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खत्म हो रही हैं समुद्री मछलियां, अब मछली पालन का ही बचा सहारा

Last Updated- December 10, 2022 | 7:34 PM IST

समुद्रों में मछली पकड़ने की क्षमता का अब करीब पूरी तरह से दोहन हो रहा है, इसलिए इसके विस्तार की संभावना बहुत कम है।
भविष्य में अब मछली उत्पादन एक्वाकल्चर (मछली पालन) के माध्यम से ही बड़े पैमाने पर किए जाने की संभावना बचती है। मछली का उत्पादन खासकर मछलीपालक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा पोषण के लिहाज से भी, खासकर उनके- जो छोटे-छोटे द्वीपों पर रहते हैं। इनका जीवन मछली के उत्पादन के साथ साथ उसी के आहार से चलता है।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा पिछले सप्ताह रोम में जारी की गई ‘स्टेट ऑफ वर्ल्ड फिशरीज ऐंड एक्वाकल्चर’ नामक रिपोर्ट में कुछ इसी तरह के संकेत दिए गए हैं। इस रिपोर्ट में कुछ क्षेत्रों में समुद्री मछली के बहुत ज्यादा दोहन, मछली मारने की सीमा आदि के बारे में दिया गया है।
समुद्री मछली की आधे से ज्यादा (52 प्रतिशत) का दोहन हो चुका है और मछली पकड़ने की जो अधिकतम सीमा है, उतना दोहन हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एफएओ द्वारा निर्धारित 19 प्रतिशत बड़े व्यावसायिक समुद्री मछली क्षेत्रों में क्षमता से अधिक मछलियां पकड़ी जा रही हैं। 8 प्रतिशत क्षेत्रों में मछलियां समाप्त हो चुकी हैं और 1 प्रतिशत इलाके में समाप्त होने की कगार पर हैं।’
जिन इलाकों में पूरी क्षमता से दोहन किया जा रहा है, उसमें पश्चिमी भारतीय समुद्री इलाके, पूर्वोत्तर अटलांटिक और उत्तर पश्चिमी पैसिफिक इलाके शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षमता से ज्यादा मछली पकड़ने की प्रमुख वजह यह है कि इन इलाकों में बहुत ज्यादा नावें चलती हैं और मछली पकड़ने की उच्च तकनीक है। इसके साथ ही अवैध रूप से भी मछली पकड़ने का काम जोर शोर से चलता है।
पूरी दुनिया में मशीन से चलने वाली नाव के दस्तों की संख्या 21 लाख है। इनमें से 23,000 बड़े औद्योगिक दस्ते हैं। कुछ हजार नावें तो ऐसी हैं जो पूरे देश के विभिन्न इलाकों में अवैध रूप से मछलियां पकड़ने का काम करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अवैध रूप से मछली पकड़ने वालों को अलग थलग करने की कोशिश के बावजूद हाल के वर्षों में इनका विस्तार ही हुआ है।
यह भी कहा गया है कि पर्यावरण परिवर्तन पहले ही शुरू हो चुका है, जिसका असर समुद्र और साफ पानी में रहने वाली मछलियों पर पड़ा है। इसका बहुत ही बुरा प्रभाव मछली की उपलब्धता पर पड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मत्स्य कारोबार को मदद पहुचाने के लिए और मछली पर निर्भर समुदाय को लाभ पहुंचाने के लिए उन्हें जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसानों से बचाने की जरूरत है।
अनुमानों के मुताबिक पूरी दुनिया में 435 लाख लोग इससे सीधे तौर पर या आंशिक रूप से जुड़े हुए हैं, जो मछलियां पकड़ते हैं या मछली का पालन करते हैं। उनमें से 86 प्रतिशत एशिया में रहते हैं। इनमें से 40 लाख लोग समुद्र से जुड़े मछली के कारोबार में लगे हैं। मछली के प्रसंस्करण, मार्केटिंग और सेवा क्षेत्र सहित तमाम कामों में शामिल परिवारों की कुल संख्या 5 लाख से ज्यादा है, जो इस क्षेत्र से जुडे हुए हैं।
अगर पोषण के लिहाज से देखें तो 2.9 अरब लोगों में 15 प्रतिशत लोग मछलियों से मिलने वाले प्रोटीन पर निर्भर हैं। इसमें छोटे छोटे द्वीपों पर रहने वाले लोगों की मछलियों से मिलने वाले प्रोटीन पर निर्भरता 50 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक्वाकल्चर फार्मों के माध्यम से मछली उत्पादन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हाल के वर्षो में जानवरों से मिलने वाले खाद्य उत्पादों में सबसे ज्यादा विकास इसी क्षेत्र में हुआ है।
भारत में भी एक्वाकल्चर क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। इसका विकास समुद्री मछलियों से मछली पकड़ने की तुलना में बहुत तेजी से हो रहा है, जहां कई साल से स्थिरता की स्थिति बन गई है। कृषि विभाग के आंकड़े दिखाते हैं कि समद्री मछलियों का उत्पादन कमोवेश 1999-2000 से 28.5 लाख टन के आसपास स्थिर है। वहीं इसी अवधि में मछली पालन से उत्पादन 28 लाख टन से बढ़कर 38 लाख टन हो गया है।

First Published - March 12, 2009 | 11:58 AM IST

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