कुछ लोगों को लगता है कि बिहार विधानसभा चुनाव का गहन कार्य – कोविड-19 के साये में संचालित किया जाने वाला राज्य स्तरीय चुनावों का प्रथम चरण – किसी की भी तरफ से बिना किसी शिकायत के बाधारहित चल रहा है, फिर चाहे वे मतदाता हों या फिर उम्मीदवार तथा इससे लोकतंत्र की भावना पुष्ट होती है।
लेकिन किसी ऐसी बीमारी के बीच चुनाव कैसे कराए जाएं जो मुख्य रूप से बड़े स्तर पर एकत्रित होने वाले जनसमूहों को रोकती हो? भारतीय चुनाव आयोग विभिन्न विचारों और तर्कों के साथ जूझते हुए अंतत: ऐसे समाधान पर पहुंचा, हालांकि यह समाधान सर्वोत्कृष्ट नही है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि चुनाव की भावना बनी रहे। वैश्विक महामारी कोविड-19 की घोषणा किए जाने के बाद होने वाले चुनाव का पहला चरण राज्यसभा का था। चूंकि ये चुनाव परोक्ष होते हैं, इसलिए इनका प्रबंध ज्यादा कड़ा नहीं था। इसके बाद राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव हुआ। एक बार फिर इनका इंतजाम करना उतना मुश्किल नहीं था, क्योंकि मतदान करने वालों (राज्यसभा के सदस्यों) का दायरा सीमित था।
चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का कहना है कि इस वैश्विक महामारी के बीच भी सुचारू रूप से चुनाव कराने के लिए मतदाताओं को बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। हमें लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करनी है, चाहे कोई भी चुनौती क्यों न हो, लेकिन साथ ही स्वास्थ्य संरक्षण और सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी है।
चुनावों की तैयारी
लेकिन वास्तविक चुनौती बिहार विधानसभा चुनाव (और उप चुनावों) ने पेश की। इस पर मई 2020 में विचार शुरू हुआ था, वास्तविक मतदान से लगभग पांच महीने पहले। इसमें दक्षिण कोरिया सहित विभिन्न देशों के बेहतरीन तौर-तरीके शामिल थे। दक्षिण कोरिया ने वैश्विक महामारी के बीच चुनाव कराया था। स्थानीय प्रशासन के समक्ष एक रूपरेखा रखी गई। इसमें निम्नलिखित प्रमुख बातें शामिल थीं।
मतदाता
किसी को भी मतदान करने के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता था। लेकिन इनमें कोविड-19 से प्रभावित लोग शामिल थे और ये मतदाता कई श्रेणियों में आते थे – क्वारंटीन, संक्रमित, संदिग्ध और अस्पताल में भर्ती लोग। कोई एक ऐसा नियम कैसे बनाया जा सकता था ताकि इस श्रेणी के मतदाताओं को अपना मत देने का मौका मिल सके? इस बीमारी की उग्र प्रकृति के कारण स्थिति जटिल थी। और फिर 80 साल से ऊपर वाले उन लोगों का भी सवाल था जिन्हें इस संक्रमण से बचाने की आवश्यकता थी।
मतदान केंद्र
लोगों का आगमन, किसी घटना की प्रतिक्रिया, रोकथाम वाले बैरियर और सर्वश्रेष्ठ रूपरेखा आदि कैसे सुनिश्चित की जाए।
मतगणना केंद्र
लोगों के प्रवाह को नियंत्रित करना।
मतदान अधिकारी
उनकी सुरक्षा प्राथमिक थी, वे बैठकर चुनाव की देखरेख करते, हजारों लोगों से संपर्क में आने से जोखिम में होते, संभवत: लाखों लोग अपना वोट डाल रहे होंगे। उन्हें विशेष प्रशिक्षण, पीपीई किट, दस्ताने और अन्य सुरक्षात्मक उपकरणों की जरूरत थी।
डाक मतपत्र
प्रारंभिक चुनाव और अपने आप में एक उपाय के तौर इसका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता था।
मतदान केंद्रों की संख्या
संक्रमित लोगों को मतदान करने का मौका देने की जरूरत थी, क्या उन्हें मतदान के अंतिम घंटे में मतदान करने के लिए एक साथ रखा जा सकता था ताकि वे दूसरों के लिए खतरा न बन सकें।
इस पर विचार करने और राज्य सरकारों के साथ बातचीत के बाद चुनाव आयोग ने इन बातों पर निर्णय लिया:
कोविड-19 अधिकारी
राज्य सरकारों को अपनी खुद की व्यवस्था तैयार करने की छूट दे दी गई और केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा कोई केंद्रीकृत मानक संचालन प्रक्रिया जारी नहीं की गई।
1 से 18 जून के बीच राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारियों (सीईओ) ने चुनाव के लिए अपनी खुद की प्रणाली और योजनाएं विकसित कीं जो बहुत ही विशिष्ट थीं। उदाहरण के लिए झारखंड को केवल कोविड-19 पॉजिटिव मतदाताओं के लिए एक मतदान केंद्र की अलग व्यवस्था करने की अनुमति दी गई थी। केवल एक राज्य में ही मुख्य चुनाव अधिकारियों ने न मिटने वाली स्याही के निशान के लिए एक बारगी इस्तेमाल की प्रणाली का पालन किया था। मतदान कर्मी, उपकरण, आवागमन, आदि के लिए लॉजिस्टिक्स योजना बनाई गई थी।
सभी कर्मियों को सामान्य दिशानिर्देश जारी किए गए थे। इनमें कुछ भी अप्रत्याशित या आश्चर्यजनक नहीं था। उनके लिए यह सुनिश्चित कर दिया गया था कि सभी चुनाव संबंधी सभी गतिविधियों के लिए मास्क जरूरी है, सभी लोगों की थर्मल स्कैनिंग होना, उन्हें सैनिटाइजर और साबुन उपलब्ध कराना आवश्यक है, सभी गतिविधियां बड़े कक्ष होनी चाहिए ताकि सामाजिक दूरी सुनिश्चित हो सके तथा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की तैयारी और समय-समय पर उनका सैनिटाइजेशन किया जाना चाहिए।
चुनाव संबंधी कई अन्य जरूरी प्रक्रियाएं भी थीं – जब लोग नामांकन दाखिल करने के लिए आएं (आम तौर पर उम्मीदवार के समर्थकों की भीड़ के बीच ऐसा होता है), तो केवल दो ही व्यक्ति उम्मीदवार के साथ आ सकते थे जिन्हें केवल दो वाहनों की अनुमति प्रदान की जाएगी। न तो ट्रकों का काफिला और न ही ट्रैक्टरों का। जैसा कि पहले दस्तूर हुआ करता था।
भारतीय चुनाव आयोग ने आदेश दिया था कि मतदान की सामग्री, बैनर, पोस्टर वगैरह को बड़े-बड़े हवादार कक्षों में रखा जाना चाहिए। जिन स्थानों पर मतदान होना था, उन्हें सैनिटाइज किया जाना था और उन्हें एक दिन पहले ही सील कर दिया जाना था। स्वास्थ्य कर्मियों या आशा कार्यकर्ताओं को मतदाताओं की थर्मल स्कैनिंग के काम में लगाया जाना था और मतदान कार्यक्रम के दौरान नियमित रूप से सैनिटाइजेशन किया जाना था।
लेकिन चुनाव प्रचार के संबंध में क्या था? चुनाव आयोग ने कड़े नियम लागू किए थे।
केवल पांच लोगों (उम्मीदवार सहित) के साथ घर-घर जाकर प्रचार किया जाना था। रोड-शो के मामले में हर पांच वाहनों के बाद काफिले को तोडऩा जाना था। काफिले के दो हिस्सों के बीच का अंतराल कम से कम 30 मिनट होना चाहिए था। सार्वजनिक बैठकों का आयोजन उन बड़े मैदान में किया जाना था, जहां सामाजिक दूरी पर नजर रखी जा सके और राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों को हर निर्वाचन क्षेत्र की चीजों की निगरानी करनी थी। मैदान के हर द्वार पर सैनिटाइजर, साबुन और पानी उपलब्ध होना चाहिए था।
अब बेचैनी बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 अक्टूबर से शुरू होने वाली रैलियों को संबोधित करेंगे। भीड़ को कैसे नियंत्रित किया जाएगा?
