कोरोना महामारी की मार से बुरी तरह लडख़ड़ाए बाजार में इस बार त्योहारी चमक साफ दिखी। दो साल की सुस्ती के बाद इस बार नवरात्र से ही बाजार में खासी चहलपहल हो गई थी। मगर लागत बढऩे की वजह से कोरोना से पहले वाली खरीदारी नजर नहीं आई। अलबत्ता केंद्र और राज्य सरकार की पेट्रोल-डीजल पर कर घटाने की घोषणा के बाद कारोबारियों को शादियों का सीजन बेहतरीन जाने की उम्मीद जग गई है। लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कारोबारियों के लिए बड़ा सिरदर्द बनकर उभरे हैं क्योंकि अधिक छूट और आकर्षक ऑफरों के कारण लोग घर बैठे वहां से खरीदारी करना पसंद कर रहे हैं।
धीमे-धीमे चढ़ा बाजार
बहरहाल कुछ वक्त पहले घुटने टेक चुका बाजार अब खड़ा नजर आ रहा है। पहले जैसी रौनक न सही, ग्राहकी दिनोदिन बढ़ रही है। दीवाली पर सबसे ऊपर रहने वाले मिठाई कारोबार में दो साल पहले वाली बात तो नहीं आई मगर पिछले साल के मुकाबले बिक्री जरूर बढ़ी। करवाचौथ से संभला सराफा बाजार धनतेरस पर जगमगाने लगा। कारोबारियों ने बताया कि दीवाली से पहले नवरात्र के दिनों में ही लखनऊ के बाजारों में 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के सामान की बिक्री हो चुकी थी। इसमें वाहन का 400 करोड़ रुपये, इलेक्ट्रॉनिक्स का 150 करोड़ रुपये, कपड़े और एक्सेसरीज का 300 करोड़ रुपये तथा रेडीमेड परिधानों का 425 करोड़ रुपये का कारोबार था। दीवाली तक इनका कारोबार 4,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान जताया गया है।
कपड़े में ऑनलाइन रोड़ा
नवरात्र की शुरुआत से ही लखनऊ के कपड़ा बाजारों में रौनक बढ़ गई थी। दुकानों पर भीड़ भी थी मगर मांग पहले जैसी नहीं रही। कारोबारियों का कहना है कि पहले जैसे धंधे की आस में दिल्ली, मुंबई, लुधियाना से काफी माल मंगाया गया था मगर नवरात्रि और दशहरे पर बिक्री कम देखकर कई ऑर्डर रद्द कर दिए गए। सस्ते रेडीमेड परिधानों की मांग जरूर पहले से बढ़ी है मगर ब्रांडेड कपड़ों की मांग पिछले साल जैसी ही यानी सुस्त है। रेडीमेड परिधान कारोबारी अजय त्रिवेदी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को कारोबार के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बताते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों की क्रय शक्ति घटी है और वे मोलभाव ज्यादा कर रहे हैं। ऐसे में निम्न मध्य वर्ग ही बाजार आ रहा है। उच्च वर्ग या तो ऑनलाइन खरीदारी में सेल का फायदा उठा रहा है या शॉपिंग मॉल का रुख कर रहा है। हालांकि शॉपिंग मॉल में भी कारोबार पहले जैसा नहीं रहा मगर परंपरागत कपड़ा बाजार की तुलना में उनकी हालत बेहतर है।
अब ज्यादातर कपड़ा कारोबारियों को शादी-ब्याह के सीजन और ठंड की लहर से ही उम्मीद है। मगर लखनऊ का मशहूर चिकन उसकी उम्मीद भी नहीं लगा सकता। यहां के चिकन कारोबारियों के लिए दुश्वारियां कम ही नहीं हो रहीं। उनका सीजन गर्मी में होता है, जिसे कोरोना महामारी लील गई। दीवाली पर ठंड पड़ रही है, जिससे उनके माल की मांग और कम हो गई है।
बर्तनों में तांबे की खनक
बर्तनों का बाजार धनतेरस और दीवाली पर दमकता रहा और उसमें नया चलन भी देखने को मिला। महामारी के बाद सेहत के प्रति जागरूक हुए लोग इस बार स्टील के बजाय तांबे के बर्तनों पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। लखनऊ के थोक और खुदरा बर्तन बाजार याह्यागंज व्यापारियों का कहना है कि स्टील के बर्तनों से दोगुनी मांग तांबे के बर्तनों की है और कांसे तथा पीतल की मांग भी बहुत बढ़ी है। कारोबारियों ने बताया कि दीवाली कई कंपनियों ने तांबे के डिजाइनर बर्तन बाजार में उतारे। इनमें 25,000 रुपये के डिनर सेट से लेकर 7-8 हजार रुपये का प्रेशर कुकर तक शामिल है। दिलचस्प है कि कीमत ज्यादा होने के बावजूद इनकी बिक्री अच्छी रही। पीतल और कांसे के बर्तनों में भी नए डिजाइन आए, जिन्हें ग्राहकों ने पसंद किया। दीवाली में आम तौर पर जग, गिलास, लोटे ज्यादा बिकते थे मगर इस बार पानी की बोतल, थाली, कटोरी और अन्य बर्तन भी खूब बिके।
महंगाई से मिठाई फीकी
कोरोना काल में सबसे तगड़ी चपत खाने वाली मिठाई की दुकानें इस दीवाली में ग्राहकों से खचाखच भरी रहीं। हालांकि मात्रा के लिहाज से बिक्री कम रही क्योंकि लागत बढऩे के कारण दाम बढ़ गए हैं। मिठाई विक्रेताओं का कहना है कि कोरोना से पहले जितनी संख्या में ग्राहक आ रहे हैं मगर बिक्री कम हो रही है। पिछले एक साल में खाद्य तेलों के दाम कमोबेश दोगुने हो गए हैं और खोये, दूध, पनीर, घी के दाम में 25 फीसदी इजाफा हो गया है। व्यावसायिक गैस सिलिंडर भी 30-40 फीसदी महंगा हो गया है। राजधानी के प्रमुख मिठाई कारोबारी सुशील मोदनवाल ने बताया कि बाजार की हालत देखकर लागत के मुकाबले दाम में वृद्घि कम रखीा गई। कारोबारी मुनाफे में समझौता करते रहे मगर खरीद कम ही रही। संतोष की बात यह रही कि कंपनियों, सरकारी विभागों और निजी फर्मों ने तोहफे के लिए मिठाई के ऑर्डर दिए हैं, जिससे धंधा संभल गया। मेवों के दाम में लगी आग के कारण उनके महंगे गिफ्ट पैक कम ही उठे और ऑनलाइन कारोबार ने मेवों-मिठाई का एक तिहाई कारोबार निगल लिया।
सजावट में चीनी माल
लखनऊ में बिजली के सामान के सबसे बड़े बाजार नाका, गणेश गंज और लाटूश रोड में झालरों, झाड़-फानूसों और सजावटी सामान की दुकानें खूब सजीं और चहलपहल भी रही। मगर तमाम अभियानों के बावजूद चीन से आए सामान की कारोबार में बड़ी हिस्सेदारी रही। कारोबारियों ने कहा कि चीन से आई झालरें रखना उनकी मजबूरी है। इस समय लोगों की क्रयशक्ति पहले की तरह नहीं है और स्वदेशी झालरें महंगी हैं, इसलिए सस्ती चीनी झालरें खरीदी जा रही हैं। हालांकि झाड़-फानूस के बाजार में जरूर स्वदेशी सामान बड़ी तादाद में दिखा मगर कम कीमत के कारण बाजार में चीनी माल का अच्छा खासा दखल रहा। कानपुर की बनी स्वदेशी झालरों पर भी वे हावी रहीं।
मांग से कम मिले वाहन
वाहन कारोबार में डीलरों के यहां लंबी लाइन तो रही मगर इसका कारण चिप की कमी के कारण कारखानों से वाहनों की कम आवक रही। वाहन कारोबारियों का कहना है कि आमतौर पर पितृपक्ष के बाद नवरात्र से लेकर नए साल तक के सीजन में सबसे ज्यादा गाडिय़ां बिकती हैं। उस हिसाब से देखें तो अभी भी कोरोना काल के पहले वाला बाजार नहीं है मगर दो साल के मुकाबले संतोषजनक वृद्घि है।
ई-कॉमर्स के खिलाफ कारोबारियों का मोर्चा
देश के अन्य हिस्सों के व्यापारियों को एकजुट करते हुए उत्तर प्रदेश के कारेाबारियों ने भी ऑनलाइन कारोबार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। किसानों की तरह व्यापारी ऑनलाइन कारोबार के खिलाफ एक मंच पर आ रहे हैं। अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष संदीप बंसल ने कहा कि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों ने देसी कारोबार पर गहरी चोट की है। पहले मोबाइल फोन और कंप्यूटर का धंधा चौपट हुआ और अब कपड़े, जूते, किराना, कन्फेक्शनरी पर भी चोट पड़ रही है। दीवाली पर भी ऑनलाइन कंपनियों ने कपड़े, मिठाई, मेवे, सजावटी सामान में सेंध लगाई। इसलिए कारोबारियों ने सरकार से इन कंपनियों पर अंकुश लगाने की मांग की है। जब सरकार कहती है कि कंपनियां बाजार मूल्य से कम दाम पर ऑनलाइन सामान नहीं बेच सकतीं तो उस नियम की धज्जियां नहीं उडऩे दी जाएं क्योंकि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बहुत ज्यादा छूट मिलती है और पारंपरिक कारोबारियों का धंधा इससे चौपट हो रहा है।