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150 नई स्कीमें! आखिर क्यों पैसिव फंड्स पर इतने आक्रामक हो गए म्युचुअल फंड हाउस?

भारत में पैसिव फंड्स की हिस्सेदारी 7% से बढ़कर 17% पहुंच गई है। FY25 में 118% उछाल के बाद AMCs अब रिकॉर्ड संख्या में नई स्कीमें लॉन्च कर रही हैं।

Last Updated- November 18, 2025 | 9:53 AM IST
Passive Funds

भारत में लोग अब म्युचुअल फंड में पैसिव फंड ज्यादा पसंद कर रहे हैं। मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2025 तक इन पैसिव फंड्स का हिस्सा 17.1% हो गया, जबकि साल 2020 में यह सिर्फ 7% था। पिछले कुछ सालों में ETFs और इंडेक्स फंड्स बहुत तेजी से बढ़े हैं। ETFs की बढ़त लगभग 28% और इंडेक्स फंड्स की 81% रही है। यह इसलिए हो रहा है क्योंकि लोग अब ज्यादा जागरूक हो रहे हैं, मोबाइल और डिजिटल ऐप्स का इस्तेमाल बढ़ गया है, और पैसिव फंड्स की लागत कम होती है, इसलिए लोग इन्हें आसान और सस्ता निवेश मानकर चुन रहे हैं।

क्यों FY25 पैसिव निवेश के लिए ब्रेकआउट साल साबित हुआ?

FY25 पैसिव फंड्स के लिए बहुत अच्छा साल रहा। इस साल इन फंड्स में लोगों ने खूब पैसा लगाया, जो 118% बढ़ गया। इंडेक्स फंड्स में 278% और ETFs में 59% की बढ़त हुई। पिछले चार साल से हर महीने पैसिव फंड्स में पैसा आ रहा था। लेकिन FY26 (अप्रैल से अक्टूबर 2025) में यह गति थोड़ी धीमी हो गई और पैसिव फंड्स में 34% कम पैसा आया। इसका कारण यह है कि पहले साल बहुत ज्यादा पैसा आया था और कुछ लोग फिर से एक्टिव फंड्स की तरफ लौट गए। रिपोर्ट कहती है कि यह गिरावट सिर्फ थोड़े समय के लिए है और आगे लंबे समय में पैसिव फंड्स की बढ़त जारी रहेगी।

भारत में पैसिव निवेश की लोकप्रियता क्यों बढ़ रही है?

रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में भी पैसिव फंड्स का चलन बढ़ रहा है। अमेरिका में तो पैसिव फंड्स कुल निवेश का 51% से ज्यादा हिस्सा रखते हैं। भारत में भी लोग अब ऐसे फंड चुन रहे हैं क्योंकि ये सस्ते होते हैं और इनका रिटर्न भी स्थिर रहता है। मोबाइल ऐप और डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से लोगों के लिए पैसिव फंड्स में निवेश करना और आसान हो गया है। अभी भारत में पैसिव फंड्स की हिस्सेदारी सिर्फ 17% है, जो दिखाता है कि आगे इसमें बढ़ने की बहुत गुंजाइश है।

क्या संस्थागत निवेश पैसिव फंड्स के लिए बड़ा सहारा बन रहा है?

रिपोर्ट बताती है कि पैसिव फंड्स को आगे बढ़ाने में बड़े संस्थान सबसे बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। EPFO ने मार्च 2024 तक अपने पैसे का करीब 10% हिस्सा ETFs में लगाया है। कॉरपोरेट कंपनियां ETFs के कुल निवेश का 86% हिस्सा रखती हैं। अमीर निवेशक (HNIs) लगभग 12% और आम छोटे निवेशक (रिटेल) सिर्फ 3% हिस्सा रखते हैं। इंडेक्स फंड्स में हिस्सा थोड़ा बराबर दिखता है, लेकिन कुल मिलाकर आम निवेशकों की भागीदारी अभी भी बहुत कम है। रिपोर्ट का कहना है कि आम लोग ETFs में इसलिए कम निवेश करते हैं क्योंकि डिस्ट्रीब्यूटर को इन फंड्स पर बहुत कम कमीशन मिलता है, इसलिए वे इन्हें ज्यादा नहीं बेचते।

क्या पैसिव और एक्टिव फंड्स के रिटर्न में वास्तव में फर्क है?

मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट कहती है कि बड़े कैप एक्टिव फंड, इंडेक्स फंड और ETF, इन तीनों के 1 साल और 3 साल के रिटर्न में कोई खास फर्क नहीं मिला। जब रिटर्न लगभग एक जैसा हो, तो लोग सस्ता और आसान विकल्प चुनते हैं। इसलिए निवेशक अब कम खर्च वाले पैसिव फंड्स की तरफ ज्यादा झुक रहे हैं। क्योंकि प्रदर्शन बराबर है, इससे इंडेक्स पर आधारित फंड्स (पैसिव फंड्स) को और ज्यादा स्वीकार किया जा रहा है।

क्यों बढ़ रहे हैं पैसिव स्कीम लॉन्च की रफ़्तार?

FY25 में कुल 150 नई पैसिव स्कीमें शुरू की गईं, जो FY24 की तुलना में लगभग दोगुनी हैं। इनमें 102 इंडेक्स फंड, 3 गोल्ड ETF, और 45 दूसरे तरह के ETF शामिल थे। इन सभी स्कीमों ने मिलकर 150.6 अरब रुपये जुटाए, जबकि पिछले साल सिर्फ 42.1 अरब रुपये आए थे। इससे साफ दिखता है कि कंपनियां पैसिव फंड्स की बढ़ती मांग को देखकर अब ज्यादा तेजी और आक्रामक तरीके से नए पैसिव प्रोडक्ट लॉन्च कर रही हैं।

कौन-सी कंपनियां इस बदलाव से सबसे ज्यादा फायदा उठा सकती हैं?

रिपोर्ट कहती है कि 360ONE और Nuvama जैसी वेल्थ मैनेजमेंट कंपनियां पैसिव फंड्स के बढ़ते चलन से फायदा उठा सकती हैं, क्योंकि इनके ग्राहक ज्यादा समझदार हैं और सीधे निवेश करना पसंद करते हैं। पैसिव फंड्स बढ़ने से म्युचुअल फंड कंपनियों (AMCs) और रजिस्ट्रार (RTAs) की कमाई थोड़ी कम हो सकती है, क्योंकि इन फंड्स की फीस कम होती है। लेकिन चूंकि पैसिव फंड्स चलाने में खर्च भी बहुत कम होता है, इसलिए उनकी कुल कमाई पर बड़ा असर नहीं पड़ेगा। रिपोर्ट ने जिन कंपनियों को अच्छा माना है, उनमें CAMS, Nuvama Wealth, Nippon AMC और ABSLAMC शामिल हैं।

First Published - November 18, 2025 | 9:49 AM IST

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