क्या 2024-25 के केंद्रीय बजट के लिए हाल ही में जारी किए गए प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ों में ‘देजा वू’ की भावना है? देजा वू एक ऐसी स्थिति के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिसमें व्यक्ति को लगता है कि वह किसी घटना को पहले भी अनुभव कर चुका है, भले ही वह पहली बार घटित हो रही हो। ये आंकड़े गत माह के अंत में सार्वजनिक किए गए। इन प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ों की अगर 2024-25 के संशोधित अनुमानों से तुलना की जाए तो पता चलता है कि राजस्व के बढ़-चढ़े अनुमानों की समस्या दोबारा सिर उठा चुकी है। ऐसा चार वर्ष के अंतराल के बाद हुआ है।
किसी वित्त वर्ष के लिए केंद्रीय बजट के संशोधित अनुमान वर्ष के समापन के करीब दो माह पहले जारी किए जाते हैं। यह प्राय: अगले वर्ष के बजट की प्रस्तुति से टकराते हैं। इस तरह 2024-25 के बजट के संशोधित अनुमान 1 फरवरी, 2025 को उपलब्ध हुए जिस दिन 2025-26 का बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया। हालांकि संशोधित अनुमान उस वर्ष के लिए एक अनुमान होता है लेकिन इसके और उन प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ों के बीच अधिक अंतर नहीं होना चाहिए जो उस वर्ष मई के अंत में उपलब्ध होते हैं। आदर्श स्थिति में राजस्व संग्रह का बढ़ाचढ़ाकर अनुमान लगाने से बचना चाहिए। ठीक इसी तरह, व्यय का सही अनुमान न लगाना सरकारी वित्त के प्रबंधन में भी दिक्कतें पैदा कर सकता है।
निर्मला सीतारमण ने बीते छह वर्षों में जो बजट पेश किए उनमें 2019-20 के बजट में राजस्व का अधिक आकलन करना एक बड़ी समस्या थी, जो उनका पहला बजट भी था। इस समस्या के आकार की बात करें तो वह पिछले वर्ष के बजट की तुलना में बहुत छोटा था, लेकिन इसने उनके पहले बजट को दिक्कत में डाला। ऐसे में वास्तविक विशुद्ध कर राजस्व संग्रह की बात करें तो 2019-20 में (जब कोविड लॉकडाउन की घोषणा मार्च 2020 के तीसरे सप्ताह में की गई थी) यह संशोधित अनुमान की तुलना में 13.6 फीसदी कम निकला। गैर कर राजस्व में भी संशोधित अनुमान से 5 फीसदी की कमी आई और व्यय में केवल मामूली बदलाव आया। इस तरह 2019-20 में वास्तविक राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 4.6 फीसदी हो गया जबकि संशोधित अनुमान में इसके 3.8 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था। कोविड भी एक कारक रहा है लेकिन वित्त मंत्रालय की राजस्व का अधिक अनुमान लगाने की प्रवृत्ति भी इस भारी अंतर के लिए समान रूप से जिम्मेदार रही है।
अगले चार वर्षों तक सीतारमण और वित्त मंत्रालय की उनकी टीम ने संशोधित अनुमान जताने में अत्यधिक सावधानी बरती। राजस्व के अधिक अनुमान की दिक्कत के बजाय राजस्व का कम अनुमान लगाया जाने लगा। इन चार सालों में यानी 2020-21 से 2023-24 के बीच वास्तविक आंकड़े पहले जारी संशोधित अनुमान की तुलना में अधिक रहे। इस अवधि के दौरान विशुद्ध कर राजस्व में इजाफे का दायरा 0.13 फीसदी से करीब 6 फीसदी तक अधिक रहा। व्यय के मोटे तौर पर नियंत्रण में रहने के बीच वास्तविक राजकोषीय घाटा इन चार सालों में संशोधित अनुमान से कम रहा।
गत माह के आंकड़ों ने बताया कि यह रुझान अब बदल गया है। 2024-25 में शुद्ध कर राजस्व के लिए प्रारंभिक वास्तविक आंकड़े संशोधित अनुमानों की तुलना में 2.3 फीसदी कम हैं। दिलचस्प बात यह है कि सबसे बड़ा बदलाव व्यक्तिगत आय कर संग्रह में नजर आया जहां प्रारंभिक वास्तविक आंकड़े 2024-25 के संशोधित अनुमानों की तुलना में करीब 6 फीसदी कम रहे। बीते छह साल में व्यक्तिगत आय कर प्राप्तियों की सकल कर राजस्व में हिस्सेदारी करीब एक चौथाई से बढ़कर एक तिहाई हो गई। महज चार महीनों में व्यक्तिगत आय कर संग्रह को संशोधित करके 74,000 करोड़ रुपये तक कम करना पड़ा जो चिंता का विषय है और इसकी वजह की जांच की जानी चाहिए। क्या इसमें ऐसा कोई संदेश छिपा है कि जिससे सरकार चालू वर्ष में व्यक्तिगत आय कर संग्रह को लेकर कोई रुझान देख सकती है। वर्ष 2024-25 के लिए व्यक्तिगत आय कर संग्रह में तेज गिरावट ही शायद वह प्रमुख वजह थी जिसके चलते सरकार ने राजस्व व्यय पर लगाम लगाई। वर्ष2024-25 के 37.1 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान की तुलना में राजस्व व्यय का संशोधित अनुमान 36.98 लाख करोड़ रुपये रहा। चार महीने बाद इसके प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ों को 36.03 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया।
इन बदलावों में इकलौती उम्मीद की किरण है व्यय की गुणवत्ता में सुधार। पूंजीगत व्यय के प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ों में इजाफा नजर आया जबकि राजस्व व्यय के मामले में यह कम रहा। अगर जीडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा मोटे तौर पर अपरिवर्तित रहा तो ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था का सांकेतिक आकार इस अवधि में बढ़ा। इसके परिणामस्वरूप घाटा जीडीपी के 4.8 फीसदी पर रहा।
वित्त मंत्रालय को संशोधित अनुमान और प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ों के बीच के अंतर को न्यूनतम क्यों रखना चाहिए? असल में, यह न केवल सरकार की वित्तीय स्थिति के बारे में भ्रामक संकेत देता है, बल्कि भारी अंतर केंद्रीय मंत्रालयों को मजबूर करते हैं कि वे अवांछित विकल्पों की ओर जाएं। चूंकि सरकार राजकोषीय घाटे को कम करके एक खास स्तर तक लाने को प्रतिबद्ध है इसलिए राजस्व के आंकड़ों को संशोधित अनुमानों में बढ़ाचढ़ाकर पेश करना, केंद्रीय मंत्रालयों को इस बात के लिए मजबूर करता है कि वे साल के आखिरी महीनों में अपने व्यय में कटौती करें ताकि घाटा लक्ष्य के करीब बने रहें। आखिरी मिनट की ऐसी व्यय कटौती अक्सर राजकोष को अस्वास्थ्यकर नतीजों की ओर ले जाती है। इससे काल्पनिक व्यय बजट की स्थिति भी बन सकती है जिसके नतीजतन व्यय संबंधी देनदारियों को राज्य के स्वामित्व वाली इकाइयों को हस्तांतरित किया जा सकता है या बजट से बाहर उधारी का सहारा लिया जा सकता है, जबकि यह चलन कुछ साल पहले समाप्त हो चुका था।
राजस्व के अधिक अनुमान का करीबी परीक्षण करने की एक और वजह है। वास्तविक आंकड़ों का संशोधित अनुमान से कम रह जाना आर्थिक गतिविधियों की गति में कमजोरी का भी आरंभिक संकेत है। वर्ष 2019-20 में राजस्व के अधिक अनुमान इस बात के संकेत थे कि आर्थिक गतिविधियों में धीमापन आ रहा है। इसी प्रकार 2020-21 से 2023-24 तक चार साल के दौरान संशोधित अनुमानों में राजस्व अनुमानों का कम रहना जीडीपी वृद्धि की गति में चरणबद्ध तरीके से सुधार के साथ हुआ।
वर्ष 2024-25 में देश की आर्थिक वृद्धि दर घटकर 6.5 फीसदी रह गई जबकि 2023-24 में वह 9.2 फीसदी थी। 2024-25 में राजस्व को बढ़ाचढ़ा कर पेश करने की समस्या के दोबारा सामने आने को अर्थव्यवस्था में वृद्धि की कमजोर पड़ती गति का संकेत माना जा सकता है। 2024-25 के संशोधित अनुमान में उल्लिखित आंकड़ों की तुलना में व्यक्तिगत आय कर, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क के लिए अनंतिम वास्तविक राजस्व संग्रह में कमी, भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करने वालों के लिए एक चेतावनी की तरह होना चाहिए।
बाहरी अनिश्चितताओं में इजाफे के बीच देश की अर्थव्यवस्था और सरकारी वित्त के समक्ष चुनौतियां और मजबूत होती जाएंगी। इतना ही नहीं, राजकोषीय अनुशासन का संबंध न केवल घाटे के लक्ष्य को हासिल करने से है बल्कि राजस्व और व्यय के सटीक अनुमानों से भी उसका ताल्लुक है। ऐसे में अब सरकार को संशोधित अनुमानों की तुलना में वास्तविक राजस्व संग्रह में आई कमी के कारणों की जांच पर ध्यान देना चाहिए।