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SC की प्रोफेसर महमूदाबाद को अंतरिम जमानत, लेकिन जांच पर रोक लगाने से इनकार

सुनवाई करने वाले पीठ ने प्रोफेसर के शब्दों के चयन पर सवाल उठाते हुए कहा कि इनका इस्तेमाल जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने या उन्हें असहज करने के लिए किया गया।

Last Updated- May 21, 2025 | 11:18 PM IST
Supreme Court of India
प्रतीकात्मक तस्वीर

उच्चतम न्यायालय ने ऑपरेशन सिंदूर के संबंध में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार ‘अशोक यूनिवर्सिटी’ के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को बुधवार को अंतरिम जमानत दे दी, लेकिन उनके खिलाफ जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह के पीठ ने हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया कि वह मामले की जांच के लिए 24 घंटे के भीतर महानिरीक्षक (आईजी) रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में तीन-सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करें, जिसमें पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक की एक महिला अधिकारी भी शामिल हो।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि याची को जांच में मदद के लिए अंतरिम जमानत दी गई है। शीर्ष अदालत ने महमूदाबाद को अपना पासपोर्ट जमा करने का निर्देश भी दिया। अदालत ने प्रोफेसर के हाल के भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर कोई और ऑनलाइन पोस्ट लिखने पर रोक लगा दी और उनसे एसआईटी जांच में सहयोग करने को कहा।

पीठ ने कहा कि एसआईटी में सीधे भर्ती किए गए तीन आईपीएस अधिकारी शामिल होने चाहिए, जो हरियाणा के निवासी न हों। पीठ ने कहा कि आईजी रैंक के अधिकारी के अलावा दो अन्य पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी होने चाहिए। सोनीपत स्थित अशोक यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर की ऑनलाइन पोस्ट मामले की सुनवाई करने वाले पीठ ने प्रोफेसर के शब्दों के चयन पर सवाल उठाते हुए कहा कि इनका इस्तेमाल जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने या उन्हें असहज करने के लिए किया गया। न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘शब्दों का चयन जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने या असहज करने के लिए किया गया। प्रोफेसर एक विद्वान व्यक्ति हैं और उनके पास शब्दों की कमी नहीं हो सकती। वे दूसरों को ठेस पहुंचाए बिना उन्हीं भावनाओं को सरल भाषा में व्यक्त कर सकते थे। उन्हें दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए था। उन्हें सरल और तटस्थ भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए था, दूसरों का सम्मान करना चाहिए था।’

पीठ ने कहा कि हालांकि सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन महमूदाबाद के बयानों को कानून की नजर में ‘डॉग व्हिसलिंग’ (किसी का समर्थन पाने के लिए गुप्त संदेश वाली) भाषा कहा जाता है। अदालत ने कहा, ‘इसे हम कानून में ‘डॉग व्हिसलिंग’ कहते हैं। उन्हें अधिक सम्मानजनक और तटस्थ भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए था।’

 पीठ ने याची की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, ‘जब देश में इतनी सारी चीजें हो रही थीं, तो उनके पास इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करने का मौका कहां था, जो अपमानजनक और दूसरों को असहज करने वाले हो सकते हैं। वह एक विद्वान व्यक्ति हैं, उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि उनके पास शब्दों की कमी है।’ पीठ ने प्रोफेसर पर पहलगाम आतंकवादी हमले के संबंध में कोई भी पोस्ट करने पर रोक लगा दी। न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन क्या अब इस पर इतनी सांप्रदायिक बातें करने का समय आ गया है? देश ने एक बड़ी चुनौती का सामना किया है और अब भी कर रहा है। कुछ दानव दूसरे क्षेत्रों से आए और निर्दोष लोगों पर हमला किया। पूरा देश एकजुट है, लेकिन इस समय, ऐसे बयान क्यों? क्या यह सिर्फ इस मौके पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए है?’ 

First Published - May 21, 2025 | 11:13 PM IST (बिजनेस स्टैंडर्ड के स्टाफ ने इस रिपोर्ट की हेडलाइन और फोटो ही बदली है, बाकी खबर एक साझा समाचार स्रोत से बिना किसी बदलाव के प्रकाशित हुई है।)

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