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रेवेन्यू के रूप में टैरिफ: आयात शुल्क ढांचे में बदलाव से राज्यों की आमदनी बढ़ी

भारत के आयात शुल्कों की संरचना में बदलाव से राज्यों को राजस्व का एक बड़ा हिस्सा जा रहा है। बता रहे हैं एके भट्टाचार्य

Last Updated- August 14, 2025 | 11:00 PM IST
Import Duty
इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा

इन दिनों सभी शुल्कों की बात कर रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत को ‘ट्रैफिक किंग’ की संज्ञा दी है जिससे उनका आशय है कि यह काफी ऊंचे शुल्क लगा रहा है। ट्रंप ने भारत से आने वाली ज्यादातर वस्तुओं पर 50 फीसदी से अधिक शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है। शुल्कों की इस आंधी के बीच भारतीय निर्यातक सहमे नजर आ रहे हैं। हालांकि, इस आलेख का उद्देश्य इस बहस में पड़ना नहीं है कि क्या भारत वाकई अधिक शुल्क लगा रहा है। न इस आलेख का यहां इस बात से सरोकार है कि भारतीय निर्यात पर ऊंचे शुल्कों के परिणाम कितने गंभीर होंगे। इसके बजाय, यहां सरकारी खजाने में कर राजस्व के रूप में आने वाली रकम पर ऊंचे शुल्कों के प्रभाव के आकलन का प्रयास किया जा रहा है। ट्रंप ने जिन कारणों से शुल्क बढ़ाए हैं उनमें अपनी सरकार के राजस्व में इजाफा करना भी एक है। इसे देखते हुए यह समझना भी आवश्यक हो गया है कि भारत के कर राजस्व में शुल्कों की क्या भूमिका रहा है?

पिछले एक दशक या इससे कुछ अधिक वर्षों की अवधि सभी प्रकार के आयात शुल्कों से सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व के अध्ययन के लिए एक मजबूत आधार देती है। इसका कारण यह है कि इस अवधि के दौरान आयातित वस्तुओं एवं सेवाओं पर कर लगाने के तरीके में महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। 30 जून 2017 तक केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न आयात शुल्कों से जुटाए कुल कर राजस्व के लिए सीमा शुल्क व्यापक तस्वीर पेश करता था। किंतु, जुलाई 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था लागू होने के बाद ऐसी बात नहीं रह गई। आयात पर लगने वाले कई शुल्क जैसे प्रतिकारी शुल्क (काउंटरवेलिंग ड्यूटी) जीएसटी ढांचे में समाहित हो गए। जीएसटी में केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी और एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) जैसे तीन घटक हैं।

आईजीएसटी के दो हिस्से हैं। यह कर योग्य वस्तुओं एवं सेवाओं के सभी अंतर-राज्यीय लेनदेन और आयात पर लगाया जाता है। ऐसे ज्यादातर अंतर-राज्यीय लेनदेन और आयात पर आईजीएसटी दर लगभग 18 फीसदी है। आईजीएसटी से हासिल राजस्व केंद्र और राज्य दोनों साझा करते हैं और यह प्रक्रिया वस्तुओं एवं सेवाओं के अंतिम गंतव्य स्थान पर निर्भर करती है। लिहाजा, जीएसटी प्रणाली की शुरुआत के बाद आयात शुल्कों से भारत के कर राजस्व की पूरी तस्वीर तभी उपलब्ध हो पाएगी जब आप आयात पर सीमा शुल्क और आईजीएसटी दोनों के संग्रह पर विचार करते हैं।

जीएसटी की शुरुआत से पहले आखिरी पूर्ण वित्त वर्ष 2016-17 में केंद्र सरकार को सीमा शुल्क संग्रह से लगभग 2.25 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे। यह रकम भारत के नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.5 फीसदी के समतुल्य और उस वर्ष कुल वस्तु आयात की 8.7 फीसदी थी। लगभग 8 वर्षों बाद पिछले वित्त वर्ष सीमा शुल्क संग्रह 2.33 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर लगभग अपरिवर्तित रहा या जीडीपी का 0.7 फीसदी रह गया। इस गिरावट के साथ-साथ सीमा शुल्क संग्रह का हिस्सा वर्ष 2024-25 में भारत में हुए वस्तुओं के आयात का केवल 3.8 फीसदीहिस्सा रहा।

उल्लेखनीय है कि जीएसटी व्यवस्था प्रभावी होने के बाद सीमा शुल्क संग्रह भारत के आयात शुल्कों का एकमात्र संकेतक नहीं रह गया है। भारत के कर राजस्व को मजबूती देने में आयात पर आईजीएसटी की भूमिका अब काफी महत्त्वपूर्ण हो गई है। आयात पर सकल आईजीएसटी संग्रह 2018-19 (जीएसटी की शुरुआत के बाद पहला पूर्ण वित्त वर्ष) में 3 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 5.33 लाख करोड़ रुपये हो गया। दिलचस्प बात है कि कोविड महामारी का आयात शुल्कों से प्राप्त राजस्व संग्रह पर कोई बड़ा असर नहीं हुआ (न ही सीमा शुल्क और न ही आयात पर लगने वाले आईजीएसटी पर) जबकि 2020-21 में अन्य शुल्कों से संग्रह पर तगड़ी चोट पड़ी थी।

सीमा शुल्क और आयात पर आईजीएसटी से संयुक्त संग्रह वित्त वर्ष 2018-19 के 4.18 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर कर 2024-25 में 7.66 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मगर इस अवधि में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में और वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात के लिहाज से आयात पर सीमा शुल्क और आईजीएसटी का संयुक्त संग्रह मामूली ही बढ़ पाया। यह जीडीपी के 2.21 फीसदी से बढ़कर 2.32 फीसदी हो गया और कुल वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात का 9.34 फीसदी से बढ़कर 9.91 फीसदी हो गया।

मगर आयात शुल्कों से हासिल राजस्व के स्वरूप में बदलाव साफ नजर आ रहा था। जीएसटी प्रणाली की शुरुआत के बाद पिछले 8 वर्षों में कुल आयात शुल्क संग्रह में सीमा शुल्क की हिस्सेदारी काफी कम हो गई। आयात पर आईजीएसटी बढ़ने से आयात शुल्क में वृद्धि दर बरकरार रही। आयात पर आईजीएसटी 2018-19 में दर्ज 3 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 5.53 लाख करोड़ रुपये हो गया। बेशक कुल संग्रह का करीब 20 फीसदी हिस्सा निर्यात रिफंड के रूप में निकलने से आयात पर शुद्ध आईजीएसटी थोड़ा कम रहा। मगर आयात पर आईजीएसटी में तेज वृद्धि से जुड़े बड़े पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वास्तव में जुलाई 2017 में जीएसटी की शुरुआत के बाद आयात पर आईजीएसटी का हिस्सा कुल सालाना जीएसटी संग्रह में लगातार एक चौथाई रहा है।

मगर जहां तक केंद्र की बात है तो कुल आयात शुल्क के संग्रह की संरचना में बदलाव के बीच वित्त आयोग द्वारा राजस्व बंटवारे के संबंध में दिए गए सुझावों के परिप्रेक्ष्य में उसके शुद्ध कर राजस्व पर असर हुआ है। इस अवधि के दौरान केंद्र को सीमा शुल्क संग्रह का लगभग 41-42 फीसदी हिस्सा राज्यों के साथ साझा करना पड़ा है। मगर आयात पर आईजीएसटी संग्रह राज्यों के साथ काफी ऊंची दरों पर साझा करना होगा। आयात पर आईजीएसटी संग्रह का लगभग आधा हिस्सा राज्यों के साथ साझा किया जाता है। शेष हिस्सा केंद्र के पास आता है मगर वित्त आयोग द्वारा निर्धारित 41-42 फीसदी राजस्व बंटवारे के प्रावधानों के अनुसार यह रकम भी राज्यों के साथ साझा करनी होती है।

इन आंकड़ों से एक बात साफ हो जाती है कि कुल आयात शुल्क संग्रह में आईजीएसीटी का हिस्सा सीमा शुल्क की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। मगर जिस रूप में ये शुल्क राजस्व साझा किए जा रहे हैं उसके कारण आयात पर आईजीएसटी की बढ़ती हिस्सेदारी में राज्य तुलनात्मक रूप से एक बड़ा हिस्सा हासिल कर रहे हैं। भारत को वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात करने वाले निर्यातक ऊंचे शुल्कों की शिकायत करते रहे हैं और केंद्र इसका दोष अपने सिर ले सकता है। मगर ऐसे शुल्कों से राज्यों को अधिक राजस्व की प्राप्ति होती है। इसे राज्यों की तरफ केंद्र का दोस्ताना एवं उदार दृष्टिकोण कहा जा सकता है। परंतु, केंद्र दीर्घ अवधि तक इस स्थिति में खुश नहीं रह सकता क्योंकि वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात पर कुल शुल्क राजस्व संग्रह का एक मोटा हिस्सा राज्यों के पास जा रहा है।

14वें और 15वें वित्त आयोग ने जब से केंद्रीय करों में राज्यों को मिलने वाला हिस्सा बढ़ाकर क्रमशः 42 फीसदी और 41 फीसदी कर दिया है तब से पिछले लगभग एक दशक या इससे कुछ अधिक अवधि में केंद्र की उपकरों और अधिभारों पर निर्भरता बढ़ गई है। उपकर और अधिभार से प्राप्त राजस्व विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं है। इससे करों का बड़ा स्थानांतरण रुक गया है। क्या केंद्र आयात राजस्व में भी राज्यों की हिस्सेदारी सीमित रखने के लिए कुछ इसी तरह के उपाय करेगा?

First Published - August 14, 2025 | 10:58 PM IST

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