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मुफ्त सौगात का मामला अब बड़े पीठ के पास

Last Updated- December 11, 2022 | 4:15 PM IST

  सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मुफ्त सौगात का मामला तीन न्यायाधीशों वाले पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करते हुए कहा कि इस मसले की जटिलता को देखते हुए अदालत को वर्ष 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी के फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने अपने आ​खिरी दिन कहा कि मुफ्त सौगात के वादों का राज्य की अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ता है तथा यह इसके वित्तीय असर का आकलन किए बिना ही वोट बैंकों को आकर्षित करने के लिए किया जाता है।
उन्होंने कहा कि मुफ्त सौगात ऐसे हालात पैदा कर सकते हैं, जिनमें राज्य को निकटस्थ दिवालियापन की ओर धकेल दिया जाता है और इस तरह की मुफ्त सौगात का इस्तेमाल पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है और वास्तविक उपायों की ​स्थिति से वंचित रह जाते हैं। अदालत ने कहा कि सभी चुनावी वादों को मुफ्त सौगात से नहीं जोड़ा जा सकता है और यह राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुरूप हैं।
इस ओर इशारा करते हुए कि इस मसले पर और बहस की जरूरत है, अदालत ने न्यायिक हस्तक्षेप के दायरे के संबंध में सवाल उठाए कि क्या अदालत कोई बाध्यकारी आदेश जारी कर सकती है तथा क्या वह समिति गठित कर सकती है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि कुछ हितधारकों ने सुब्रमण्यम बालाजी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है।
 
क्या है सुब्रमण्यम बालाजी का फैसला?
यह मामला राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार बांटने से जुड़ा हुआ है। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने 2006 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के लिए अपना चुनावी घोषणापत्र जारी करते हुए यह घोषणा की थी कि अगर पार्टी या उनका गठबंधन सत्ता में आता है, तो हर उस परिवार को मुफ्त रंगीन टेलीविजन सेट दिया जाएगा, जिनके पास वह न हो। द्रमुक ने मुफ्त टीवी बांटने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि यह खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के मनोरंजन और सामान्य ज्ञान के लिए है। मई 2006 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में द्रमुक और उसके राजनीतिक सहयोगी विजयी हुए। चुनावी घोषणा पत्र में किया गया वादा पूरा करने के लिए तत्कालीन सरकार द्वारा राज्य में सभी पात्र परिवारों को एक 14-इंच का रंगीन टीवी देने का नीतिगत फैसला किया गया था। आगे चलकर सरकार ने इस योजना को चरणबद्ध रूप में लागू करने का निर्णय लिया और इसके क्रियान्वयन के लिए बजट में 750 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। इस योजना के पहले चरण के क्रियान्वयन की खातिर सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी – इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ तमिलनाडु लिमिटेड (ईएलसीओटी) को तकरीबन 30,000 रंगीन टीवी खरीदने का काम सौंपा गया था।
इस योजना के अनुचित क्रियान्वयन से ​खि​न्न सुब्रमण्यम बालाजी नामक एक याची ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि यह योजना वोटों पर निगाह के साथ भोले-भाले मतदाताओं को लुभाने के लिए भ्रष्ट परिपाटी है।
अलबत्ता अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया, जिसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी।
तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ दल द्रमुक ने अपने चुनाव घोषणापत्र में फरवरी 2011 में कई मुफ्त उपहारों की झड़ी लगा दी थी। द्रमुक से निपटने के लिए विपक्षी दल ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) और उसके सहयोगियों ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कई मुफ्त उपहारों की घोषणा कर दी। इस क्रम में अन्नाद्रमुक ने मुफ्त में ग्राइंडर, मिक्सी, बिजली के पंखे, लैपटॉप-कंप्यूटर आदि देने की पेशकश की थी। इसके अलावा अन्नाद्रमुक ने सत्ता में आने पर शादी पर महिलाओं को 50,000 रुपये नकद, ग्रीन हाउस, गरीबी रेखा से ऊपर जीवन यापन करने वाले लोगों सहित सभी राशन कार्ड धारकों को 20 किलोग्राम चावल, मुफ्त में मवेशी व भेड़ देने का आश्वासन दिया। अन्नाद्रमुक और उनके सहयोगी दलों ने साल 2011 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर ली। चुनावी घोषणापत्र को पूरा करने के लिए सरकार ने मुफ्त में उपहार देने के लिए नीतिगत फैसला लिया और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय ने मिक्सर, ग्राइंडर और अन्य सामानों के लिए निविदाएं जारी की थीं।

1. राजनीतिक दलों के वादों को रिश्वत या भ्रष्टाचार नहीं कहा जा सकता
न्यायालय के सामने यह मामला उठाया गया कि क्या चुनाव के दौरान घोषणापत्र में किए गए राजनीतिक दलों का वादा ‘जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 123’ के तहत भ्रष्टाचार के दायरे में आता है। इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जन प्रतिनिधि अधिनियम उम्मीदवारों की बात करता है, न कि राजनीतिक दलों की। लिहाजा इन वादों को भ्रष्टाचार या  रिश्वत नहीं कहा जा सकता है।
2. राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का हिस्सा लोगों का जीवन स्तर सुधाने का उपाय है
न्यायालय के समक्ष यह सवाल उठाया गया ‘क्या चुनौती दी गई ये योजनाएं सार्वजनिक उद्देश्यों से संबंधित है यदि हां, तो क्या यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।’ अदालत ने फैसला दिया कि यदि राजनीतिक दलों द्वारा मुहैया करवाई गई वस्तुओं से लोगों का जीवन स्तर बेहतर होता है, तो ये राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के अनुरूप हैं।
3. समानता के अधिकार के खिलाफ नहीं है मुफ्त में उपहार बांटना
अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) के सवाल पर न्यायालय ने कहा कि ये योजनाएं नीति निर्देशक तत्त्वों के अनुरूप हैं और राज्य नागरिकों पर कोई वित्तीय जिम्मेदारी नहीं डाल रहा है। न्यायालय ने कहा ‘नीति निर्देशक तत्त्वों को लागू करते समय यह संबंधित सरकार को देखना होता है कि वह वित्तीय संसाधनों और लोगों की जरूरत पर ध्यान दे। सभी कल्याणकारी उपायों को एक बार में मुहैया नहीं कराया जा सकता है।’
4. क्या न्यायालय चुनावी वादों पर दिशानिर्देश या कानून नहीं बना सकता है
न्यायालय ने कहा ‘जन प्रतिनिधि अधिनियम चुनाव से जुड़े मामलों से संबंधित है। कानूनी रिक्तता की स्थिति नहीं है। लिहाजा न्यायालय को इस मामले में दिशानिर्देश जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं।’
5. क्या खर्च होने से पहले नियंत्रक व लेखा परीक्षक को अनिवार्य रूप से जांच करनी चाहिए ?
इस सवाल पर न्यायालय ने कहा कि नियंत्रक व लेखा परीक्षक को खर्च का लेखा-जोखा देखना होता है। वह यह नहीं निर्धारित कर सकता है कि सरकार कैसे अपने धन को खर्च करे। न्यायालय ने कहा ‘खर्चा होने के बाद नियंत्रक व लेखा परीक्षक के दायित्व शुरू होते हैं।’

First Published - August 27, 2022 | 12:03 AM IST

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