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फिर भी किसान रहे खाली हाथ!

Last Updated- December 10, 2022 | 8:14 PM IST

कीमतें बढ़ें या घटे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आलू बेल्ट के किसानों की किस्मत में मुनाफा मुंगेरीलाल का सपना ही है।
पिछले महीने के दौरान देश के ज्यादातर राज्यों में आलू की कीमतें 25 से 30 फीसदी बढ़ने के बावजूद  पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आलू किसानों के लिए लागत वसूलना टेढ़ी खीर ही रहा है। दूसरी ओर बाजार के हालात सुधरने से आलू आढ़तियों में खुशी है।
दिल्ली स्थित एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी आजादपुर में पोटैटो ऐंड ओनियन ट्रेडर्स एसोसिएशन के महासचिव राजेन्द्र शर्मा बताते है कि ‘इस बार पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम और अन्य पूर्वी राज्यों में आलू की उपज कम होने से उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब से आलू की खरीद बढ़ गई है। इससे आलू की कीमतों में 25 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इससे आलू कारोबारियों के हालात में कुछ सुधार हुआ है।’
त्यागी पोटैटो ट्रेडर्स कंपनी के विजय त्यागी का कहना है कि ‘मांग बढ़ने से जहां भंडारगृहों में महीनों से पड़े आलू को हटाया जा सका है, वहीं कीमतों में हुआ सुधार आलू की नई उपज के लिए अच्छा संकेत है।’
वहीं पिछले साल लगभग 80 हजार क्ंविटल आलू सड़ने का दंश झेलने वाले आलू किसानों का कहना है कि कीमतें बढ़ने के बावजूद हमारे हाथ कुछ नहीं आ रहा है। अलीगढ़ में आलू की खेती करने वाले किसान राम सहाय का कहना है कि ‘इस समय मंडी में हमें आलू की थोक कीमत 250 से 300 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही है जो कि लागत के लगभग बराबर ही है।
जबकि इसके उलट बाजार में आलू का खुदरा मूल्य 600 से 700 रुपये हो गया है।’ आगरा के हरेन्द्र बताते है कि  ‘कीमतों में अभी 20 फीसदी तक और सुधार की गुंजाइश है, लेकिन मुनाफे में किसानों की हिस्सेदारी कितनी बढ़ेगी ये तो मंडी के खिलाड़ी ही तय करेंगे।’
वहीं शर्मा इस बात से सहमत हैं कि कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद किसानों के हिस्से में मुनाफा नहीं आ रहा है। इसका कारण वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में आलू के ताबड़तोड़ उत्पादन को मानते है लेकिन कीमतों में आगे और भी बढ़ोतरी होने की संभावना सही नहीं मानते है।

First Published - March 15, 2009 | 10:29 PM IST

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