वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को पेश किए बजट में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) तथा कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया है ताकि इन क्षेत्रों में अधिक से अधिक नौकरियां पैदा की जा सकें। हाल में लोक सभा और कई राज्यों के विधान सभा चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गरीबों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की और उन्हें लागू किया, वहीं वित्त मंत्री ने अपने बजट प्रस्तावों में देश के मध्य वर्ग को करों में छूट देकर राहत दी और कई परियोजनाओं के लिए वित्तीय मदद का ऐलान कर बिहार के मतदाताओं को लुभाने का भी प्रयास किया।
दिल्ली में विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मध्य वर्ग के लिए राहतों का पिटारा खोल दिया है। वहां इसी बुधवार को मतदान होगा। ऐसी ही एक घोषणा 8वां वेतन आयोग गठित करने की भी हाल ही में की गई। दिल्ली के 1.55 करोड़ मतदाताओं में मध्य वर्ग के मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। यहां 70 सदस्यों वाली विधान सभा में वर्ष 1993 में भाजपा के बहुमत वाली सरकार बनी थी।
यही नहीं, आने वाले दिनों में कई शहरों में निकाय चुनाव होने हैं। इनमें सबसे धनी निकाय मुंबई का बृहन्मुंबई नगर निगम भी शामिल है। इन शहरों-कस्बों और मुंबई में बड़ी संख्या में मध्य वर्ग के मतदाता रहते हैं। अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने मध्य वर्ग का 9 बार जिक्र किया। पिछले 2024-25 के जुलाई में पेश बजट के दौरान उन्होंने अपने भाषण में कुल तीन बार ही इस वर्ग का नाम लिया था। पिछला बजट जब आया था तब लोक सभा चुनाव हो चुके थे और भाजपा को बहुमत नहीं मिला था। मगर इस बार के बजट से पहले हरियाणा और महाराष्ट्र में राजग शानदार जीत दरज कर चुका है।
वित्त वर्ष 25-26 के बजट में बिहार के लिए 59,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिनसे पिछले बजट में घोषित की गईं सड़क, बिजली और बाढ़ प्रबंधन जैसी कई परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। सीतारमण ने अपने बजट भाषण में आधा दर्जन बार बिहार का जिक्र किया जबकि इसके बाद सिर्फ असम की बात कही, जहां अगले साल अप्रैल-मई में विधान सभा चुनाव प्रस्तावित हैं। वित्त मंत्री ने पूर्वोत्तर के इस राज्य में सालाना 12.7 लाख टन क्षमता का यूरिया संयंत्र स्थापित करने का ऐलान किया।
नौकरियों के लिए सरकार का एमएसएमई पर जोर देने का मकसद ग्रामीण क्षेत्रों से रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन रोकना भी है। बजट में राज्यों की साझेदारी में बहु-क्षेत्रीय ‘ग्रामीण समृद्धि और लचीलापन’ कार्यक्रम का ऐलान किया गया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होंगे, जिससे लोगों का शहरों की ओर पलायन करना मजबूरी नहीं रहेगा।
यदि बजट संकेतों पर ध्यान दिया जाए तो प्रत्येक दशक में होने वाली जनगणना 2025 में भी नहीं हो पाएगी, क्योंकि बजट में इसके लिए केवल 574.80 करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया गया है। वर्ष 2021-22 के बजट में इसके लिए 3,768 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था।
केंद्रीय कैबिनेट की 24 दिसंबर, 2019 को हुई बैठक में जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर अपडेट करने का प्रस्ताव पास किया गया था। इन दोनों परियोजनाओं पर क्रमश: 8,754.23 करोड़ रुपये और 3,941.35 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान जाहिर किया गया था। जनगणना के लिए आवासों की सूची बनाने और एनपीआर अपडेट करने का कार्य 1 अप्रैल से 30 सितंबर 2020 तक होना था, लेकिन कोविड-19 महामारी फैलने के कारण इन्हें टाल दिया गया। जनगणना और एनपीआर पर कुल 12,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
बजट प्रस्तावों से उन सवालों के जवाब मिल जाते हैं जो सीतारमण से अपनी पार्टी सहयोगियों द्वारा लोक सभा में प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए। बिहार से भाजपा सांसद जनार्दन सिंह सिगरीवाल ने केंद्र की ओर से बिहार को मिलने वाली वित्तीय मदद का ब्योरा मांगा था जबकि ओडिशा से भाजपा सांसद भर्तृहरि महताब और बालभद्र माझी ने वित्त मंत्री से जानना चाहा था कि कॉरपोरेट टैक्स कटौती के बाद कर संग्रह और विदेशी निवेश में कितनी बढ़ोतरी हुई। इसी प्रकार हिमाचर प्रदेश से आने वाले सत्ताधारी दल के सांसद कंगना रनौत और सुरेश कश्यप ने कॉरपोरेशन एवं व्यक्तिगत करदाताओं के बीच कर छूट के वितरण और लाभ के बारे में सवाल किया था।