पांच महीने में ही खत्म हो गया मनरेगा का 63 फीसदी आवंंटन | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली September 10, 2020 | | | | |
ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली रोजगार योजना मनरेगा के तहत काम मांगने वाले लोगों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खरीफ फसलों की बुआई पूरी होने के बाद भी कई लोग मनरेगा के तहत रोजगार पाने के लिए कतारों में खड़े हैं। दूसरी तरफ शहरों से प्रवासी मजदूरों के अपने गांव लौटने से भी मनरेगा उनके लिए जीविका का एक बड़ा साधन बन गया है। इन सब का नतीजा यह हुआ है कि इस योजना के लिए सरकार की ओर से आवंटित रकम कम पडऩे लगी है।
8 सितंबर तक पिछले पांच महीनों के दौरान इस योजना के लिए आवंटित कुल रकम 101,500 करोड़ रुपये का लगभग 63 प्रतिशत खर्च हो चुका है। चालू वित्त वर्ष में 6 महीने अभी और शेष हैं और ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि पूरे 100 दिनों का रोजगार मुहैया कराने के लिए योजना के लिए आवंटित रकम दिसंबर या अधिक से अधिक जनवरी के अंत तक खत्म हो जाएगी। मनरेगा की वेबसाइट के अनुसार 9 सितंबर तक योजना पर 63,511.95 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं,जबकि आवंटित रकम करीब 63,176.43 करोड़ रुपये है। इस तरह आवंटित रकम और खर्च हुई रकम के बीच 335.52 करोड़ रुपये का अंतर है। वेबसाइट के अनुसार छत्तीसगढ़ जैसे कुछ बड़े राज्यों में 8 सितंबर तक 3,200 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया था, जबकि बिहार जैसे राज्यों में इसी तारीख तक 224.24 करोड़ रुपये का बकाया जमा हो गया है। ओडिशा में करीब मजदूरों का 70 करोड़ रुपये का भुगतान होना है। अगर सरकार ने चालू वित्त वर्ष में मनरेगा के लिए घोषित अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये जल्द आवंटित नहीं किए तो मामला बिगड़ सकता है।
हालांकि आवंटित रकम और मजूदरी के मद में दी गई रकम में अंतर बदलता रहता है, लेकिन इससे योजना के लिए रकम के आवंटन में सुस्ती का संकेत मिल रहा है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में मनरेगा के लिए 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, जो वित्त वर्ष 2019-20 की अनुमानित रकम से 13.3 प्रतिशत कम है। लॉकडाउन में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांव चले गए, जिसके बाद मनरेगा के तहत दिए जाने वाले रोजगारों की काफी बढ़ गई। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने इस योजना के लिए आवंटन 40,000 करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया था। इस तरह, 2020-21 में मनरेगा के लिए आवंटन बढ़कर किसी भी वर्ष के मुकाबले सर्वाधिक 101,500 करोड़ रुपये हो गया। इनमें करीब 16,000 करोड़ रुपये पिछले वर्ष की बकाया रकम के मद में आवंटित हुए हैं, जिससे कुल मिलाकर इस वर्ष योजना के लिए 86,000 करोड़ रुपये शेष रह गए।
मनरेगा के लिए आवंटित रकम पर अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, बेंगलूरु में सहायक प्राध्यापक राजेंद्रन नारायण कहते हैं, 'मेरा मानना है कि सरकार को अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये तत्काल जारी करना चाहिए नहीं तो मजदूरों को वेतन देने में देरी होनी शुरू हो जाएगी।'
नारायण ने कहा कि 100 दिनों का रोजगार देने के लिए योजना के तहत अधिक रकम की जरूरत है, क्योंकि सरकार की तरफ से दी गई आवंटित रकम अधिक दिनों तक नहीं टिक पाएगी। उन्होंने कहा कि रकम नहीं मिली तो लोगों की दिलचस्पी कम हो जाएगी।
चालू वर्ष के पहले पांच महीने में योजना के तहत करीब 5.8 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला है, जबकि पिछले पांच वर्षों में योजना के तहत काम करने वाले परिवारों की औसत संख्या करीब किसी पूरे वर्ष 5.2 से 5.3 करोड़ रही है। इस तरह, इस साल यह संख्या लगभग 9.4 प्रतिशत तक बढ़ चकी है।
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