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लाल बंगाल में हार जीत कमल के हाथ

Last Updated- December 11, 2022 | 6:00 AM IST

भारतीय जनता पार्टी यूं तो पश्चिम बंगाल में अलग थलग और कम दबदबे वाली पार्टी नजर आती है, पर इस दफा लोकसभा चुनाव में पार्टी का रंग कुछ बदला बदला सा है।
खुद वामपंथी पार्टियों को इस दफा लगने लगा है कि भाजपा राज्य में कुछ हलचल पैदा कर सकती है। राज्य में पहले चरण का मतदान 30 अप्रैल को समाप्त हुआ है और खुद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को मानना है कि दार्जिलिंग लोकसभा सीट में भाजपा उम्मीदवार जसवंत सिंह उनकी पार्टी के प्रत्याशी जिबेश सरकार पर भारी पड़ सकते हैं।
माकपा नेता अब इस उम्मीद में हैं कि कम से कम तीन लोकसभा सीटों में भाजपा वामपंथी पार्टियों को जीतने का मौका दे। ये तीन सीटें कृष्णानगर, दम दम और अलीपुरद्वार हैं। दरअसल, वामपंथी पार्टियां इस उम्मीद में हैं कि अगर भाजपा विपक्ष के वोट का एक खासा हिस्सा हासिल करने में कामयाब रहती है तो इस तरह वामपंथी पार्टियों के लिए यहां जीत की राह आसान हो जाएगी।
इस बात को लेकर माकपा इतनी चिंतित है कि पार्टी के कुछ नेता जैसे श्यामल चक्रवर्ती और अमिताभ नंदी भाजपा उम्मीदवारों से इतना तक पूछ रहे थे कि वे दम दम और उत्तरी कोलकाता में दमदार प्रदर्शन क्यों नहीं कर पाए।
अलीपुरद्वार में 2004 के लोकसभा चुनाव में वाम मोर्चे के बाद भाजपा दूसरे नंबर पर आई थी। पर सम्मिलित रूप से विपक्षी पार्टियों को मिलने वाला वोट वामपंथी दलों के मुकाबले अधिक था। पर उस दौरान भाजपा का टीएमसी के साथ गठजोड़ था। 1996 में जब भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा था तो उसे 7.95 फीसदी मत मिले थे।
अलीपुरद्वार में जनजातीय लोगों का समर्थन वामपंथी दलों को रहता है। इस दफा वे भाजपा से कुछ नाराज लग रहे हैं और अगर ऐसा होता है और भाजपा अपने हिस्से का वोट पाने में कामयाब नहीं रहती है तो यहां वामपंथी पार्टियों के लिए मुकाबला कड़ा हो सकता है।
वहीं 1999 में भाजपा के तपन सिकदर और सत्यव्रत मुखर्जी ने दम दम और कृष्णानगर लोकसभा सीटों से चुनाव जीता था। दोनों को ही राजग सरकार में मंत्री बनाया गया था। पर 2004 में इन दोनों को ही माकपा प्रत्याशियों से हार मिली थी।
पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा ने टीएमसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था पर इस दफा वह अकेले चुनाव के मैदान में उतर रही है। इस वजह से इन तीनों ही सीटों पर इस दफा नजरें भाजपा की ओर टिकी हैं कि वह कैसा प्रदर्शन करती है।
पिछले चुनावों से यह पता चलता है कि भाजपा ने जब जब राज्य में अकेले चुनाव लड़ा है तो उसे 10 फीसदी से अधिक वोट नहीं मिला है। हां जब भाजपा के प्रत्याशी सत्यव्रत मुखर्जी को टीएमसी का समर्थन मिला था तो 1999 में कृष्णानगर सीट में उन्हें 43.82 फीसदी मत मिले थे और 2004 में यह 40.54 फीसदी था।
वाम मोर्चे को इस बात की चिंता है कि 2004 के चुनाव में कृष्णानगर सीट से विपक्षी पार्टियों को मिलने वाला कुल वोट उन्हें मिले वोट से 75,000 ज्यादा था। इस इलाके में सत्यव्रत मुखर्जी काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि राजग सरकार में जब वह मंत्री थे तो उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के लिए काफी काम किया था।
मुखर्जी को उनके धर्मनिरपेक्ष रवैये के लिए जाना जाता है और इस बार भी उन्हीं जीत के लिए प्रबल दावेदार माना जा रहा है। पर इस दफा टीएमसी ने भाजपा का साथ जोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है और ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि मुखर्जी विपक्ष के कितने वोट अपनी झोली में डाल पाते हैं।
पश्चिम बंगाल में जीत के लिए भाजपा पर टिकी हैं वामदलों की सारी उम्मीदें
दार्जिलिंग सीट में भाजपा के प्रत्याशी जसवंत सिंह का पलड़ा है विरोधियों के मुकाबले भारी
कृष्णानगर, दम दम और अलीपुरद्वार सीट पर भी वाम दलों ने गड़ाई नजरें
भाजपा को टीएमसी से दूरी बनाने पर उठाना पड़ सकता है नुकसान

First Published - May 5, 2009 | 2:31 PM IST

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