वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को संसद में वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया। इस बजट में पूंजीगत व्यय के लिए रखे गए सार्वजनिक फंड में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली। जैसा कि उन्होंने कहा यह लगातार तीसरा बजट है जिसमें सरकार ने पूंजीगत व्यय में इजाफा किया है। इसके लिए 10 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है जिसका आधे से अधिक हिस्सा यानी 5.13 लाख करोड़ रुपये परिवहन क्षेत्र में जाएगा।
इस आधे से अधिक भाग का तकरीबन आधा भाग यानी 2.4 लाख करोड़ रुपये की राशि भारतीय रेल के हिस्से में जाएगी और वर्ष के लिए उसका पूंजीगत व्यय 2.6 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। सरकार की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उसने अपने बजटों में अधोसंरचना व्यय पर लगातार जोर दिया है और कम निवेश की समस्या को भी उसने सही समझा है जिससे देश के प्रमुख अधोसंरचना क्षेत्र प्रभावित हैं, खासतौर पर परिवहन।
भारतीय रेल देश में लोगों के आवागमन के लिए जीवन रेखा का काम करता है और वह औद्योगिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह अक्सर कम निवेश का शिकार रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश का बढ़ना शानदार खबर है। ऐसे कई तरीके हैं जिनके जरिये पैसे का रेलवे के भीतर ही प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए बजट के आंकड़े बताते हैं कि 30,000 करोड़ रुपये की राशि पटरियों के दोहरीकरण के लिए रखी गई है जबकि 2021-22 में यह राशि 9,000 करोड़ रुपये से कम थी।
इसके अलावा 32,000 करोड़ रुपये की राशि नई पटरियों पर खर्च की जानी है जो दो वर्ष पहले की तुलना में 50 फीसदी अधिक है। करीब 40,000 करोड़ रुपये की राशि रॉलिंग स्टॉक पर खर्च की जानी है। पिछले बजट में इस मद में केवल 8,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित थी। विद्युतीकरण के लिए 8,000 करोड़ रुपये की राशि रखी गई है।
यह छोटा आंकड़ा नहीं है और पूंजीगत बजट में इस विस्तार को देखते हुए अगले वर्ष के दौरान रेलवे की खपत और क्रियान्वयन क्षमता के बारे में कुछ उचित सवाल किए जा सकते हैं। हालांकि दीर्घकालिक आधार पर भी कुछ सवाल किए जा सकते हैं।
रेलवे में पूंजी निवेश लंबे समय से लंबित है लेकिन इसके साथ ऐसी योजना शामिल होनी चाहिए जो इस प्रकार के पूंजीगत व्यय को वित्तीय दृष्टि से व्यवहार्य बनाए। यह एकबारगी प्रयास से नहीं हो सकता और साथ ही केंद्रीय बजट से भी इस प्रकार की सहायता की अपेक्षा हमेशा नहीं की जा सकती है क्योंकि आने वाले वर्षों में सरकार को भी अपनी राजकोषीय स्थिति मजबूत करनी होगी। ऐसे में यह समझने का काम शुरू होना चाहिए कि रेलवे की आय में इतना इजाफा कैसे हो सके कि वह सार्थक अधिशेष जुटा सके और उसका इस्तेमाल उसके सुधार में किया जा सके।
इसके लिए दरें बढ़ानी होंगी और यात्रियों के किराये में दी जाने वाली सब्सिडी को माल भाड़े में समायोजित करने जैसी क्रॉस सब्सिडी को समाप्त करना होगा। अगर माल भाड़े से होने वाली आय को रेलवे के आंतरिक सुधार में लगाना है तो यात्री किराये को मुनाफे वाला बनाना ही होगा।
स्वाभाविक सी बात है कि मौजूदा प्रबंधन व्यवस्था में यह आसानी से नहीं होगा। ऐसे में वित्तीय सुधारों के अलावा प्रशासनिक सुधार और राजनीतिक नियंत्रण से स्वतंत्रता को भी प्राथमिकता देनी होगी। अधोसंरचना और खासकर रेलवे पर सरकार का ध्यान अहम है और उसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन यह बजट आवंटन तक सीमित नहीं रह सकता। प्रक्रियाओं का सुधार तथा ऐसे सत्ता के स्वतंत्र केंद्रों का निर्माण जरूरी है जिनमें दरों को समुचित करने की क्षमता और अधिकार हो। ऐसा करने पर ही नेटवर्क पर किए जा रहे निवेश का फायदा मिलना शुरू होगा।