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बिहार: बड़े उद्योग नहीं पर आर्थिक वृद्धि में तेजी कैसे

Last Updated- December 14, 2022 | 10:21 PM IST

बिहार में नवंबर 2015 में कार्यभार संभालने वाली मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जुलाई 2017 में ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से अपना गठबंधन तोड़ दिया और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हाथ मिला कर फिर से राज्य में सत्ता की कमान संभाल ली। अब नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) राज्य विधानसभा चुनाव में राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के खिलाफ  खड़ी है। साल 2015-16 और 2016-17 में जब नीतीश कुमार सरकार अपने पहले सहयोगी दल के साथ सत्ता में थी तब राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में क्रमश: 6.08 प्रतिशत और 8.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 2015-16 में बिहार की जीएसडीपी वृद्धि 8 फीसदी की राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि से कम थी जबकि 2016-17 की जीएसडीपी वृद्धि राष्ट्रीय स्तर के 8.3 फीसदी की वृद्धि से अधिक थी। हालांकि 2016-17 में यह गठबंधन सिर्फ  पांच महीने के लिए ही सत्ता में रहा था।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ नीतीश पहले साल वृद्धि के लिहाज से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके। हालांकि 2018-19 और 2019-20 में बेहतर परिणाम सामने आए। पहले साल जीएसडीपी में सिर्फ  6.45 फीसदी की वृद्धि रही जबकि राष्ट्रीय जीडीपी वृद्धि सात फीसदी रही। इसके बाद 2018-19 में राष्ट्रीय जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 6.1 प्रतिशत हो गई और फिर इसके अगले साल 4.2 प्रतिशत हो गई जबकि बिहार की जीएसडीपी वृद्धि क्रमश: 9.3 प्रतिशत और 10.5 प्रतिशत हो गई।
बिहार के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री सुशील मोदी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य में कोई बड़ा औद्योगीकरण नहीं होने के बावजूद जीडीपी वृद्धि में तेजी आई। मोदी ने बताया, ‘कोई बड़ा उद्योग राज्य में कभी नहीं आएगा क्योंकि हमारे पास देने के लिए जमीन नहीं है। इसकी वजह यह है कि राज्य का भूगोल कुछ इस तरह का है कि यह हर तरफ  से जमीन से ही घिरा हुआ है और यहां की जमीन उपजाऊ होने के साथ ही इसके छोटे-छोटे टुकड़े और बंटे हुए जोत हैं। यहां जमीन का औसत पट्टा एक हेक्टेयर से भी कम है।’
उनका कहना है कि बिहार में जमीन का अधिग्रहण करना बहुत मुश्किल है। वह कहते हैं, ‘अगर हमें 20 एकड़ जमीन की जरूरत है तो हमें 20 लोगों से बातचीत करनी होगी। बिहार के हिस्से में सिर्फ  सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग ही आए और निजी क्षेत्र से कोई बड़ी कंपनियां नहीं आईं।’ मोदी कहते हैं, ‘आईटीसी, ब्रिटानिया जैसी कंपनियां उद्योग स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं लेकिन जमीन ही नहीं है। हम स्वीकार करते हैं कि बिहार के लिए बड़े उद्योग लगाना संभव नहीं है।’ वह बिहार में चीनी क्षेत्र का उदाहरण देते हैं। उनका कहना है कि पिछले 15 साल में चीनी कारखानों के लिए तीन बार बोली लगी थी लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। वह कहते हैं, ‘मंत्रिमंडल ने इस मकसद से गैर-चीनी कंपनियों को करीब 2,200 एकड़ अधिग्रहीत जमीन देने का फैसला लिया है। हमारे पास इतनी ही जमीन है।’
हालांकि राज्य में अभी तीन सीमेंट इकाइयां हैं। इनमें डालमिया द्वारा एक बंद इकाई का अधिग्रहण और अल्ट्रा टेक द्वारा दूसरी इकाई स्थापित करना शामिल है। राज्य के उप मुख्यमंत्री बताते हैं, ‘ये उद्योग आ सकते हैं लेकिन बड़े उद्योग जमीन की कमी के कारण नहीं आ सकते।’ मोदी ने इस वृद्धि के लिए कृषि क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन के अलावा कम आधार और ज्यादा सार्वजनिक व्यय को श्रेय देते हुए कहा, ‘अगर आप पिछले दस साल को लें तो औसत वार्षिक जीडीपी वृद्धि दो अंकों में है। हमने कृषि और पशुपालन उद्योगों को बढ़ावा दिया है।’
हालांकि, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और पटना के ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ  सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डी एम दिवाकर का कहना है कि वृहद आर्थिक आंकड़ों को अलग करके देखने की जरूरत है।
वह कहते हैं, ‘जब आप कह रहे हैं कि राजद गठबंधन के बाद जीडीपी में वृद्धि हुई है तो इसको अलग श्रेणी के हिसाब से देखें। कृषि वृद्धि दर में कमी आई है और फसल वृद्धि दर ऋणात्मक हो गई है।’
वह कहते हैं कि बिहार में अधिकांश लोग खेती पर निर्भर हैं इसलिए पिछले कुछ सालों में उनकी आमदनी कम हुई है जबकि माध्यमिक और तृतीय स्तर के क्षेत्रों मसलन सड़क निर्माण, बिजली, भवन निर्माण केकारण विकास दर ज्यादा रहा। वह कहते हैं, ‘कृषि कैबिनेट और कृषि रोडमैप होने के बावजूद प्राथमिक क्षेत्र ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। व्यापक वृद्धि दर आपको स्पष्ट तस्वीर नहीं देता और असली तस्वीर क्षेत्रवार आधार पर उनकी वृद्धि दर को देखने से स्पष्ट होती है।’
बिहार में तीन कृषि रोडमैप बने हैं। इनमें से पहला 2008 से 2012 के बीच लागू किया गया था। इसमें जैव खेती पर जोर दिए जाने के साथ ही कृषि उपकरणों के इस्तेमाल के अलावा बीज विस्तार योजना तथा बीज ग्राम योजना जैसे कई कार्यक्रमों की शुरुआत की गई। इस रोडमैप में 23 फसलों के लिए प्रमाणित बीजों की उपलब्धता पर भी जोर दिया गया।
दूसरे रोडमैप का मकसद खाद्यान्न और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना, किसानों की आमदनी बढ़ाना है। इन्हें किसानों को बिजली की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने, भंडारण सुविधाओं को बढ़ाने और इंद्रधनुष क्रांति के लिए खाद्य प्रसंस्करण पहलों को बढ़ावा देकर हासिल किया जाना था ताकि बिहार कृषि उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सके और इस क्षेत्र को निर्यात करने के अनुरूप बनाया जा सके। तीसरा रोडमैप साल 2017-2022 के लिए नवंबर 2017 में लॉन्च किया गया था। इसमें खाद्य प्रसंस्करण, सिंचाई, बाढ़ सुरक्षा और डेरी विकास परियोजनाओं सहित कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए 1.54 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है।
जहां तक राज्य के राजस्व का सवाल है तो भाजपा-राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन के पहले साल का प्रदर्शन अच्छा था क्योंकि राज्य के अपने कर राजस्व (ओटीआर) में 23 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। हालांकि,अगले दो साल में वृद्धि में कमी दिखाई दी जिसमें जदयू के पहले और दूसरे गठबंधन का एक साल शामिल था। मोदी कहते हैं कि यह शराबबंदी के कारण हुआ जिसे 1 अप्रैल, 2016 से लागू किया गया था। उन्होंने बताया कि इससे 4,500-5,000 करोड़ रुपये का स्थायी नुकसान हुआ। अगले दो वर्षों में ओटीआर में वृद्धि दर क्रमश: 27 प्रतिशत और 16 प्रतिशत देखी गई। कोविड के कारण 2020-21 में राजस्व में फिर से दबाव देखा जा रहा है। यहां तक कि बजट अनुमान जो आम तौर पर महत्त्वाकांक्षी होते हैं उनसे भी अंदाजा मिलता है कि चालू वित्त वर्ष में ओटीआर में सिर्फ 1.9 फीसदी तक की वृद्धि होगी।
अर्थशास्त्र के प्रोफेसर दिवाकर कहते हैं, ‘जब आप जीएसटी रिटर्न देखते हैं तो बिहार को हर साल हजारों करोड़ों का नुकसान होता है। इसके अलावा, केंद्र ने पिछले दो वर्षों में राज्यों को वादे के अनुसार इसका पूरा मुआवजा नहीं दिया है। 2018-19 में, केंद्र को 10,051 करोड़ रुपये देने थे लेकिन वहां से केवल 3,539 करोड़ रुपये ही मिले।’
उन्होंने कहा कि लोकसभा में केंद्र ने कहा था कि जीएसटी राजस्व उम्मीद के मुताबिक नहीं मिल सकता है, ऐसे में कुल राजस्व कम है और इस तर्क के हिसाब से राज्य का हिस्सा भी कम होगा।
सोमवार को बिहार को जीएसटी के तहत मुआवजे के लिए जरूरी रकम और उपकर संग्रह के बीच के अंतर को आंशिक रूप से पूरा करने के लिए 3,231 करोड़ रुपये की उधारी लेने की अनुमति दी गई।
2018-19 में ओटीआर में अच्छी वृद्धि के बावजूद, बिहार सरकार ने उस साल पूंजीगत खर्च में 11.96 प्रतिशत की कटौती की। यह उस साल 21.70 प्रतिशत राजस्व व्यय की भरपाई करने के लिए था। अगर 2019-20 को छोड़ भी दें तो जदयू-राजद गठबंधन सरकार के पहले साल में पूंजीगत व्यय वृद्धि सबसे अधिक 29.75 फीसदी थी।
2019-20 के संशोधित अनुमानों में 61 प्रतिशत की पूंजीगत व्यय वृद्धि, 36 प्रतिशत की राजस्व व्यय वृद्धि जैसे कुछ बड़े आंकड़े सामने आए जो राज्य के राजकोषीय घाटे को जीएसडीपी के 9.45 प्रतिशत तक बढ़ा देगी क्योंकि कुल प्राप्तियों की वृद्धि दर 16.84 फीसदी तक आंकी गई थी। यह राजकोषीय घाटा ज्यादा है क्योंकि राज्यों को अपने राजकोषीय घाटे को अपने जीएसडीपी के 3 प्रतिशत पर रखना जरूरी है।
मोदी कहते हैं कि वास्तविक आंकड़े आते ही इन आंकड़ों को सही कर दिया जाएगा। वह कहते हैं, ‘राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 9.5 प्रतिशत तक बढऩे का अनुमान था क्योंकि वास्तविक आंकड़े नहीं आए हैं। हम उन विभागों को धन हस्तांतरित करते हैं जिन्होंने अपनी आवंटन राशि का इस्तेमाल किया है, बजाय इसके कि जिन्होंने राशि का इस्तेमाल ही नहीं किया है। हालांकि, अनुमान में दोनों ही आवंटनों को शामिल किया गया जिनमें पहले वे विभाग शामिल हैं जिन्होंने पैसे का इस्तेमाल नहीं किया था और वैसे विभाग जिन्होंने आवंटित राशि का इस्तेमाल किया और उन्हें अधिक पैसा भी मिला है।’
इस तरह से 2019-20 के ज्यादा आंकड़ों के साथ 2020-21 के खर्च अनुमान की तुलना करना सही नहीं होगा। सभी तरह के खर्च चाहे वह पूंजीगत व्यय, राजस्व या दोनों में मौजूदा वित्त वर्ष में वृद्धि कम होता नजर आया।

First Published - October 21, 2020 | 11:25 PM IST

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