जैसे-जैसे घटीं PSU विनिवेश से आमदनी, वैसे-वैसे बढ़ा सरकार का पूंजीगत खर्च
देश के सार्वजनिक उपक्रमों यानी पीएसयू के साथ नरेंद्र मोदी सरकार के संबंध पिछले 10 साल में काफी बदल गए हैं। इसे लेकर कुछ स्पष्ट तो कुछ अस्पष्ट रुझान हैं। केंद्रीय पीएसयू में सरकारी हिस्सेदारी के विनिवेश से होने वाली प्राप्तियों में बढ़ोतरी और गिरावट ऐसा ही एक स्पष्ट रुझान है। यह वर्ष 2014-15 में […]
राजस्व के अधिक अनुमान के खतरे
क्या 2024-25 के केंद्रीय बजट के लिए हाल ही में जारी किए गए प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ों में ‘देजा वू’ की भावना है? देजा वू एक ऐसी स्थिति के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिसमें व्यक्ति को लगता है कि वह किसी घटना को पहले भी अनुभव कर चुका है, भले ही वह पहली बार घटित […]
भारतीय कंपनियों के विदेशी निवेश से उठे सवाल
गत वित्त वर्ष में भारत में विशुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की आवक में 96 फीसदी की गिरावट क्यों आई? वर्ष 2024-25 में यह करीब 0.35 अरब डॉलर रहा जो इसके पिछले वर्ष 10.13 अरब डॉलर था। यह केवल एक साल में रिकार्ड गिरावट नहीं थी बल्कि विगत दो दशकों में देश में विशुद्ध एफडीआई […]
सीमा पर संघर्ष की कीमत और राजकोषीय मोर्चा
दो पड़ोसी देशों के बीच सैन्य संघर्ष हमेशा उनकी सरकारों की वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक असर डालता है। भारत की बात करें तो हमने ऐसा प्रभाव करीब ढाई दशक पहले महसूस किया था। करीब ढाई महीने तक चली करगिल की जंग ने तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के 1999-2000 के राजकोषीय आकलन को बुरी तरह […]
अफसरशाहों की नई पदस्थापना के संदेश
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों सचिव स्तर पर जो बड़ा फेरबदल किया उसे उतनी तवज्जो नहीं मिली जितनी दी जानी चाहिए थी। शुक्रवार को सरकार ने विभिन्न विभागों के प्रमुखों के रूप में 18 नए सचिव नियुक्त किए। आमतौर पर ऐसी नियुक्तियां रूटीन मानी जाती हैं जिन्हें जरूरत के मुताबिक किया जाता है। परंतु गत […]
संकट को अवसर में बदलना है, तो भारत को सुधारों की नई रूपरेखा चाहिए
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने शुल्क के मोर्चे पर जो कदम उठाए, उनसे भारत के आर्थिक नीति विशेषज्ञों में इस बात की रुचि उत्पन्न हो गई है कि भारत को उभरती चुनौतियों के प्रति किस तरह की प्रतिक्रिया देनी चाहिए। उनकी दिलचस्पी केवल यह देखने में नहीं है कि अमेरिका को आसान व्यापारिक शर्तों के […]
नियामकीय निकायों के मूल सिद्धांत पर न आए आंच
अगर हम पिछले तीन दशकों से भी अधिक पुरानी भारत के आर्थिक सुधारों की गाथा पर नजर डालें तो कुछ बातों को दोबारा याद करना सार्थक लगता है। 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण में इसे लेकर कुछ अंतर्निहित सोच थी कि कोई अर्थव्यवस्था कैसे संचालित की जाए और इसका आकार निरंतर कैसे बढ़ाया जाए। […]
सही आकलन के लिए बेहतर आंकड़े जरूरी
करीब साल भर पहले केंद्र के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने लंबे समय से अटके मगर बेहद जरूरी सांख्यिकीय सुधार की घोषणा की थी। उसने निर्णय लिया कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और उसके घटकों का आकलन करने के लिए छह के बजाय पांच ही संस्करण जारी किए जाएंगे। इस तरह देश की […]
सरकारी नौकरियां बढ़ीं, लेकिन कामकाज में तेजी आई या नहीं?
जून 2022 में नरेंद्र मोदी सरकार ने रोजगार निर्माण पर एक साहसी घोषणा की थी। उसने अगले 18 महीनों में केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में 10 लाख लोगों को नौकरी देने की बात कही थी। घोषणा के मुताबिक ये भर्तियां ‘मिशन’ की तरह की जानी थीं। घोषणा के राजनीतिक और आर्थिक मायने […]
Budget 2025: कर राहत, पारदर्शिता और नए वादों का बजट
यह कहना अनुचित नहीं होगा कि वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में देश की आबादी का एक छोटा हिस्सा छाया हुआ है। चर्चा का विषय देश के करीब 4.3 करोड़ आयकरदाताओं को मिली कर राहत है। वित्त मंत्री ने उन्हें कुल 1 लाख करोड़ रुपये की राहत दी है, जो केंद्र के कर राजस्व की […]









