भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों के कर्ज की लागत घटाने और ऋण प्रवाह को बढ़ावा देने के मकसद से कई उपाय किए। इनमें होम लोन के लिए
जोखिम भार में बदलाव करने और बैंकों को भारत की गैर-वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों के अधिग्रहण के लिए कर्ज देने की अनुमति भी शामिल है। इसके अलावा बैंकिंग नियामक ने बैंकों द्वारा मौजूदा नुकसान ढांचे की जगह अपेक्षित ऋण नुकसान (ईसीएल) ढांचे को अपनाने के लिए समयसीमा तय की है और अतिरिक्त प्रावधान के लिए चार साल की मोहलत दी है। ईसीएल मानदंड 1 अप्रैल, 2027 से लागू होगा और बैंकों को प्रावधान आवश्यकताओं को पूरा
करने के लिए 31 मार्च, 2031 तक का समय मिलेगा।
आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) सहित शेयरों में निवेश के लिए ऋणदाताओं को उधार देने की सीमा बढ़ाने का भी फैसला किया गया है। आरबीआई ने सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों के एवज में कर्ज देने पर नियामक सीमा हटाने तथा शेयरों के बदले बैंकों द्वारा ऋण आवंटन की सीमा मौजूदा 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव किया है। आईपीओ में निवेश के लिए प्रति व्यक्ति कर्ज की सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
आरबीआई यह सुनिश्चित करने को लेकर सजग है कि नियमों का पालन आर्थिक वृद्धि की राह में बाधा न डाले। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा, ‘हमें अपने नियमों को तर्कसंगत बनाने पर लगातार ध्यान देना होगा ताकि अर्थव्यवस्था की उत्पादक जरूरतें कम से कम अनुपालन बोझ और कम लागत के साथ पूरी हो सकें।’
भारतीय बैंकों को गैर-वित्तीय कंपनियों के अधिग्रहण के लिए भी पूंजी मुहैया कराने की अनुमति दी गई है जिसमें विशेष उद्देश्यीय कंपनी (एसपीवी) द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराना भी शामिल है। बैंकों की ओर से इसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण कदम के तहत बैंकिंग प्रणाली में किसी विशिष्ट उधारकर्ता के लिए 10,000 करोड़ रुपये की ऋण सीमा को हटाने का प्रस्ताव किया है। किसी बैंक द्वारा विशिष्ट कर्जदार को दिए जाने वाले ऋण की सीमा उसकी कुल संपत्ति के 20 फीसदी और किसी समूह को दिए जाने वाले कर्ज के मामले में यह 25 फीसदी तक सीमित होगा।
आरबीआई ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा बुनियादी ढांचे को दिए जाने वाले कर्ज की लागत को कम करने का भी निर्णय किया है। इसके लिए नियामक ने परिचालन, उच्च गुणवत्ता वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए एनबीएफसी द्वारा ऋण देने पर लागू जोखिम भार को कम करने का प्रस्ताव किया है।
पिछले साल अक्टूबर में एक मसौदा परिपत्र में प्रस्ताव दिया गया था कि किसी बैंक समूह (बैंक और उसकी समूह इकाइयां) के भीतर केवल एक ही संस्था किसी विशेष प्रकार का मंजूर व्यवसाय कर सकती है। नियामक ने अंतिम दिशानिर्देशों में बैंकों और उनकी समूह इकाइयों के बीच व्यावसायिक गतिविधियों में ओवरलैप पर इस प्रस्तावित प्रतिबंध को हटाने का निर्णय किया है।
मल्होत्रा ने कहा, ‘हम सूक्ष्म प्रबंधन नहीं करना चाहते, हमारा मानना है कि बैंक इस आधार पर सचेत, विचारित, संतुलित दृष्टिकोण अपनाएंगे कि वे अपना व्यवसाय किस प्रकार संचालित करना चाहते हैं, इसीलिए हमने इसे उन पर ही छोड़ दिया है।’
आरबीआई ने वाणिज्यिक बैंकों के लिए संशोधित बेसल-3 पूंजी पर्याप्तता मानदंड को 1 अप्रैल, 2027 से लागू करने का भी प्रस्ताव रखा है। आरबीआई जल्द ही ऋण जोखिम के लिए मानकीकृत दृष्टिकोण का मसौदा जारी करेगा। कुछ क्षेत्रों पर प्रस्तावित कम जोखिम भार से समग्र पूंजी आवश्यकताओं में कमी आने की उम्मीद है, विशेष रूप से इनमें एमएसएमई और होम लोन भी शामिल होंगे।
केंद्रीय बैंक ने रुपये के और अधिक अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए भी कदम उठाए हैं। बैंकों को भूटान, नेपाल और श्रीलंका के प्रवासियों को सीमा पार व्यापार लेनदेन के लिए रुपये में ऋण देने की अनुमति दी गई है।