ट्रंप की दादागीरी के बीच भारत को खुद को कोने में धकेलने से बचना होगा
आठ जुलाई 1853 को कमोडोर मैथ्यू पेरी दो भाप इंजन वाले जहाजों और दो पाल वाली छोटी नावों के साथ टोक्यो की खाड़ी में पहुंचे। जब उन्हें विदेशी पोतों की इजाजत वाले नागासाकी बंदरगाह जाने का आदेश दिया गया तो उन्होंने उसे नकार दिया। इसी तरह उन्होंने स्थानीय अधिकारियों को अपने पोतों पर नहीं आने […]
ट्रंप का नया कार्यकाल और बदलती दुनिया
डॉनल्ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं और दुनिया बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। दूसरे विश्व युद्ध से ही सबसे शक्तिशाली देश भी राष्ट्रीय संप्रभुता को सीमित करने के इच्छुक थे। वे वैश्विक नियमों और सहकारी कदमों के पालन के लिए सहमत थे। ऐसे नियम कई मामलों […]
Manmohan Singh: हर भिड़ंत में दिखाई समझ और बुद्धिमत्ता की गहराई
मैं पहली बार मनमोहन सिंह से 1981 में मिला। दिल्ली में बिजनेस स्टैंडर्ड के संवाददाता के तौर पर योजना आयोग के सदस्य-सचिव से मिलने मैं अपने ब्यूरो प्रमुख के साथ गया था। वे उनके पुराने मित्र थे और जैसे ही हम उस बड़े कार्यालय में सोफा पर बैठे, मेरे बॉस ने पाया कि अच्छी तरह […]
दुनिया पर कमजोर होती अमेरिका और पश्चिमी देशों की पकड़
तकनीकी एवं कूटनीतिक मोर्चे पर चीन और रूस का दबदबा बढ़ने से वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव साफ दिख रहा है। विश्लेषण कर रहे हैं टी एन नाइनन पश्चिम देशों और शेष दुनिया के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के बीच यह स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश अब भी ताकतवर अवश्य […]
साप्ताहिक मंथन: कारोबारी जगत में भय और प्रसन्नता
वर्तमान भारतीय कारोबारी जगत का विरोधाभास यह है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) की चुनावी जीतों पर शेयर बाजार में अत्यंत प्रसन्नता का माहौल है जबकि कई कारोबारी दिल्ली में पार्टी की सरकार को लेकर सशंकित भी हैं। चार वर्ष पहले राहुल बजाज (अब हमारे बीच नहीं) ने अमित शाह से कहा था कि उद्योगपति […]
साप्ताहिक मंथन: रेलवे के लिए नई कारोबारी योजना
उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस दिल्ली से लखनऊ तक 550 किलोमीटर के सफर के लिए 822 रुपये किराया लेती है, यानी 1.49 रुपये प्रति किलोमीटर। रेल से यही सफर लगभग आधी कीमत यानी 432 रुपये में तय किया जा सकता है। तीसरे दर्जे के वातानुकूलित डिब्बे में आप यही सफर 755 रुपये में आराम से […]
साप्ताहिक मंथन: समस्याओं का हल नहीं
सन 1996 के आरंभ में वित्त मंत्रालय में मेरी मुलाकात तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह से हुई। जब उनसे कहा गया कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी आर्थिक सुधारों की बात नहीं करेगी तो डॉ. सिंह ने कहा था, ‘उसके सिवा बात करने को है क्या?’ उसके बाद से हुए हर चुनाव में इस […]
भारतीय कॉर्पोरेट जगत: छोटे कारोबारों की दस्तक
भारत में क्या घटित हो रहा है यह समझना कभी भी आसान नहीं रहा है क्योंकि यहां हमेशा विरोधाभासी कथानक मौजूद रहते हैं। एक कहानी यह है कि भारतीय कारोबार तेजी से ऐसी स्थिति में पहुंच रहे हैं जहां कुछ प्रभावशाली कारोबारी अधिकांश क्षेत्रों पर दबदबा कायम कर रहे हैं और एक तरह का आर्थिक […]
साप्ताहिक मंथन: भारत के लिए ओलिंपिक 2036 की मेजबानी का वक्त!
नवागतों के लिए कमिंग आउट पार्टी (स्वागत पार्टी) काफी समय से चलन से बाहर है। परंतु विभिन्न देश जब आय और विकास के एक खास स्तर पर पहुंचते हैं और जब उन्हें लगता है कि उन्हें दुनिया को कुछ बताना चाहिए तो वे आज भी ऐसा करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रति व्यक्ति […]
साप्ताहिक मंथन: आशावादी तस्वीर
भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर उपभोक्ताओं और कारोबारों के विचारों के जो सर्वेक्षण करता है वे अक्सर वृद्धि, मुद्रास्फीति तथा शेष वृहद-आर्थिक आंकड़ों की तुलना में कहीं अधिक जानकारीपरक होते हैं। उसके ताजा सर्वेक्षणों के निष्कर्षों में कारोबारी और वित्तीय विचार व्यापक तौर पर आर्थिक विस्तार को लेकर आशावाद दिखाते हैं जिसके पीछे अच्छे स्थिरता […]