
साप्ताहिक मंथन: टिकाऊ वृद्धि दर
पिछले चार दशकों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना में नाटकीय बदलाव आए हैं। वर्ष 1980-81 में भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत से कम होकर 21 प्रतिशत रह गई थी, जबकि सेवा क्षेत्र का हिस्सा 37 प्रतिशत से बढ़कर 53 प्रतिशत तक पहुंच गया। उद्योग जगत (निर्माण सहित) की हिस्सेदारी […]

साप्ताहिक मंथन: आईना देखना जरूरी
देश में प्रेस स्वतंत्रता, मानवाधिकार, भ्रष्टाचार, अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार आदि को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो टीका-टिप्पणी हो रही है उस पर सरकार की नाराजगी भरी प्रतिक्रिया बताती है कि वह इनमें से अधिकांश मुद्दों पर बिगड़ते हालात को स्वीकार ही नहीं करना चाहती है। कोई भी स्वतंत्र पर्यवेक्षक देख सकता है कि मोदी […]

साप्ताहिक मंथन: PLI अगर फेल हुई तो क्या….!
बाजार के प्रति सकारात्मक रुझान रखने वाले टीकाकारों की ओर से मोदी सरकार को लेकर जो आलोचना की जाती है उनमें से दो मानक आलोचनाएं यह हैं कि क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से दूरी रखी जा रही है और सरकार की उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना के माध्यम से घरेलू विनिर्माण को गति देने […]

साप्ताहिक मंथन: जनांकिकीय लाभ की असली कहानी
अधिकांश प्रकाशनों ने संयुक्त राष्ट्र के एक संगठन की इस बात को बिना किसी आलोचना के स्वीकार कर लिया है कि भारत इस महीने दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन गया है। आकलन के मुताबिक भारत की 142.9 करोड़ की आबादी चीन की जनसंख्या से मामूली अधिक है। आधुनिक जनगणना शुरू होने के बाद […]

साप्ताहिक मंथन- जलवायु परिवर्तन और जीडीपी
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की आधुनिक अवधारणा करीब नौ दशक पुरानी है। इसे सन 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में औपचारिक रूप से प्राथमिक आर्थिक उपाय के रूप में अपनाया गया जिसका परिणाम अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की स्थापना के रूप में सामने आया। आलोचक तब से अब तक इसे मिली प्राथमिकता […]

साप्ताहिक मंथन : पूंजी पर कर
सरकार ने डेट इंस्ट्रुमेंटों पर दीर्घावधि के पूंजीगत लाभ पर से कर लाभ को समाप्त करके अचानक गुगली डाल दी है। उसने संसद द्वारा बगैर चर्चा के पारित वित्त विधेयक में अंतिम समय में यह बदलाव शामिल किया। पूंजीगत लाभ के लिए भारत की कर दरें कुछ इस प्रकार की रही हैं कि ज्यादा आय […]

साप्ताहिक मंथन : संक्रमण का आकलन
वित्तीय संकट अमेरिकी कवि ऑग्डेन नैश की उस व्याख्या से एकदम मेल खाता है जिसमें उन्होंने केचप के बोतल से बाहर निकलने के बारे में कहा था, ‘पहले थोड़ा सा, फिर ज्यादा’। वर्ष 2008 के वित्तीय संकट को याद कीजिए। वास्तव में गड़बड़ी की शुरुआत करीब दो वर्ष पहले हुई थी जब अमेरिका में आवास […]

साप्ताहिक मंथन: डेट से इक्विटी की ओर
हिंडनबर्ग रिसर्च ने शॉर्ट सेलिंग के माध्यम से अदाणी समूह पर जो हमला किया उसका एक अनचाहा लेकिन अच्छा परिणाम भावी ‘राष्ट्रीय चैंपियंस’ (बड़े कारोबारी समूह जिनकी योजना सरकारी योजना और प्रोत्साहन के अनुरूप भारी भरकम निवेश करने की है) के लिए यह हुआ है कि वे अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के क्रम में […]

बराबरी की होड़, भारत की अर्थव्यवस्था में चीन की अर्थव्यवस्था की तुलना में लगातार दूसरे वर्ष तेज गति से वृद्धि
भारत की अर्थव्यवस्था में चीन की अर्थव्यवस्था की तुलना में लगातार दूसरे वर्ष तेज गति से वृद्धि हो रही है। इस वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की 7 फीसदी वृद्धि दर होने का अनुमान जताया गया है जबकि चीन की अर्थव्यवस्था के महज 3 फीसदी वृद्धि हासिल करने का अनुमान है। इसी प्रकार गत वर्ष […]

साप्ताहिक मंथन: साल 2022-23 का आम बजट और आर्थिक समीक्षा
हाल के वर्षों में सरकार के बजट की एक आम आलोचना यह रही है कि उसका ध्यान हमेशा पूंजीगत निवेश पर केंद्रित रहता है और सामाजिक क्षेत्रों की अनदेखी की जाती है। उदाहरण के लिए सामाजिक क्षेत्रों की इस अनदेखी को रोजगार गारंटी योजना के वास्ते घटते आवंटन और शिक्षा के बजट में ठहराव में […]