facebookmetapixel
उच्च विनिर्माण लागत सुधारों और व्यापार समझौतों से भारत के लाभ को कम कर सकती हैEditorial: बारिश से संकट — शहरों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए तत्काल योजनाओं की आवश्यकताGST 2.0 उपभोग को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन गहरी कमजोरियों को दूर करने में कोई मदद नहीं करेगागुरु बढ़े, शिष्य घटे: शिक्षा व्यवस्था में बदला परिदृश्य, शिक्षक 1 करोड़ पार, मगर छात्रों की संख्या 2 करोड़ घटीचीन से सीमा विवाद देश की सबसे बड़ी चुनौती, पाकिस्तान का छद्म युद्ध दूसरा खतरा: CDS अनिल चौहानखूब बरसा मॉनसून, खरीफ को मिला फायदा, लेकिन बाढ़-भूस्खलन से भारी तबाही; लाखों हेक्टेयर फसलें बरबादभारतीय प्रतिनिधिमंडल के ताइवान यात्रा से देश के चिप मिशन को मिलेगी बड़ी रफ्तार, निवेश पर होगी अहम चर्चारूस से तेल खरीदना बंद करो, नहीं तो 50% टैरिफ भरते रहो: हावर्ड लटनिक की भारत को चेतावनीअर्थशास्त्रियों का अनुमान: GST कटौती से महंगाई घटेगी, RBI कर सकता है दरों में कमीअमेरिकी टैरिफ और विदेशी बिकवाली से रुपये की हालत खराब, रिकॉर्ड लो पर पहुंचा; RBI ने की दखलअंदाजी

CCI चेयरपर्सन रवनीत कौर से खास मुलाकात: रेगुलेटर के जीवन, फैसलों और पसंदीदा खाने की कहानी

भारत की दूसरी महिला रेगुलेटर Ravneet Kaur ने बताया कि उन्हें अर्थशास्त्र में गहरी दिलचस्पी है, एआई एक बड़ी चुनौती है और लोग उन्हें सख्त अफसर मानते हैं।

Last Updated- June 22, 2025 | 9:22 PM IST
ravneet kaur
Ravneet Kaur, Chairperson, Competition Commission of India (Illustration: Binay Sinha)

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की चेयरपर्सन रवनीत कौर से अनौपचारिक माहौल में मिलना आसान नहीं होता। इस लंच को तय होने में कई हफ्ते लग गए। कौर एक सीनियर IAS अधिकारी हैं, जो 1988 बैच की पंजाब कैडर से हैं। इन दिनों वह CCI में कई अहम मामलों में व्यस्त हैं — जिनमें बिग टेक कंपनियां, क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म और पारंपरिक कारोबार से जुड़े प्रतिस्पर्धा कानून के केस शामिल हैं।

CCI क्या है?

CCI यानी Competition Commission of India एक ऐसा रेगुलेटरी बॉडी है, जिसका मकसद है बाजारों में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा बनाए रखना। इस संस्था ने हाल ही में 16 साल पूरे किए हैं, जबकि अमेरिका की Federal Trade Commission 100 साल से ज्यादा पुरानी है।

लंच के लिए क्यों चुना गया ‘Med’ रेस्तरां?

रवनीत कौर से मुलाकात के लिए एक शांत और उपयुक्त जगह की तलाश थी। दिल्ली के कई रेस्तरां देखने के बाद हमने इंडिया हैबिटैट सेंटर (IHC) के ‘Med’ को चुना। यह रेस्तरां सिर्फ IHC के मेंबर्स और उनके गेस्ट्स के लिए खुला होता है। यह अपनी मेडिटेरेनियन डिशेज़, स्विमिंग पूल के किनारे का खूबसूरत लोकेशन और शांति भरे माहौल के लिए मशहूर है।

यह रेस्तरां CCI मुख्यालय (Kidwai Nagar) और लोधी गार्डन के पास है, जिससे यह जगह और भी सुविधाजनक बन जाती है।

ALSO READ: बिहार में नीतीश सरकार ने बढ़ाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन, अब बुजुर्गों, विधवाओं और दिव्यांगों को मिलेंगे ₹1,100 महीने

कैसी रही रवनीत कौर से पहली मुलाकात?

कौर समय पर पहुंचीं, सादगी भरे अंदाज़ में सूती साड़ी पहने हुए और चेहरे पर गर्मजोशी भरी मुस्कान थी। वह देश की दूसरी महिला हैं जो किसी बड़े आर्थिक रेगुलेटर की चेयरपर्सन बनी हैं। इससे पहले यह जिम्मेदारी सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच निभा चुकी हैं।

रवनीत कौर रेगुलरली ‘Med’ आती हैं और बताती हैं कि उन्हें भारतीय खाने के बजाय इंटरनेशनल फ्लेवर ज़्यादा पसंद है। इसलिए यहां आना उनकी पसंदीदा चीज़ों में से एक है।

क्या हुआ लंच में?

हमने ड्रिंक्स मंगवाए। रवनीत कौर ने मैंगो मोजीतो ऑर्डर किया, जो गर्मी की दोपहर के लिए एकदम परफेक्ट था। हमने भी उनके साथ काफिर लाइम-जिंजर स्पार्कलर ट्राय किया। खिड़की के पास बैठकर जब दिल्ली की हरियाली का नज़ारा देखा, तो बातचीत और भी खास हो गई। उन्होंने कहा, “मुझे यहां आना अच्छा लगता है।” और यह बात उनके अंदाज़ से साफ भी झलक रही थी।

वह मेन्यू को ध्यान से पढ़ती हैं, फिर हम काम, जिंदगी और बाकी बातों पर चर्चा करने बैठते हैं। वह शाकाहारी हैं, लेकिन हमें अपनी पसंद का ऑर्डर देने के लिए कहती हैं। आखिरकार हम सब मिलकर मौसमी सब्ज़ियों और मेडिटेरेनियन फ्लेवर वाला पूरा शाकाहारी खाना मंगवाते हैं।

जैसे ही ठंडी ड्रिंक्स आती हैं, हम सबसे बुनियादी सवाल से बात शुरू करते हैं—सिविल सेवा क्यों? कौर मुस्कुराते हुए कहती हैं, “मुझे हमेशा से पता था कि मुझे आईएएस बनना है।” उनके परिवार में कई लोग सिविल सर्विस में हैं, इसलिए यह पहले से तय जैसा लगता है, लेकिन वह कहती हैं कि इसके लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। वह बताती हैं, “पहली बार में मुझे आईपीएस मिला था, फिर दोबारा एग्जाम देकर आईएएस मिली।” अगर वह सिविल सेवा में नहीं होतीं, तो लेक्चरर बनना पसंद करतीं।

बात उनके मौजूदा पद पर आती है, जो प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) में पांच साल का कार्यकाल है, जिसमें से तीन साल अभी बाकी हैं। 60 की उम्र पार कर चुकीं कौर बेझिझक बताती हैं कि उन्होंने खुद इस पद के लिए आवेदन किया था। “इसलिए जब मुझे यह पद मिला तो खुशी हुई,” वह कहती हैं। वह आगे बताती हैं, “इंटरव्यू में मुझसे पूछा गया कि क्या डॉमिनेंस (प्रभुत्व) बुरा है। मैंने कहा नहीं, जब तक उसका गलत इस्तेमाल न हो।” उनका जवाब साफ तौर पर सटीक बैठा।

रेगुलेटर से अनौपचारिक माहौल में मिलना आसान नहीं होता। इसलिए प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की चेयरपर्सन रवनीत कौर से यह लंच तय करने में कई हफ्ते लग जाते हैं। पंजाब कैडर की 1988 बैच की आईएएस अधिकारी रहीं कौर के पास हर दिन बिग टेक, क्विक कॉमर्स और पारंपरिक कंपनियों से जुड़े एंटीट्रस्ट मामलों की लंबी सूची रहती है, जिन पर अंतिम फैसले लिए जाने हैं।

भारत में बाजारों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और बनाए रखने के मकसद से काम करने वाला CCI हाल ही में 16 साल का हुआ है। यह अमेरिका की फेडरल ट्रेड कमीशन (FTC) जैसी संस्था है, जो 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है।

ऐसे महत्वपूर्ण रेगुलेटर की मुखिया से मिलने के लिए एक उपयुक्त जगह की तलाश होती है। दिल्ली के कई प्रीमियम रेस्तरां देखने के बाद हम इंडिया हैबिटैट सेंटर (IHC) के ‘Med’ रेस्तरां को चुनते हैं, जो लोदी गार्डन से पांच मिनट की दूरी पर और किडवई नगर स्थित CCI मुख्यालय के करीब है।

IHC के सदस्यों और उनके मेहमानों के लिए खुला यह रेस्तरां अपने भूमध्यसागरीय (Mediterranean) खाने, स्विमिंग पूल के किनारे की खूबसूरती और शांत माहौल के लिए जाना जाता है। हम समय से थोड़ा पहले पहुंचते हैं और खिड़की के पास की वह टेबल चुनते हैं, जहां से पांचवीं मंजिल से दिल्ली की हरियाली और मानसूनी नजारा साफ दिखता है।

कुछ ही देर में रवनीत कौर वहां पहुंचती हैं — सादे कॉटन की साड़ी में, मुस्कुराते हुए। वह भारत में किसी आर्थिक रेगुलेटरी संस्था की प्रमुख बनने वाली दूसरी महिला हैं। उनसे पहले यह जिम्मेदारी सेबी (SEBI) की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के पास थी। Med रेस्तरां में वह अक्सर आती हैं और साफ तौर पर कहती हैं कि उन्हें बाहर खाने में भारतीय खाना नहीं, कुछ अलग पसंद होता है। ऐसे में इस रेस्तरां का चयन स्वाभाविक हो गया।

वह दोपहर का लुत्फ उठाने के पूरे मूड में हैं। हम ड्रिंक्स ऑर्डर करते हैं। वह आम के स्वाद वाला मोजितो लेती हैं, जो गर्मी की दोपहर के लिए एकदम फिट लगता है। हम भी कुछ ठंडा मंगवाते हैं — काफ़िर लाइम और अदरक वाला एक ड्रिंक। कौर कहती हैं, “मुझे यहां आना अच्छा लगता है,” और उनके अंदाज़ से साफ है कि वह दिल से यह कह रही हैं।

उनके करियर का ज़्यादातर हिस्सा आर्थिक मामलों के इर्द-गिर्द रहा है — फिर चाहे वो पहले के औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (अब उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग यानी DPIIT) में हो या पंजाब राज्य विकास निगम में मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में।

इसलिए, प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) उनके लिए नया क्षेत्र नहीं है — वह खुद भी यह बात जोर देकर कहती हैं। हालांकि, तकनीक से जुड़ा नियमन एक तेजी से बदलता हुआ क्षेत्र है। गूगल, एप्पल, मेटा, अमेजन जैसी बड़ी टेक कंपनियों के केस में नई तकनीकों के साथ अपडेट रहना बेहद जरूरी होता है।
कौर मानती हैं कि यह एक बेहद विशेषज्ञता वाला क्षेत्र है, और इसी कारण वह लगातार पढ़ाई करती रहती हैं — ज़्यादातर नॉन-फिक्शन किताबें। उन्हें यह ज़िम्मेदारी कई चुनौतियों के साथ मिली। वह बताती हैं, “मेरे कार्यभार संभालने से ठीक एक महीने पहले नया प्रतिस्पर्धा कानून पास हुआ था। साथ ही चेयरपर्सन का पद कुछ समय से खाली था, जिससे काफी लंबित काम भी जमा था। ये दोनों ही बड़ी चुनौतियां थीं।”

हम पनीर-एस्पैरेगस-ब्रोकली वाली डिश चखते हुए उनकी प्राथमिकताओं पर बात करते हैं। वह उत्साह के साथ बताती हैं, “हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर अध्ययन शुरू करने वाले पहले सरकारी रेगुलेटर होंगे।” हालांकि वह इसके खतरों को भी लेकर सतर्क हैं — जैसे कि AI का गलत इस्तेमाल हो सकता है। इस खतरे पर नजर बनाए रखना उनकी प्राथमिकता लगती है।

वह एल्गोरिदम, डेटा उपयोग और मंशा जैसे पहलुओं की बात करती हैं। वह कहती हैं, “एक बड़ी चुनौती यह है कि अब मशीनें खुद से सीखने लगी हैं।” फिर भी वह AI के फायदों को लेकर आशावादी हैं — खासकर हेल्थकेयर, लॉजिस्टिक्स, एजुकेशन और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में।
हालांकि वह खुद तकनीक से बहुत जुड़ी नहीं हैं। वह हँसते हुए कहती हैं, “मैं इस मामले में सतर्क रहती हूं।”

भोजन के दौरान बातचीत अब भू-राजनीति की ओर मुड़ती है। कई व्यापार समझौतों पर बातचीत चल रही है, तो हम पूछते हैं कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTAs) में CCI की क्या भूमिका होती है। वह बताती हैं, “हम एक प्रतिस्पर्धा अध्याय पर बातचीत करते हैं। हमारी टीम में ऐसे लोग हैं जो यह काम देखते हैं। हमारे अंतरराष्ट्रीय समझौते MoU के ज़रिए आगे बढ़ते हैं।” जब हम अमेरिका के साथ संभावित व्यापार समझौते पर कुछ जानकारी जानना चाहते हैं, तो वह कोई खास बात साझा नहीं करतीं।

अब मिठाई का समय है। हम मंगवाते हैं – जावा प्लम सॉरबेट और रोज़-पेटल आइसक्रीम के साथ गरम एप्पल क्रम्बल। इस समय तक रेस्टोरेंट में भीड़ कम हो चुकी है। IHC के पूल पर धूप की चमक पड़ रही है और बातचीत अब निजी पहलुओं की ओर मुड़ती है।

क्या कभी उन्हें एक महिला अधिकारी होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा? इस पर वह साफ कहती हैं, “मुझे ऐसा अनुभव नहीं हुआ। प्रशासनिक सेवा में आपकी पहचान बन जाती है। जब लोग आपको जानने लगते हैं, तो भेदभाव की गुंजाइश कम रह जाती है।”

दिल्ली में रहने वाली, लेकिन पंजाब से जुड़ाव रखने वाली कौर को अपना पहला पोस्टिंग याद है – 1990 में पंजाब के राजपुरा में बतौर एसडीएम, उस समय मंडल आंदोलन चल रहा था। प्रदर्शन के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और वहां सेना को फ्लैग मार्च करना पड़ा। वह खुद सेना के साथ इस फ्लैग मार्च का नेतृत्व कर रही थीं। “मुझसे पूछा गया कि क्या किसी और को भेजा जाए। मैं समझ सकती हूं, क्योंकि मैंने अभी सेवा जॉइन की ही थी।” अब, कई दशक बाद, उन्हें अपने महिला होने के कारण किसी तरह का पक्षपात नहीं लगता।

मिठाई स्वादिष्ट थी और हम हल्की-फुल्की बातचीत में खो जाते हैं। क्या उनकी कोई विशलिस्ट है? वह कंधे उचकाकर कहती हैं – कुछ खास नहीं। लेकिन फिर याद आता है – एक सपना जरूर है: नॉर्वे में Northern Lights देखना। फुर्सत के पलों में वह आमतौर पर लोधी गार्डन में टहलना पसंद करती हैं या फिर किसी पसंदीदा ओटीटी शो की एक कड़ी देखती हैं (कभी भी एकसाथ पूरी सीरीज़ नहीं देखतीं)। काम अक्सर घर तक चला आता है, लेकिन रविवार का दिन वह पूरी तरह अपने लिए रखती हैं – बाल धोने, पूरी-आलू की सब्ज़ी खाने और “रानी जैसा महसूस करने” के लिए, वह हंसते हुए कहती हैं।

इसी खुशनुमा और आत्मीय माहौल के साथ लंच खत्म होता है। रेग्युलेटर वापस अपनी फाइलों में लौटती हैं, और हम अपनी नोटबुक की ओर – इस बातचीत से समृद्ध होकर।

First Published - June 21, 2025 | 2:25 PM IST

संबंधित पोस्ट