भारत की अर्थव्यवस्था में नौकरियों के सृजन के क्षेत्र में जो चुनौतियां दिख रही हैं, उससे निपटने के लिए मिड टेक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को लाने और आकर्षित करने पर जोर देना होगा। विश्व की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हाईटेक एफडीआई पर जोर दे रही हैं और उनके पास भारी सब्सिडी देने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। बुधवार को मुंबई में आयोजित कार्यक्रम में अर्थशास्त्रियों ने यह कहा।
अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि मध्यावधि के हिसाब से कर्ज घटाना सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। उन्होंने प्रति व्यक्ति आमदनी बढ़ाने पर भी जोर दिया है। बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा बजट के बाद आयोजित कार्यक्रम ‘बजट विद बीएसः द फाइन प्रिंट’ के दौरान देश के जाने माने अर्थशास्त्रियों ने अपनी राय रखी। यह कार्यक्रम सरकार की प्रमुख वित्तीय कवायदों को समझने के लिए आयोजित किया गया था।
एचएसबीसी में एमडी और मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी ने कहा कि भारत में नौकरियों की समस्या के समाधान के लिए केंद्रीय बजट एक सही शुरुआत है। उन्होंने कहा, ‘सबसे बेहतरीन बात यह है कि इसे प्रमुखता में शामिल किया गया है। रोजगार को प्रोत्साहन देने, कौशल को बेहतर करने, शिक्षा ऋण मुहैया कराने, एमएसएमई को ज्यादा ऋण देने के कदम उठाए गए हैं, जिससे नौकरियां मिलेंगी। क्या इससे भारत में नौकरियों की समस्या का समाधान हो जाएगा, इसका जवाब है, नहीं। इसमें बहुत पूंजी लगाने की जरूरत है। यह सही शुरुआती बिंदु है।’
भंडारी ने कहा कि उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं नौकरियों के सृजन में अहम भूमिका निभा सकती हैं, अगर हमें मिडटेक एफडीआई मिलता है।
भंडारी के अलावा इस पैनल में जाने माने अर्थशास्त्री जैसे जेपी मॉर्गन में चीफ इंडिया इकनॉमिस्ट साजिद शेनॉय, सिटी ग्रुप में चीफ इकोनॉमिस्ट फॉर इंडिया और प्रबंध निदेशक समीरन चक्रवर्ती और येस बैंक में मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील पान भी शामिल हुए।
जेपी मॉर्गन के साजिद शेनॉय खासतौर पर उल्लेख किया कि सार्वजनिक कर्ज को कम करने में भारत मध्यावधि चुनौतियों का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों से राजकोषीय नीति सार्वजनिक व निजी निवेश पर केंद्रित रही है। मध्यावधि के हिसाब से हमें राजकोषीय सततता की जरूरत है और हमें यह समझने की जरूरत है कि इसका मापन कैसे करें। ऋण के लिए कोई जादुई सीमा नहीं है। मध्यावधि चुनौती यह है कि सार्वजनिक ऋण कैसे घटाया जाए। निजी क्षेत्र का कार्य प्रगति पर है। खपत सुस्त है और यह जरूरी है कि घाटे को तेजी से न समेटा जाए।’
चर्चा के दौरान सिटी ग्रुप के प्रबंध निदेशक समीरन चक्रवर्ती ने कहा कि बजट में सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) पर ध्यान केंद्रित किया गया है क्योंकि वे रोजगार सृजन करने वाले होते हैं।
चक्रवर्ती ने कहा कि बजट 2024 अर्थशास्त्रियों का बजट है। बजट का ध्यान रेलवे, रक्षा और बुनियादी ढांचे तक नहीं सिमटा है, बल्कि इसका विस्तार विनिर्माण और रोजगार तक हुआ है, जिससे मानव पूंजी की वृद्धि हो सके। चक्रवर्ती ने कहा, ‘केंद्रीय बजट अर्थशास्त्रियों का बजट है और यह अगले 5 साल तक मानव पूंजी के विकास पर ध्यान केंद्रित रखेगा।’
उन्होंने कहा, ‘पहले 5 साल अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने पर केंद्रित थे। अगले 5 साल बुनियादी ढांचे पर केंद्रित थे। आगामी 5 साल मानव पूंजी विकसित करने पर केंद्रित होगा।’
बजट 2025 पर बातचीत के दौरान येस बैंक के इंद्रनील पान ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था प्रति व्यक्ति आमदनी को बढ़ाने में अटकी है। उन्होंने कहा, ‘अगर हमें खुद को ऊपर उठाना है तो प्रति व्यक्ति आय बढ़ानी होगी, जहां हम कमजोर हैं।’ उन्होंने कहा कि बजट यह लक्ष्य पाने की कोशिश कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘बजट बताता है कि हमें कहीं पहुंचने की शुरुआत करनी होगी।’