कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने देश के 79वें स्वतंत्रता दिवस से पहले रविवार को ‘वोट चोरी’ के खिलाफ अपना अभियान तेज करने की घोषणा की, जबकि निर्वाचन आयोग लगातार जोर देकर कहता रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के आरोप जाली सबूत, गलत विश्लेषण और बेतुके निष्कर्षों पर आधारित हैं।
कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि लोक सभा में विपक्ष के नेता गांधी के नेतृत्व में ‘इंडिया’ गठबंधन की पार्टियों के संसदीय नेता सोमवार की सुबह संसद भवन परिसर से भारतीय चुनाव आयोग के मुख्यालय निर्वाचन सदन तक मार्च करेंगे। संसद भवन और निवार्चन सदन के बीच की दूरी मुश्किल से एक किलोमीटर है, लेकिन यह विपक्ष के इस मुद्दे पर लड़ाई को सड़कों पर ले जाने के संकल्प का प्रतीक है। विपक्ष ने पहले ही बिहार में विशेष गहन संशोधन के मामले में अपना कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए यह संदेश दे दिया है कि इस मुद्दे को केवल अदालतों तक नहीं लड़ना है।
कांग्रेस रणनीतिकारों का मानना है कि गांधी ने गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी में जो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर 2024 के आम चुनावों के दौरान चुनावी अनियमितताओं के बारे में जो खुलासा किया था, उसका देश भर में खासकर युवाओं पर खासा असर हुआ है।
कांग्रेस और राहुल गांधी इसे वोट चोरी कह रहे हैं। इस मुद्दे के साथ-साथ बिहार के एसआईआर के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों ने इंडिया गठबंधन में शामिल दलों को एक मंच पर लाने में भी मदद की है। इंडिया गठबंधन के घटक दल अगले साल अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल और केरल में विधान सभा चुनावों में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। इसे देखते हुए यह एकजुटता काफी मायने रखती है।
कांग्रेस ने रविवार को एक वेब पोर्टल भी लॉन्च किया, जहां लोग ‘वोट चोरी’ के खिलाफ निर्वाचन आयोग से जवाब मांगने के लिए पंजीकरण कर सकते हैं और विपक्ष के नेता की डिजिटल मतदाता सूचियों की मांग के लिए समर्थन व्यक्त कर सकते हैं। गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘चुनाव आयोग से हमारी मांग स्पष्ट है- पारदर्शिता दिखाएं और डिजिटल मतदाता सूची को सार्वजनिक करें, ताकि जनता और राजनीतिक दल स्वयं इसकी ऑडिट कर सकें।’
आयोग ने राहुल गांधी से कहा है कि या तो अपने दावों का समर्थन करने के लिए घोषणा पर हस्ताक्षर करें या ‘झूठे’ आरोप लगाने के लिए देश से माफी मांगें। राहुल के ‘वोट चोरी’ के दावों के बाद कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा के मुख्य चुनाव अधिकारियों ने उनसे उन लोगों के नाम प्रस्तुत करने के लिए कहा है जिन्हें या तो छोड़ दिया गया था या गलत तरीके से इन राज्यों की संबंधित मतदाता सूचियों में शामिल किया गया। साथ ही चुनाव आचरण नियमों के अनुसार एक हस्ताक्षरित घोषणा भी देने के लिए कहा है।
एसआईआर के हिस्से के रूप में चुनाव आयोग ने पिछले सप्ताह अपनी मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की थी, जिसमें 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए। आयोग का तर्क है कि या तो इनकी मृत्यु हो गई या स्थायी रूप से किसी अन्य राज्य में चले गए अथवा ये एक से अधिक स्थानों पर मतदाता के रूप में दर्ज थे। आयोग ने रविवार को कहा कि 1 अगस्त को बिहार की मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित होने के बाद से किसी भी राजनीतिक दल ने सूचियों से व्यक्तियों के नामों को शामिल करने या हटाने के लिए उससे संपर्क नहीं किया है।
चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि 1 अगस्त और 10 अगस्त रविवार के दोपहर 3 बजे के बीच विभिन्न दलों द्वारा नियुक्त 1,61,000 बूथ-स्तरीय एजेंटों (बीएलए) में से किसी ने भी दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया में चुनाव अधिकारियों से संपर्क नहीं किया है।
इस बीच, शुक्रवार को बेंगलुरु में एक वोट अधिकार रैली को संबोधित करते हुए गांधी ने कहा कि उन्होंने संविधान को बनाए रखने के लिए संसद में पहले ही शपथ ले ली है, यह संकेत देते हुए कि वह किसी भी घोषणा पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एससीपी) के प्रमुख शरद पवार ने भी निर्वाचन आयोग से इस मामले में विस्तृत जांच की मांग की है।
राहुल गांधी को रविवार को जारी एक नोटिस में कर्नाटक के मुख्य चुनाव अधिकारी ने उनसे उन दस्तावेजों को साझा करने के लिए कहा, जिनके आधार पर उन्होंने गुरुवार को आरोप लगाया था कि एक महिला ने महादेवपुरा में दो बार मतदान किया था। नोटिस में लिखा था, ‘आपने यह भी कहा है कि मतदान अधिकारी द्वारा दिए गए रिकॉर्ड के अनुसार, श्रीमती शकुन रानी ने दो बार मतदान किया।
पूछताछ करने पर शकुन रानी ने कहा है कि उन्होंने केवल एक बार मतदान किया है, जैसा कि आपने आरोप लगाया है।’पत्र में कहा गया है कि सीईओ कार्यालय द्वारा की गई प्रारंभिक जांच से यह भी पता चला है कि कांग्रेस नेता ने प्रस्तुति में जो टिक-मार्क किया हुआ दस्तावेज दिखाया था, वह मतदान अधिकारी द्वारा जारी नहीं किया गया था।
हालांकि, कथित चुनावी धोखाधड़ी के गांधी के दावों की सच्चाई से परे, कई पूर्व नौकरशाह और राजनेता इस बात से हैरान हैं कि ईसी, एक संवैधानिक निकाय ने जांच का आदेश देने के बजाय, गांधी के दावों के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया दिखाया है।