मध्य प्रदेश विधानसभा के आगामी उपचुनाव सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और प्रदेश में सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस दोनों के लिए अत्यंत अहम हैं। आगामी 3 नवंबर को प्रदेश के 19 जिलों के मतदाता 28 सीटों के लिए मतदान करेंगे। ये सीट 25 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे और तीन विधायकों के निधन के बाद रिक्त हुईं। प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीट हैं।
सन 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा को 15 वर्ष पुरानी सत्ता गंवानी पड़ी थी और कमल नाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी ज्यादा दिन चल नहीं पाई। कांग्रेस विधायकों की बगावत के बाद इस वर्ष मार्च में भाजपा दोबारा सत्ता में आ गई। बागी कांग्रेस विधायक अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस हर हाल में सत्ता में वापसी चाहती है लेकिन यह लगभग असंभव है। भाजपा को 28 सीटों में से केवल नौ पर जीत की जरूरत है जबकि कांग्रेस को सभी सीटों पर जीत हासिल करनी होगी। प्रदेश विधानसभा में 116 सीटों पर बहुमत है। भाजपा के पास 107 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के पास अब केवल 87 विधायक रह गए हैं क्योंकि रविवार को दमोह के कांग्रेस विधायक राहुल सिंह लोधी ने भी इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र
यह क्षेत्र इसलिए अहम है क्योंकि 28 में से 16 रिक्त सीट इसी क्षेत्र में आती हैं। सिंधिया अपने वर्चस्व वाले इस इलाके में अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे हैं। जब वह कांग्रेस में थे तो यह क्षेत्र कांग्रेस के लिए अत्यंत लाभदायक साबित हुआ था। कुल 114 सीट पर जीतने वाली कांग्रेस को इस अंचल की 34 में से 26 सीट पर जीत हासिल हुई थी। राजनीतिक विश्लेषक अनिल जैन कहते हैं, ‘उस क्षेत्र में अभी भी सामंती परंपराओं का बोलबाला है। हाल के वर्षों में वहां के दलितों में अवश्य चेतना बढ़ी है। वहां बहुजन समाज पार्टी की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत होने की यह भी एक वजह है। 16 में से नौ सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। कुल मिलाकर ये संकेत सिंधिया और उनके समर्थकों के लिए बहुत अच्छे नहीं हैं।’ ग्वालियर-चंबल क्षेत्र कांग्रेस के 52 बिंदुओं वाले घोषणापत्र में भी अहम है। पार्टी ने वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आई तो चंबल की गैर उपजाऊ जमीन को उपजाऊ बनाकर उसे भूमिहीन श्रमिकों को देगी। पार्टी ने इस इलाके में नए उद्योग लगाने और चंबल एक्सप्रेसवे के दोनों ओर औद्योगिक गलियारा विकसित करने की बात कही है।
नाथ-शिवराज या नाथ बनाम सिंधिया?
विधानसभा उपचुनावों में सामने से देखने पर लड़ाई कमल नाथ और शिवराज सिंह चौहान में नजर आती है। कांग्रेस नाथ का चेहरा सामने रखकर यह चुनाव लड़ रही है लेकिन कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि नाथ अच्छे आयोजक भले हों लेकिन वह जनता में लोकप्रिय नहीं हैं। कांग्रेस इस चुनावों में जनता से बस यही कह रही है कि गद्दार और बिकाऊ नेताओं को हराना है।
यदि सूत्रों पर भरोसा करें तो सिंधिया भी भाजपा में बहुत खुश नहीं हैं। पार्टी में उनके आगमन ने शक्ति संतुलन को अत्यंत जटिल बना दिया है। उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता के लिए यह आवश्यक है कि उपचुनाव में उनके प्रत्याशियों का प्रदर्शन बेहतर रहे।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि भाजपा में सिंधिया का भविष्य अधिक उज्ज्वल है। भाजपा में शामिल होते वक्त उन्होंने जिस तरह मोलभाव किया उसने उनकी विश्वसनीयता को धक्का पहुंचाया है। कोई भी राजनीतिक दल इतने कड़े मोलतोल को खुले दिल से स्वीकार नहीं करता। वह किसी वैचारिक झुकाव के चलते नहीं बल्कि अवसर की तलाश में भाजपा में आए। जाहिर है उनके भीतर कई विरोधाभास हैं।’
गिरिजा शंकर कहते हैं कि भाजपा आसानी से वांछित सीटें जीतेगी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने रहेंगे। लेकिन कांग्रेस के 25 बागियों की राह इतनी आसान नहीं है। वे अब भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। यानी उस पार्टी के टिकट पर जिसका बमुश्किल दो वर्ष पहले वे कड़ा विरोध कर रहे थे। उन्हें मतदाताओं को यह समझाने में खासी मुश्किल हो रही है कि आखिर उन्होंने अपनी मूल पार्टी क्यों छोड़ी? यदि राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बागियों में से कई के लिए चुनाव परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं।
कमलनाथ का स्टार प्रचारक का दर्जा रद्द
भारतीय निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश राज्य की 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए प्रचार करते हुए आदर्श आचार संहिता का बार-बार उल्लंघन करने के चलते कांग्रेस नेता एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के स्टार प्रचारक का दर्जा शुक्रवार को रद्द कर दिया। आयोग ने शुक्रवार को जारी एक आदेश में कहा, ‘आदर्श आचार संहिता के बार-बार उल्लंघन और उन्हें (कमलनाथ को) जारी की गई सलाह की पूरी तरह से अवहेलना करने को लेकर आयोग मध्य प्रदेश विधानसभा के वर्तमान उपचुनावों के लिए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के राजनीतिक दल के नेता (स्टार प्रचारक) का दर्जा तत्काल प्रभाव से समाप्त करता है।’
आयोग ने कहा कि कमलनाथ को स्टार प्रचारक के रूप में प्राधिकारियों द्वारा कोई अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, अब से यदि कमलनाथ द्वारा कोई चुनाव प्रचार किया जाता है तो यात्रा, ठहरने और दौरे से संबंधित पूरा खर्च पूरी तरह से उस उम्मीदवार द्वारा वहन किया जाएगा जिसके निर्वाचन क्षेत्र में वह चुनाव प्रचार करेंगे।’ भाषा