राज्यों में होने जा रहे अहम चुनावों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत अगले 5 साल तक मुफ्त अनाज जारी रखने की घोषणा की है। यह चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय हिसाब से प्रबंधन योग्य हो सकता है, लेकिन आने वाले वर्षों में यह सरकार के खजाने को नुकसान पहुंचा सकता है, क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ने से खाद्यान्न पर आने वाली आर्थिक लागत बढ़ेगी और इससे जुड़ी अन्य चीजों पर भी असर पड़ेगा।
नए PMGKAY की अवधि एक साल है और यह 31 दिसंबर 2023 को खत्म होने वाली है।
ऐसे में खाद्य सब्सिडी को नियंत्रण में रखने का एकमात्र तरीका यह है कि अनाज खरीद सीमित किया जाए और सिर्फ उतना ही अनाज खरीदा जाए, जितना एनएफएसए को जारी रखने के लिए जरूरी है। इसका मतलब यह होगा ओपन एंडेड खरीद व्यवस्था को खत्म करना होगा।
कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) लंबे समय से वकालत कर रहा है कि गेहूं और चावल की खरीद में प्रति हेक्टेयर के आधार पर खरीद की कुछ सीमा तय की जानी चाहिए। लेकिन यह भी करने के बजाय कहना आसान है, क्योंकि एमएसपी पर खरीद का भी व्यापक राजनीतिक असर होगा।
अगर पिछले 2 साल को छोड़ दें तो आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्रीय पूल में सालाना 780 से 800 लाख टन गेहूं और चावल की खरीद होती है। वहीं पीडीएस के तहत अनाज देने के लिए 500 से 590 लाख टन अनाज की जरूरत होती है।
2023-24 में केंद्र सरकार ने एनएफएसए के तहत 600 लाख टन गेहूं और चावल का आवंटन किया। इसमें करीब 400 लाख टन चावल, 190 लाख टन गेहूं और 10 लाख टन मोटे अनाज शामिल हैं।
सीजीए के आंकड़ों के मुताबिक इस वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी पर 1,97,350 करोड़ रुपये आवंटित किए गए है, जिसमें से सितंबर तक 48 प्रतिशत खर्च हो चुका है।
इसके पहले सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं ने PMGKAY के तहत आवंटित किए जा रहे अतिरिक्त अनाज को बंद करने व केंद्रीय निर्गम मूल्य (सीआईपी) खत्म करके उसकी जगह नए PMGKAY की पेशकश की आलोचना की थी। उनका तर्क था कि एनएफएसए के तहत हर महीने प्रति व्यक्ति 5 किलो गेहूं या चावल दिया जाना अपर्याप्त है और पुराने PMGKAY को रोकने के पहले यह मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए।
सीआईपी वह दर है, जो केंद्र सरकार एनएफएसए के लाभार्थियों से गेहूं चावल और मोटे अनाज पर लेती है, यह चावल के लिए 3 रुपये किलो, गेहूं के लिए 2 रुपये किलो और मोटे अनाज के लिए 1 रुपये किलो तय की गई है।
सीआईपी इतना कम है कि कुछ राज्य लाभार्थियों को पूरी तरह मुफ्त अनाज देते हैं या बहुत मामूली राशि लेते हैं। 2013 में एनएफएसए लागू होने के बाद से ही सीआईपी में कोई बदलाव नहीं किया गया, जबकि अधिनियम में हर 3 साल पर इसकी समीक्षा का प्रावधान है। इससे केंद्र सरकार को महज 1,250 करोड़ रुपये महीने आते हैं। इस मद से 5 साल में करीब 75,000 करोड़ रुपये मिले हैं, जो बहुत मामूली राशि है। लेकिन एमएसपी बढ़ने के साथ केंद्र सरकार पर इस मद में खर्च का बोझ लगातार बढ़ रहा है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि इस घोषणा का चालू वित्त वर्ष के 5.9 प्रतिशत राजकोषीय घाटे पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन निश्चित रूप से इससे सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं जैसे स्वास्थ्य और शिक्षा पर आने वाले खर्च में कटौती करनी पड़ेगी।
इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए यूनिवर्सिटी आफ बाथ में विजिटिंग प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि इस तरह की नीति वित्तीय रूप से अच्छी नहीं है, बल्कि इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था से बेहतर नौकरियों का सृजन नहीं हो रहा है और बड़ी संख्या में लोगों को सरकार के इस तरह के कदमों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
बैंक आफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि नई PMGKAY सरकार द्वारा मुफ्त अनाज वितरण की व्यवस्था को खत्म करने का एक स्मार्ट तरीका है। सबनवीस ने कहा, ‘इससे सब्सिडी की लागत बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेगी और बजट पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इस पर आने वाली लागत न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुताबिक बढ़ेगी।’