केन्द्रीय खनन योजना और डिजाइन संस्थान लिमिटेड (सीएमपीडीआई) ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि देश में नई खनन योजनाओं के कारण 2025 तक करीब 10 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा। सीएमपीडीआई कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की सहायक इकाई है और देश के शीर्ष सलाहकार संस्थानों में शामिल है।
सीएमपीडीआई के महाप्रबंधक (तकनीकी सेवा) बी दयाल ने बताया कि ‘एक अनुमान के मुताबिक 2025 तक 8.5 लाख लोग कोयला खनन परियोजनाओं के कारण अपनी जगह से विस्थापित होंगे जबकि झरिया और रानीगंज कोयला खदानों में सीआईएल के मास्टर प्लान को लागू किया गया तो करीब 1.12 लाख अतिरिक्त लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा।’
उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में लोगों को खनन के लिए बेदखल होना पड़ेगा। देश में 2025 तक खनन क्षेत्रफल बढ़कर 2,925 वर्ग किलोमीटर हो जाएगा। इस समय यह आंकड़ा 1,470 वर्ग किलोमीटर है। कोयल खनन गतिविधियों में जंगली क्षेत्रों की हिस्सेदारी भी मौजूदा 20 से 25 प्रतिशत के मुकाबले बढ़कर 2025 तक 30 प्रतिशत हो जाएगी।
सीएमपीडीआई के अध्ययन में खानों के बंद होने और जंगलों में खनन की अनुमति देने पर भी सवाल उठाया गया है। रिपोर्ट में जंगली क्षेत्रों को खनन की अनुमति वाले और खनन प्रतिबंधित क्षेत्र में विभाजित करने का सुझाव भी दिया गया है। रिपोर्ट में कोयला खनन कंपनियों के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नियम बनाने की वकालत भी की गई है।
अध्ययन में कहा है कि देश में इस समय पुर्नवास काफी संवेदनशील मुद्दा बन गया है। इसलिए पुर्नवास पर खास ध्यान देने और लोगों को खनन गतिविधियों में शामिल करने की जरुरत है। दयाल ने कहा कि ‘खनन कंपनियों को विस्थापित लोगों के लिए आकर्षक पुर्नवास पैकेज की पेशकश करनी होगी। इतना ही नहीं उनके लिए मकान, सड़क, अस्पताल और स्कूल बनाने के लिए भी निवेश करना होगा। खनन परियोजनाओं से विस्थापित होने वाले लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए कंपनियों को काम करना होगा।’
उन्होंने आगे कहा कि जिन लोगों को परियोजना से रोजगार नहीं मिल पा रहा है, कंपनियों को उनके लिए रोजगार के वैकल्पिक जरिए तैयार करने चाहिए। उन्होंने कहा कि खनन गतिविधियों से बड़ी मात्रा में राख और अन्य कचरा निकलता है। इस समय देश में कोयला खनन से प्रतिवर्ष 30 करोड़ टन राख निकलती है। इसके अलावा 20 करोड़ टन अन्य कचरा निकलता है।