वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में शेयर बाजार के प्रदर्शन से निवेशक संतुष्ट नजर आ रहे हैं। इसके लिए उनके पास पर्याप्त कारण भी मौजूद हैं। परंतु, चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में सतर्क दृष्टिकोण रखने के भी पर्याप्त कारण हैं। इस वर्ष अप्रैल के बाद से वृहद बाजार सूचकांक 12-13 प्रतिशत तक उछल चुके हैं, किंतु पहली तिमाही में आय वृद्धि दर धीमी अवश्य रही है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर भी सुस्त रही है जिसका असर निर्यात में कमी के रूप में दिखेगा और सूचना-प्रौद्योगिकी सेवाओं का कारोबार भी ठंडा रहेगा। ईंधन कीमतों में तेजी भी दबाव बढ़ा रही है। कमजोर निर्यात और ऊर्जा के बढ़े दाम से बाह्य घाटे बढ़ गए हैं।
अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व वर्तमान परिस्थितियों के बीच चौकस है और उसने ऐसे संकेत दिए हैं कि वह दीर्घ अवधि तक ब्याज दरें बढ़ाना और मौद्रिक आपूर्ति पर नियंत्रण जारी रख सकता है। चीन का रियल एस्टेट बाजार भी चिंता का कारण है। वहां का रियल एस्टेट क्षेत्र ऋण और नुकसान के बोझ तले कराह रहा है और कभी भी धराशायी हो सकता है। यूक्रेन युद्ध भी थम नहीं रहा है जिससे दुनिया में अनाज की आपूर्ति बाधित रह सकती है।
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मगर कमजोर वैश्विक परिदृश्य और चुनावों के कारण राजनीतिक मोर्चे पर अनिश्चितता बनी रहने के बावजूद घरेलू संस्थागत निवेशकों का दृष्टिकोण सकारात्मक लग रहा है। खुदरा निवेशकों का उत्साह भी कम नहीं है। हालांकि, पिछले दो महीने के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) जोखिम लेने से बचते रहे हैं।
1 अप्रैल से 28 सितंबर के बीच घरेलू संस्थागत निवेशकों (म्युचुअल फंडों को छोड़कर) ने शेयरों में 47,500 करोड़ रुपये निवेश किए हैं। अप्रैल-अगस्त के मध्य इक्विटी म्चुचुअल फंडों में 46,229 करोड़ रुपये निवेश आए हैं। इनमें 80 प्रतिशत से अधिक रकम खुदरा निवेशकों की तरफ से आई है। खुदरा निवेशकों ने छोटे एवं मझोले शेयरों के खंडों में भी सीधे निवेश किए हैं।
अप्रैल-जुलाई अवधि में 74,750 करोड़ रुपये की खरीदारी करने के बाद एफपीआई ने रुपये में जारी 47,312 करोड़ रुपये मूल्य के शेयरों की बिकवाली की। उनके नजरिये में यह बदलाव फेडरल रिजर्व के कारण आया। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नीतिगत दरों में पिछले कुछ समय से कोई बदलाव नहीं किए हैं मगर फेडरल रिजर्व के रुख और मुद्रास्फीति दर नियंत्रण से बाहर जाते देख उसके पास दरें अधिक समय तक अपरिवर्तित रखने या मुद्रा आपूर्ति में ढील देने की गुंजाइश नहीं रह गई है।
अच्छी बात यह है कि देश की अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही है। कोविड महामारी के स्तरों (2019-20) की तुलना में अधिकांश क्षेत्रों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। सामान्य धारणा यह है कि भारत सर्वाधिक तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। सरकार ने आधारभूत ढांचा विकास और घरेलू रक्षा विनिर्माण एवं खरीद पर विशेष ध्यान दिया है, जिससे अर्थव्यवस्था को अपनी गति बनाए रखने में काफी मदद मिली है।
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इस्पात, सीमेंट एवं अन्य औद्योगिक धातुओं की खपत और बिजली की मांग बढ़ने से देश के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों (कोर सेक्टर) को ताकत मिल रही है। इन क्षेत्रों और रक्षा एवं विनिर्माण क्षेत्रों के शेयरों का प्रदर्शन भी दमदार रहा है। निजी उपभोग एवं निवेश भी बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। पूंजीगत वस्तु विनिर्माताओं का कारोबार पूरी रफ्तार से बढ़ रहा है और वाहनों की बिक्री में भी इजाफा हो रहा है। इनके अलावा खुदरा ऋण और नए आवास ऋणों की मांग भी बढ़ी है और क्रेडिट कार्ड से अधिक खरीदारी हो रही है।
आने वाले त्योहार महत्त्वपूर्ण होंगे क्योंकि इस दौरान उपभोक्ता बढ़-चढ़ कर खर्च करते हैं। मॉनसून अवश्य उतार-चढ़ाव वाला रहा है। कुछ क्षेत्रों में बेमौसम बारिश हुई है तो कुछ दूसरे क्षेत्रों में कम बारिश हुई है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में उत्साह थोड़ा फीका रह सकता है। मगर चुनाव से जुड़े खर्च व्यय बढ़ने से लोगों की जेब में कुछ रकम आने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
आशावादी दृष्टिकोण रखने वाले यह उम्मीद करेंगे कि ब्याज दरें इस हद तक बढ़ चुकी हैं कि इसमें बढ़ोतरी की और गुंजाइश नहीं है और राजनीतिक अनिश्चितता भी क्षणिक ही है। मगर कुछ ऐसे लोग भी होंगे जिन्हें लग सकता है चीन का रियल एस्टेट क्षेत्र बिखरा तो इसके बड़े प्रभाव दिखेंगे। बाजार में उतार या चढ़ाव भी दिख सकता है। जो भी हो, आम चुनाव होने तक परिस्थितियां निश्चित रूप से अनिश्चितता भरी रहेंगी।