अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के दिग्गजों ने बिजनेस स्टैंडर्ड मंथन में कहा कि इस उद्योग की दीर्घावधि सफलता के लिए आपूर्ति श्रृंखला का स्थानीयकरण और घरेलू निर्माण के प्रमुख खंडों को लगातार सरकारी समर्थन जरूरी होगा। क्या भारत खुद को अक्षय ऊर्जा केंद्र के अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है, इस परिचर्चा से जुड़े एक सत्र में अदाणी ग्रीन एनर्जी के मुख्य कार्याधिकारी अमित सिंह ने कहा कि भारत में 60 से अधिक गीगावॉट (जीडब्ल्यू) के मॉड्यूल की आपूर्ति तो है, लेकिन इन्गोट वेफर और पॉलीसिलिका रिफाइनिंग जैसी महत्वपूर्ण श्रेणियों की आपूर्ति श्रृंखला में शायद ही कोई है।
सिंह ने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि विनिर्माण क्षेत्र के आरंभिक चरण और विकास के चरण में उन्हें समर्थन दिया जाना चाहिए। कुछ सीमाएं तय करने की जरूरत है ताकि वे विकास कर सकें और आर्थिक रूप से उस स्तर तक पहुंच सकें जहां वे बाकी दुनिया के समान प्रतिस्पर्धी हो सकें।’
सुजलॉन ग्रुप के सह-संस्थापक और वाइस चेयरमैन गिरीश तांती ने कहा कि हरेक मेगावॉट का स्थानीय हिस्सा महत्वपूर्ण है। तांती का कहना है, ‘सौर क्षेत्र (जिसमें स्थानीय सामग्री की औसत मात्रा अभी लगभग 20 प्रतिशत है) के विपरीत पवन ऊर्जा क्षेत्र में, पूरे उद्योग के लिए औसत स्थानीय सामग्री पहले से ही लगभग 64 प्रतिशत है और सुजलॉन एक दशक से अधिक समय से 75 प्रतिशत से अधिक ले रही है।’
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि देश को आयातित प्रौद्योगिकी और उपकरणों से जुड़े सुरक्षा जोखिमों को ध्यान में रखना होगा। टाटा पावर रिन्यूएबल एनर्जी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी दीपेश नंदा ने कहा कि घरेलू विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करने से घरेलू स्तर पर उत्पादित मॉड्यूलों को बढ़ावा मिला है और अगला कदम संपूर्ण मूल्य श्रृंखला को पूरा करना है।
बड़ी परियोजनाओं की जरूरत
दिग्गजों ने यह भी तर्क दिया कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन बड़े आकार की परियोजनाओं की जरूरत है। सिंह ने कहा, ‘मांग तेजी से बढ़ रही है। लेकिन हम अभी भी उस स्थिति से बहुत दूर हैं जहां हमें होना चाहिए।