंबानी की सूचीबद्ध कंपनियों को पीछे छोड़ दिया। इस दौरान अदाणी समूह ने 6.32 अरब डॉलर के सौदे किए जबकि अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनियों के मामले में यह आंकड़ा महज 3.14 अरब डॉलर का रहा।
हालांकि 2023 में किए गए विलय-अधिग्रहण सौदों के मामले में भारतीय कारोबारी समूहों के बीच अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनियों का ही वर्चस्व था। उस दौरान अंबानी की कंपनियों ने कुल 8.77 अरब डॉलर के सौदे किए जबकि अदाणी समूह के मामले में यह आंकड़ा 1.73 अरब डॉलर का था। जेएसडब्ल्यू और टाटा समूह भी विलय-अधिग्रहण के जरिये अपनी क्षमता का विस्तार कर रहे हैं।
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक महामारी के बाद से ही विलय-अधिग्रहण के मोर्चे पर अंबानी और अदाणी समूह शीर्ष दो पायदानों पर ऊपर-नीचे हो रहे हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 2020 में सबसे अधिक लेनदेन वाले सौदों पर हस्ताक्षर किए थे और उसने अपने रिटेल एवं दूरसंचार कारोबार में 26.08 अरब डॉलर की हिस्सेदारी बेची थी। उसके दो साल बाद अदाणी समूह 16.56 अरब डॉलर के सौदों पर हस्ताक्षर करते हुए विलय-अधिग्रहण की होड़ में शामिल हो गया। उसी दौरान अदाणी समूह ने सीमेंट क्षेत्र में उतरने की घोषणा की थी।
साल 2024 में हुए कुल सौदों में देश के शीर्ष 5 समूहों की सूचीबद्ध कंपनियों की एकीकृत हिस्सेदारी करीब 15.28 फीसदी और मूल्य 98.7 अरब डॉलर रहा। इसी प्रकार कुल विलय-अधिग्रहण सौदों में शीर्ष 10 समूहों (आय के लिहाज से) की हिस्सेदारी करीब 16 फीसदी रही।
निजी इक्विटी एवं सॉवरिन निवेशक 2024 में कई बड़े सौदों पर हस्ताक्षर करते हुए विलय-अधिग्रहण क्षेत्र के प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरे हैं। साल के दौरान विलय-अधिग्रहण सौदों के मूल्य में भी सुधार हुआ और उसमें 2023 के मुकाबले 18.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर एवं लीडर (निजी इक्विटी एवं सौदे) भाविन शाह ने कहा, ‘साल 2025 में भारतीय कारोबारी समूहों द्वारा विलय-अधिग्रहण की संभावनाएं काफी बेहतर हैं। उसे घरेलू बाजार के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए रणनीतिक वृद्धि एवं विविधीकरण के प्रयासों से रफ्तार मिलेगी।’
पिछले साल सुनील मित्तल के स्वामित्व वाली भारती ग्लोबल की गैर-सूचीबद्ध कंपनी भारती टेलीवेंचर्स ने 4 अरब डॉलर के साथ सौदे के तहत ब्रिटेन की प्रमुख दूरसंचार कंपनी बीटी ग्रुप में 24.5 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया। यह देश से बाहर किया गया सबसे बड़ा सौदा है।
लंदन स्टॉक एक्सचेंज ग्रुप (एलएसईजी) के वरिष्ठ प्रबंधक (डिल इंटेलिजेंस) एलेन टैन ने कहा कि भारत से जुड़ी सौदा गतिविधियों के लिहाज से पिछला वर्ष 1980 के बाद सबसे व्यस्त रहा। इस दौरान घोषित सौदों की संख्या 2,700 के पार पहुंच गई। एलएसईजी के आंकड़ों के अनुसार, सौदा गतिविधियों में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही जबकि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की बाजार हिस्सेदारी और सौदा मूल्य में काफी वृद्धि दर्ज की गई।
जून में अदाणी समूह ने दो प्रमुख सीमेंट सौदों पर हस्ताक्षर किए। उसने अंबुजा सीमेंट्स के जरिये 1.2 अरब डॉलर यानी करीब 10,422 करोड़ रुपये के एंटरप्राइज मूल्य पर पेन्ना सीमेंट इंडस्ट्रीज का अधिग्रहण किया। कुछ ही महीने बाद अंबुजा ने 44 करोड़ डॉलर यानी करीब 3,791 करोड़ रुपये के एक सौदे के तहत चंद्रकांत बिड़ला परिवार से ओरियंट सीमेंट में 47 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की।
साल के अंत तक अदाणी एंटरप्राइजेज ने अपने संयुक्त उद्यम अदाणी विल्मर में 44 फीसदी हिस्सेदारी 2.2 अरब डॉलर यानी 18,817 करोड़ रुपये में बेचने की घोषणा की। वित्त वर्ष 2025 के पहले नौ महीनों के दौरान अदाणी समूह ने 77,300 करोड़ रुपये यानी करीब 9 अरब डॉलर का निवेश किया। समूह के सूत्रों के अनुसार, मार्च तक यह आंकड़ा 15 अरब डॉलर के पार पहुंच जाएगा।
पिछले साल रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 1.75 अरब डॉलर के एक सौदे के तहत अदाणी पावर से महान एनर्जेन का अधिग्रहण किया। यह सौदा साल के शीर्ष 10 सौदों में शामिल था। जेएसडब्ल्यू एनर्जी ने 1.5 अरब डॉलर के एक सौदे के तहत ओ2 पावर का अधिग्रहण किया।
दिलचस्प है कि शीर्ष 3 कारोबारी समूहों के मुकाबले टाटा और आदित्य बिड़ला समूहों ने कम विलय-अधिग्रहण सौदों पर हस्ताक्षर किए। पिछले साल टाटा समूह ने 1.7 अरब डॉलर के सौदे किए जबकि आदित्य बिड़ला समूह के मामले में यह आंकड़ा 1.6 अरब डॉलर का रहा।
कोटक इन्वेस्टमेंट बैंकिंग के प्रबंध निदेशक एवं डिप्टी सीईओ सौरव मलिक ने कहा कि भारत में विलय-अधिग्रहण गतिविधियों में तेजी आई है। उन्होंने कहा कि भारत में विलय-अधिग्रहण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में भू-राजनीतिक जरूरतें, अनिश्चितता, बढ़ती ब्याज दरें और शुरुआती निवेशकों का पूंजी के जरिये बाहर निकलना शामिल हैं। विलय-अधिग्रहण के लिहाज से हम पिछले कुछ समय से वैश्विक स्तर पर शीर्ष 10 में शामिल हैं। इसमें भारतीय समूहों का उल्लेखनीय योगदान है और इसलिए वे दमदार तरीके से वापसी कर रहे हैं।
(साथ में जेडन मैथ्यू पॉल)