‘ये फेवीकोल का जोड़ है…’ ‘चल मेरी लूना।’ ‘कुछ खास है हम सभी में।’ ‘हर घर कुछ कहता है…’ इन टैगलाइंस के जरिये इनसे संबंधित ब्रांड्स को घर-घर में जाना पहचाना नाम बनाने वाले विज्ञापन गुरु पीयूष पांडेय का 24 अक्टूबर को 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
देश के विज्ञापन जगत पर जो छाप पीयूष पांडेय ने छोड़ी, वैसी बहुत कम लोग छोड़ पाते हैं। उनके पास एक कमाल की नजर थी जो भांप जाती थी कि इस देश का दिल किन बातों से धड़कता है, वह एक ऐसे शख्स थे जो रोजमर्रा के संघर्षों से उपजे हास्य को अपनी जादुई छुअन और कहन से लोगों तक बखूबी पहुंचाने का हुनर रखते थे। उन्हें इस बात की समझ थी कि अवाम तक पहुंचने के लिए उसकी भाषा और उससे जुड़ी चीजों का इस्तेमाल जरूरी है। उन्होंने यह काम जबरदस्त महारत से किया।
1955 में जयपुर में जन्मे पीयूष का जुड़ाव 27 वर्ष की उम्र में ओगिल्वी से हुआ और उसके बाद उन्होंने मानो विज्ञापन की दुनिया के खेल के नियम ही बदल दिए।
बौद्धिक और अंग्रेजी केंद्रित माने जाने वाले इस विज्ञापन क्षेत्र को उन्होंने आम लोगों से जोड़ा। वह मानते थे कि विज्ञापन तभी मनचाही कामयाबी हासिल कर पाएगा जब वह लोगों के दिमाग को नहीं बल्कि उनके दिलों को छुएगा। उन्होंने एक के बाद एक बेहतरीन विज्ञापनों के जरिये अपनी बात को साबित किया। फिर चाहे वह फेवीकोल का शानदार विज्ञापन अभियान हो (जिसमें उनका गृह राज्य राजस्थान बार-बार नजर आया) या फिर मध्य प्रदेश पर्यटन के लिए ‘हिंदुस्तान का दिल देखो’ अभियान। उन्हें सादा लेकिन प्रभावशाली कहानियां, टैगलाइंस और जिंगल्स लिखने में महारत हासिल थी। उन्होंने देश के विज्ञापन जगत को एक नई पहचान दी। और इसकी शुरुआत उन्होंने अपने पहले विज्ञापन से की जो सनलाइट डिटर्जेंट का था।
अपने इस सफर में वे परिपक्व होते भारत की यात्रा को भी रेखांकित करते रहे- उदारीकरण के पहले के भारत से लेकर आकांक्षी और प्रगति चाहने वाले भविष्य तक उन्होंने सब कुछ दर्ज किया। भारतीय विज्ञापन जगत के पितामह के रूप में पहचाने जाने वाले पांडेय को 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
उनके निधन की खबर सामने आते ही श्रद्धांजलियों का तांता लग गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा, ‘…उन्होंने विज्ञापन और संचार की दुनिया में एक ऐतिहासिक योगदान दिया। वर्षों के दौरान हमारे बीच हुई बातचीत की यादें मैं स्नेहपूर्वक संजोकर रखूंगा…।’ 2014 के लोक सभा चुनाव से पहले पांडेय के ‘अबकी बार मोदी सरकार’ के नारे ने जनता को अपने साथ बखूबी जोड़ा और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक्स पर लिखा, ‘भारतीय विज्ञापन जगत के एक दिग्गज और किंवदंती, उन्होंने आम बोलचाल की भाषा, जमीन से जुड़ा हास्य और सच्ची आत्मीयता को उसमें समाहित करके संचार की दुनिया को बदल दिया। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।’
विज्ञापन फिल्मकार प्रह्लाद कक्कड़ ने कहा, ‘वह विज्ञापनों में देसीपन लेकर आए। उन्होंने हिंदी में सोचा और लिखा।’
लेखक और विज्ञापन विशेषज्ञ प्रसून जोशी ने कहा, ‘पांडेय ने एक पूरी पीढ़ी को यह विश्वास दिलाया कि कोई व्यक्ति अपनी संस्कृति से जुड़ा रहकर भी ऐसा काम कर सकता है जो वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली हो।‘ अल्केमिस्ट ब्रांड कंसल्टिंग के संस्थापक और प्रबंध निदेशक समित सिन्हा ने कहा, ‘जब विज्ञापन उद्योग वर्ग भेद से ग्रस्त था और स्थानीय भाषाओं में बने विज्ञापनों को दोयम दर्जे का माना जाता था, तब पांडेय ने लगभग अकेले ही उस धारणा को बदल दिया।’
लॉयड मथायस, जिन्होंने 2005-2006 में मोटोरोला के मार्केटिंग प्रमुख के रूप में पांडेय के साथ काम किया, ने कहा, ‘पांडेय की रचनात्मकता अंग्रेजी सोच से नहीं, बल्कि भारतीय विचार प्रक्रिया से गहराई से जुड़ी हुई थी।‘
उनके विज्ञापन, उदाहरण के लिए कैडबरी की वह शानदार फिल्म जिसमें एक युवती पूरे उत्साह और आजादी के साथ क्रिकेट मैदान पर नाचती है, अपनी आत्मीयता और बेझिझक भावनाओं के उत्सव के कारण लोगों के दिलों में गूंजते रहे।
मोंडलीज इंटरनैशनल के एएमईए (एशिया प्रशांत, पश्चिम एशिया और अफ्रीका) कारोबार के दीपक अय्यर ने उन्हें ‘सिर्फ एक रचनात्मक प्रतिभा नहीं, बल्कि एक प्रिय मित्र और प्रेरणा’ बताते हुए कहा कि उनकी सच्चाई, हास्य और संवेदनशीलता ने ऐसी कहानियां रचीं जो आम जीवन का हिस्सा बन गईं।