भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर उपभोक्ताओं और कारोबारों के विचारों के जो सर्वेक्षण करता है वे अक्सर वृद्धि, मुद्रास्फीति तथा शेष वृहद-आर्थिक आंकड़ों की तुलना में कहीं अधिक जानकारीपरक होते हैं। उसके ताजा सर्वेक्षणों के निष्कर्षों में कारोबारी और वित्तीय विचार व्यापक तौर पर आर्थिक विस्तार को लेकर आशावाद दिखाते हैं जिसके पीछे अच्छे स्थिरता संकेतक और मजबूत बैलेंस शीट जैसी वजह हैं।
यह बात आर्थिक पूर्वानुमान लगाने वालों पर भी लागू होती है जिन्हें सर्वेक्षणों में शामिल किया गया। अर्थव्यवस्था व्यस्त त्योहारी मौसम में प्रवेश कर रही है और यह सामूहिक आशावाद ताजा वृहद आर्थिक आंकड़ों में भी नजर आता है। उदाहरण के लिए मुद्रास्फीति में कमी आ रही है, औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है, बेरोजगारी में कमी आई है, कर राजस्व में सुधार हुआ है और क्षेत्रवार वृद्धि बेहतर सुधरी है।
परंतु इस बीच हमें बारीकियों को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उदाहरण के लिए उद्योग जगत के भीतर विनिर्माण क्षेत्र निरंतर पिछड़ रहा है। तेजी का कोई वास्तविक संकेत नहीं मिल रहा है। उदाहरण के लिए विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता के उपयोग का प्रतिशत निरंतर 70 फीसदी से कम बना हुआ है।
कोविड के दौर की गिरावट को छोड़ दिया जाए तो बीते सात या आठ सालों में यह लगभग इसी दौर में रही है। अगर क्षमता का इस्तेमाल इस स्तर से ऊपर जाने पर ही नई क्षमताओं में अहम निवेश देखने को मिलेगा तो ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।
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विनिर्माण क्षेत्र की नए ऑर्डरों से संबंधित रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है। अगर ऐसे ऑर्डरों की एक वर्ष पहले से तुलना करें तो चार तिमाहियों में इनमें काफी कमी आई है और ये 40 फीसदी से घटते हुए अप्रैल-जून तिमाही में करीब शून्य हो गए। विचित्र बात है कि इस स्पष्ट कमी के बावजूद कारोबारी अपेक्षाओं का सूचकांक 135.4 अंकों के साथ अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर है।
उपभोक्ता सर्वेक्षण का समांतर निष्कर्ष कम आशावादी मिजाज दर्शाता है। निश्चित तौर पर वर्तमान आम आर्थिक हालात का आकलन बीते कुछ वर्षों से निरंतर सुधर रहा है लेकिन सूचकांक 2019 के अंत के स्तर से ऊपर नहीं गया है। यही वह समय था जब आर्थिक हालात में गिरावट शुरू हुई थी।
अभी भी उन लोगों की तादाद ज्यादा है जिनको लगता है कि उनकी स्थिति खराब हुई है हालांकि बेहतरी महसूस करने वाले तेजी से अंतर को पाट रहे हैं। रोजगार की बात करें तो गिरावट महसूस करने वाले यहां भी सुधार महसूस करने वालों से अधिक हैं। यहां भी अंतर कम हो रहा है।
सबसे बड़ी चिंता मुद्रास्फीति को लेकर है। 80 फीसदी से अधिक लोगों का कहना है कि कीमतें बढ़ने की दर तेज हो रही है। इस बात की उम्मीद भी कम ही है कि आने वाले वर्ष में कीमतें नियंत्रण में आ जाएंगी। उपभोक्ताओं का कहना है कि उनका व्यय बढ़ा है लेकिन केवल जरूरी चीजों के मामले में। गैर जरूरी चीजों पर व्यय कम हुआ है।
सकारात्मक पहलू की बात करें तो एक दोमाही सर्वेक्षण से दूसरे तक उपभोक्ताओं के विचारों की नकारात्मकता कम हो रही है। कई लोग अपनी परिस्थितियां कठिन मान रहे हैं लेकिन उनकी तादाद अपेक्षाकृत कम है। साथ ही भविष्य को लेकर आशाएं बरकरार हैं। लगभग सभी मामलों में माना जा रहा है कि भविष्य वर्तमान से बेहतर होगा।
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रोजगार की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन मोटे तौर पर ऐसा इसलिए हुआ है कि स्वरोजगार को अपनाने वालों की तादाद तेजी से बढ़ी है। यह तब हुआ है जब वेतन वाले रोजगार कम हुए हैं। इसका अर्थ यह हो सकता है कि स्वरोजगार की श्रेणी एक ऐसी श्रेणी है जहां वे लोग खप रहे हैं जिन्हें नियमित काम नहीं मिल रहा है या जो अंशकालिक श्रमिक हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें वेतन वाला रोजगार नहीं मिलने के कारण विवशता में यह करना पड़ रहा है। यदि ऐसा है तो रोजगार में सुधार के आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं।
एक अन्य आंकड़ा जिस पर काफी टिप्पणी की गई है वह है बैंक ऋण में अच्छी वृद्धि। सबसे अधिक वृद्धि खुदरा और व्यक्तिगत ऋण में हुई है। ऐसा इसलिए हो सकता है कि कई कंपनियों के पास काफी नकदी है और उन्हें ऋण लेने की आवश्यकता नहीं है। वहीं अधिक से अधिक उपभोक्ता भविष्य की आय के मामले में खुद को आत्मविश्वास से भरा हुआ मान रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि वे वाहन, आवास आदि ऋण को आसानी से चुका लेंगे। रिजर्व बैंक ने यह चेतावनी देकर अच्छा किया है कि ऋण के इस रुझान पर नजर रखनी होगी क्योंकि आम परिवारों का ऋण बढ़ने का जोखिम है।
अर्थव्यवस्था की समग्र तस्वीर व्यापक तौर पर आशावादी नजर आ रही है। कुछ विरोधाभासी रंग इसका हिस्सा हैं। अर्थव्यवस्था 6 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर की ‘नई पुरानी सामान्य’ दर पर आगे बढ़ रही है। वैश्विक परिदृश्य के लिहाज से यह अच्छी बात है लेकिन निकट भविष्य में तेजी की संभावना नहीं नजर आ रही है।