अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड सूचकांकों में भारत को शामिल किए जाने से भारत के बॉन्ड बाजार में विदेशी भागीदारी में ‘उल्लेखनीय वृद्धि’ हो सकती है और इससे मध्यावधि के हिसाब से चालू खाते के घाटे (सीएडी) की भरपाई करने के लिए पोर्टफोलियो प्रवाह का समर्थन मिल सकता है। हालांकि इसने कहा है कि अस्थिर पोर्टफोलियो निवेश वैश्विक वित्तीय स्थितियों और जोखिम प्रीमियम में बदलाव के हिसाब से बहुत संवेदनशील है।
वैश्विक बॉन्ड इंडेक्स प्रदाता अपने प्लेटफॉर्म में भारत के सॉवरिन डेट को शामिल करने के लिए भारत से संपर्क कर रहे हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार से रूस के निकलने की वजह से बड़े उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्था की जरूरत महसूस की जा रही है।
हालांकि वित्त मंत्रालय जी-सेक को वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल किए जाने के लिए पूंजीगत लाभ कर को तर्कसंगत बनाने जैसा कोई कर प्रोत्साहन देने को लेकर अनिच्छुक रहा है।
वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने की स्थिति में सरकार पर राजकोषीय अनुशासन का पालन करने और यह सुनिश्चित करने का दबाव पड़ने की संभावना है कि उसके बॉन्ड निवेश ग्रेड बनाए रखें।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का व्यापार और पूंजी खाते का दौर तुलनात्मक रूप से प्रतिबंधित बना हुआ है, भले ही विदेश व्यापार प्रोत्साहन में कुछ प्रगति हुई है और एफडीआई और पोर्टफोलियो प्रवाह का उदारीकरण हुआ है।
आईएमएफ ने कहा है, ‘ साल के दौरान (वित्त वर्ष 23) भारतीय प्राधिकारियों ने पूंजी खाते के उदारीकरण की दिशा में और कदम उठाए व बाहरी उदारी की सीमा बढ़ा दी और सरकारी बॉन्डों की उपलब्धता विदेशी निवेशकों तक करने की संभावनाएं व्यापक की। वित्त वर्ष 23 में एफडीआई ने चालू खाते के घाटे के एक हिस्से की भरपाई की है, लेकिन एफडीआई को बढ़ावा देने के लिए आगे और ढांचागत सुधार करने और निवेश के दौर में सुधार की जरूरत है।’
आईएमएफ ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का सीएडी घटकर जीडीपी का 1.8 प्रतिशत रह जाएगा, जो वित्त वर्ष 23 में जीडीपी का 2 प्रतिशत था। सेवाओं के निर्यात में तेजी और तेल के आयात की लागत कम आने की स्थिति को देखते हुए आईएमएफ ने घाटा कम रहने का अनुमान लगाया है।
वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही में (मार्च 2023) भारत के चालू खाते का घाटा 0.2 प्रतिशत घट गया, जो वित्त वर्ष 23 की दिसंबर तिमाही में 2 प्रतिशत था। यह मुख्य रूप से व्यापार घाटे में कमी और सेवाओं निर्यात तेज रहने के कारण हुआ।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कम अवधि के हिसाब से सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे पर अतिरिक्त खर्च करने के कारण चालू खाते का घाटा बढ़ेगा, उसके बाद इसमें कमी आएगी। मध्यावधि के हिसाब से बाहरी पुनर्संतुलन के लिए वित्तीय समेकन, निर्यात संबंधी बुनियादी ढांचे का विकास और मुख्य कारोबारी साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत से वस्तुओं और सेवाओं के टिकाऊ विकास को बल मिलेगा। निवेश में उदारीकरण और शुल्कों में कमी, खासकर मध्यस्थ वस्तुओं के शुल्कों में कमी से इसमें मदद मिलेगी।’
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘ढांचागत सुधार से वैश्विक मूल्य श्रृंखला का एकीकरण मजबूत हो सकता है और इससे एफडीआई आकर्षित होगी। इससे बाहरी अस्थिरता कम होगी। विनिमय दर में लचीलापन झटकों को सहने में मुख्य भूमिका निभा सकता है, जिसमें सीमित हस्तक्षेप हो।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की तुलनात्मक रूप से मजबूत बाहरी स्थिति और भंडार का स्तर पर्याप्त होने के कारण विदेशी मुद्रा का हस्तक्षेप बाजार की स्थिति पर असर डालने के हिसाब से सीमित होगा।
वित्त वर्ष 22 की पहली छमाही में बढ़ते चालू खाते के घाटे और और पोर्टफोलिटो निवेश बाहर जाने से रुपये के अवमूल्यन का दबाव था। यह दबाव तब खत्म हो गया, जब वित्त वर्ष 22 की दूसरी छमाही और 2023 की शुरुआत में चालू खाते का घाटा कम हुआ और निवेशकों की धारणा में सुधार हुआ। 2022 में औसत वास्तविक प्रभावी विनिमयय दर (आरईईआर) में 2021 के औसत की तुलना में करीब 1 प्रतिशत बढ़ा।