सरकार MSME के लिए एक नया सुधार पैकेज लाने की तैयारी में है। पीएमओ इस दिशा में MSME मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहा है। इस पहल का मकसद छोटे उद्योगों पर कर और नियमों का बोझ कम करना और उनकी लागत पर टिके रहने की क्षमता बढ़ाना है। यह पैकेज साल के अंत तक घोषित किया जा सकता है।
बिजनेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक, यह पूरी तैयारी तीन चरणों में हो रही है। पहले चरण में स्थानीय स्तर पर वर्कशॉप, दूसरे में नवंबर में सात शहरों में क्षेत्रीय सम्मेलन, और अंत में राष्ट्रीय सम्मेलन किया जाएगा। इन बैठकों के जरिए जमीन से जुड़ी राय और सुझाव इकट्ठे कर अंतिम सुधार पैकेज तैयार किया जाएगा।
एक अधिकारी के अनुसार, “इन सुधारों को नीचे से ऊपर की दिशा में तैयार किया जा रहा है। जोनल बैठकों के ज़रिए हर क्षेत्र की परेशानियाँ और ज़रूरतें समझी जाएँगी, और फिर राष्ट्रीय स्तर पर इनके आधार पर सिफारिशें तैयार की जाएंगी।”
दस्तावेजों के मुताबिक, यह पूरी चर्चा दो बातों पर केंद्रित है – खर्च कम करना और काम की क्षमता बढ़ाना। सरकार ने एमएसएमई इकाइयों से पैसे की लागत, कच्चे माल, माल ढुलाई, बिक्री, नियमों और क्वालिटी से जुड़ी बातों पर सुझाव मांगे हैं।
इसके साथ ही, मंत्रालय ने यह भी कहा है कि तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और नए विचारों (नवाचार) की मदद से देशभर में मैन्युफैक्चरिंग को मजबूत बनाने के तरीके सुझाए जाएं।
MSME मंत्रालय ने उद्योगों से यह सुझाव भी मांगे हैं कि उद्योग आधारित ट्रेनिंग, तकनीकी इन्फ्रा, और वित्तीय सहायता तंत्र (जैसे वेंचर कैपिटल, फंड-ऑफ-फंड्स) को कैसे बेहतर बनाया जाए। साथ ही, कारोबार और कॉलेजों के बीच सहयोग बढ़ाकर शोध और नए विचारों को आगे बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है।
सरकार ने बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) से जुड़े नियमों को और आसान बनाने के सुझाव भी मांगे हैं। इससे छोटे उद्योग अपने पेटेंट, ट्रेडमार्क और जीआई टैग को आसानी से सुरक्षित कर सकेंगे और अपने नए विचारों का व्यावसायिक इस्तेमाल कर पाएंगे।
एमएसएमई मंत्रालय नवंबर के मध्य तक अपनी सिफारिशें प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेजने की योजना बना रहा है। इसके बाद वित्त मंत्रालय इन सुझावों की जाच और समीक्षा करेगा, ताकि यह समझा जा सके कि इनका सरकारी खर्च और नीतियों पर क्या असर पड़ेगा। इसके बाद अंतिम सुधार पैकेज को मंजूरी के लिए तैयार किया जाएगा।
कानूनी विशेषज्ञ अभिषेक ए. रस्तोगी का कहना है कि एमएसएमई सेक्टर लंबे समय से सरल टैक्स व्यवस्था और तेज़ कानूनी समाधान की मांग कर रहा है। उन्होंने बताया कि छोटे उद्योग चाहते हैं कि जीएसटी की 5% और 18% दरों को मिलाकर लगभग 15% की एक समान दर बना दी जाए। इससे टैक्स देना आसान होगा, उलटी कर संरचना की दिक्कत कम होगी, और पैसों का फ्लो बेहतर हो सकेगा।
रस्तोगी ने यह भी कहा कि टैक्स के अलावा, मुकदमों की लंबी प्रक्रिया और दूरी छोटे कारोबारों के लिए बड़ी परेशानी है। उन्होंने बताया, “कई एमएसएमई यूनिट्स राज्य की राजधानियों से काफी दूर होती हैं। जब विवाद हाईकोर्ट तक पहुंचते हैं, तो दूरी और खर्च दोनों ही न्याय पाने में मुश्किल पैदा करते हैं।”
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, एमएसएमई क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 30 प्रतिशत योगदान देता है और करीब 30 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है। इस तरह, यह कृषि के बाद देश का सबसे बड़ा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। सुधारों के इस नए दौर से उम्मीद की जा रही है कि छोटे उद्योगों की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, उनका खर्च घटेगा, और इससे देश की अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार मिलेगी।