नियामकीय निकायों के मूल सिद्धांत पर न आए आंच
अगर हम पिछले तीन दशकों से भी अधिक पुरानी भारत के आर्थिक सुधारों की गाथा पर नजर डालें तो कुछ बातों को दोबारा याद करना सार्थक लगता है। 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण में इसे लेकर कुछ अंतर्निहित सोच थी कि कोई अर्थव्यवस्था कैसे संचालित की जाए और इसका आकार निरंतर कैसे बढ़ाया जाए। […]
सही आकलन के लिए बेहतर आंकड़े जरूरी
करीब साल भर पहले केंद्र के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने लंबे समय से अटके मगर बेहद जरूरी सांख्यिकीय सुधार की घोषणा की थी। उसने निर्णय लिया कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और उसके घटकों का आकलन करने के लिए छह के बजाय पांच ही संस्करण जारी किए जाएंगे। इस तरह देश की […]
सरकारी नौकरियां बढ़ीं, लेकिन कामकाज में तेजी आई या नहीं?
जून 2022 में नरेंद्र मोदी सरकार ने रोजगार निर्माण पर एक साहसी घोषणा की थी। उसने अगले 18 महीनों में केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में 10 लाख लोगों को नौकरी देने की बात कही थी। घोषणा के मुताबिक ये भर्तियां ‘मिशन’ की तरह की जानी थीं। घोषणा के राजनीतिक और आर्थिक मायने […]
Budget 2025: कर राहत, पारदर्शिता और नए वादों का बजट
यह कहना अनुचित नहीं होगा कि वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में देश की आबादी का एक छोटा हिस्सा छाया हुआ है। चर्चा का विषय देश के करीब 4.3 करोड़ आयकरदाताओं को मिली कर राहत है। वित्त मंत्री ने उन्हें कुल 1 लाख करोड़ रुपये की राहत दी है, जो केंद्र के कर राजस्व की […]
सुस्त पड़ता सरकारी उपक्रमों का विनिवेश
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने मुश्किलों से जूझ रही सरकारी कंपनी राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) को उबारने के लिए 11,440 करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज को मंजूरी दी। यह सरकारी कंपनी विशाखापत्तनम स्टील प्लांट को चलाती है। पैकेज के तहत आरआईएनएल में 10,300 करोड़ रुपये की पूंजी डाली जानी है और 1,140 करोड़ […]
पूंजीगत व्यय में गिरावट के भीतर छिपा अवसर
केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में गिरावट लगातार चिंता का विषय बनी हुई है। यकीनन इसमें हो रही गिरावट धीमी हुई है और चालू वित्त वर्ष में जो पूंजीगत व्यय 35 फीसदी कम था वह पहली छमाही के अंत में 15 फीसदी ही कम रह गया। परंतु 2024-25 में अप्रैल-नवंबर के नए आंकड़े बताते हैं […]
जुलाई 2024 के वादों से निखरेगा बजट !
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को आगामी आम बजट पेश करने में अब छह हफ्ते से भी कम समय रह गया है। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए उन्हें क्या करना चाहिए, इसकी अपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। कई औद्योगिक संगठन और उद्योग के अगुआ उम्मीद कर रहे हैं कि वह खजाने को […]
नई बात नहीं है रिजर्व बैंक में अफसरशाहों की नियुक्ति
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की बुनियाद 1935 में रखी गई और तब से बीते 90 साल में 25 गवर्नरों ने उसकी कमान संभालकर भारत के बैंकिंग नियमन तथा मौद्रिक नीति निर्माण का काम देखा है। इनमें से 14 प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे, सात पेशेवर अर्थशास्त्री थे और तीन वित्तीय क्षेत्र से थे। आरबीआई कैडर […]
महिलाओं और नकद योजनाओं से बदलते चुनावी समीकरण
महाराष्ट्र और झारखंड के विधान सभा चुनावों के नतीजों का विश्लेषण करने वालों में इस बात को लेकर लगभग एक राय है कि चुनावी राजनीति में स्त्री शक्ति का एक पहलू नजर आया है। अब सवाल मतदाताओं को नकदी अंतरण या कल्याण योजनाओं का वादा करने का नहीं है। इनकी घोषणा करने वाले राजनीतिक दलों […]
पूंजीगत व्यय में कमी का क्या है अर्थ?
केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में कमी न केवल स्पष्ट है बल्कि इसने पहले ही 11.11 लाख करोड़ रुपये खर्च करने के लक्ष्य की प्राप्ति को लेकर संदेह पैदा कर दिया है। यह लक्ष्य 2024-25 के बजट में उल्लिखित है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का संकेत है कि वर्ष की पहली छमाही में पूंजीगत […]