इस माह के आरंभ में उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने विपक्षी इंडिया गठबंधन को जीत हासिल हुई थी। इस सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह को जीत मिली जो राजपूत हैं। घोसी सीट पर उपचुनाव इसलिए हुए कि वहां के विधायक रहे दारा सिंह चौहान जो अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं, उन्होंने समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।
दारा सिंह इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। अधिकांश विश्लेषकों का मानना था कि मतदाताओं ने चौहान को दंडित किया है क्योंकि उनमें पार्टी बदलने की प्रवृत्ति रही है।
परंतु सुधाकर सिंह चुनाव जीतने में दोस्तों और दुश्मनों दोनों से थोड़ी मदद मिली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आलोचक (हां, उनके भी आलोचक हैं) कहते हैं कि भाजपा ने तीन चीजें कीं।
पहला, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के स्थानीय बाहुबली ठेकेदार और कारोबारी ठाकुर उमाशंकर सिंह ने बसपा को समझाया कि वह सुधाकर सिंह के खिलाफ प्रत्याशी न उतारे और चौहान को ‘गद्दारी’ की सजा दे। दारा सिंह चौहान पहले भाजपा में थे और 15वीं लोकसभा के चुनाव में वह घोसी सीट से पार्टी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, हालांकि बाद में उन्होंने पाला बदल लिया था। मायावती ने उन्हें कभी माफ नहीं किया।
यानी दलितों ने खुलकर सुधाकर सिंह के पक्ष में मतदान किया। इसके अलावा सुधाकर सिंह को स्थानीय ठाकुरों का भी पूरा समर्थन था जो पिछड़ा वर्ग के चौहान को हराना चाहते थे। इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं कि मुस्लिमों ने बड़ी तादाद में सपा के पक्ष में मतदान किया। परंतु वास्तविक समर्थन तो स्वयं भाजपा की ओर से आया।
पार्टी के एक कार्यकर्ता ने कहा, ‘प्रधान क्षत्रिय ने अपना पूरा समर्थन सुधाकर सिंह के पीछे लगा दिया ताकि दिल्ली को दिखा सकें कि उत्तर प्रदेश का असली बॉस कौन है।’ वह योगी आदित्यनाथ की बात कर रहे थे।
आप सवाल कर सकते हैं कि एक विधानसभा चुनाव को लेकर इतना हो-हल्ला क्यों? लेकिन यह ऐसी राजनीति का उदाहरण है जहां हारने वाला (भाजपा) भी विजेता (मुख्यमंत्री) हो सकता है।
उनके आलोचक भी इस बात पर सहमत हैं योगी आदित्यनाथ के अधीन उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध कम हुए हैं। यह सच है कि आज भी प्रदेश में बलात्कार, चोरी और हत्या जैसे अपराध हो रहे हैं लेकिन अपहरण, फिरौती और अतिक्रमण के मामलों में काफी कमी आई है।
उत्तर प्रदेश के माफिया मोटे तौर पर छोटे मोटे बाहुबली थे जिन्होंने सरकारी ठेके हासिल करके और खराब निर्माण आदि करके समृद्धि हासिल की। उन्होंने अपने मुनाफे को दोबार निवेश करके अपना कारोबार बड़ा किया। इनमें से कई ने रॉबिनहुड जैसी छवि बना ली और राजनीति में आ गए।
आदित्यनाथ के अधीन उनके साम्राज्य को जमींदोज कर दिया गया। इसमें मुख्यमंत्री ने धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया। जब लोगों ने देखा कि अमीरों और रसूखदार लोगों के बंगले ढहाए जा रहे हैं तो उन्हें एक किस्म की मजबूती का अहसास हुआ और आदित्यनाथ की लोकप्रियता बढ़ी।
परंतु इसका अर्थ यह भी था कि अफसरशाही, पुलिसकर्मी और निचले स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं को पता लग गया कि मुख्यमंत्री का ध्यान किस प्रकार आकृष्ट करना है। प्रशासन के निचले स्तर पर बुलडोजर चलने का खतरा बहुत बढ़ गया। चूंकि अफसरशाही पर आदित्यनाथ की पकड़ हे इसलिए उनके करीबी अधिकारियों ने कद भी मजबूत हुआ। उन्हें अपने प्रभाव का अहसास है। इससे दूसरों में नाराजगी पैदा हुई।
परंतु आदित्यनाथ ने दिखाया है कि प्रशासन की बात आने पर वह झुकने वाले नहीं हैं। केंद्र सरकार की कल्याण योजनाएं बिना किसी चूक के चल रही हैं। बल्कि इस योजना के कारण अनाज को बाजार तक में बेचा जा रहा है। प्रदेश में निवेश बढ़ रहा है और प्रशासन भी मांगें पूरी कर रहा है। डेटा सेंटर को लेकर सरकार के जोर को ही देखते हैं।
इस वर्ष के आरंभ में उत्तर प्रदेश निवेश सम्मेलन के दौरान एक निवेशक ने कहा था कि प्रदेश के विनिर्माण कानून यह इजाजत नहीं देते कि बिना खिड़कियों की इमारतें बनाई जाएं। कुछ ही दिन में इस प्रावधान को बदल दिया गया। छोटे कस्बों और गांवों में कल्याण योजनाएं स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार दे रही हैं। शायद यह भी एक वजह है कि प्रवासी श्रमिक शहरों में रोजगार की तलाश में जाने के बजाय अपने ही क्षेत्र में रुक रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने ढेर सारी अधोसंरचना परियोजनाओं की शुरुआत की थी। योगी आदित्यनाथ ने इसे आगे बढ़ाया। निश्चित रूप से कुछ चूकें भी हुईं। उदाहरण के लिए 2022 में अमेरिका के ऑस्टिन विश्वविद्यालय के साथ 42 अरब डॉलर का समझौता ज्ञापन, जिसके बारे में अमेरिका के सवाल उठाने पर स्पष्टीकरण दिया गया कि वह दरअसल ऑस्टिन कंसल्टिंग ग्रुप के साथ किया गया था।
अमेरिका ने साफ किया था कि इस नाम का कोई विश्वविद्यालय और छात्र वहां नहीं हैं। परंतु मोटे तौर पर आदित्यनाथ सरकार विकास की एक रणनीति लागू करने का प्रयास कर रही है। नोएडा के तर्ज पर इस माह बुंदेलखंड औद्योगिक विकास प्राधिकरण का निर्माण होने के बाद माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े इलाके में नई जान आएगी। ऐसी कई अन्य पहल भी की जा रही हैं।
राजनीतिक तौर पर देखें तो मुख्यमंत्री के कुछ ही विरोधी हैं। गोरखपुर मठ मूल रूप से हिंदू महासभा द्वारा नियंत्रित था। मठ के पिछले दो महंत दिग्विजयनाथ और अवेद्यनाथ गोरखपुर में जनसंघ/भाजपा की राजनीतिक योजनाओं में शामिल नहीं थे।
मठ पर अपने नियंत्रण वाले वर्षों में आदित्यनाथ ने शायद ही कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम लिया हो, हालांकि संगठनों के परिसर की दीवार साझा थी। वह गोरखपुर में हिंदू युवा वाहिनी का संचालन करते थे जो अब उत्तर प्रदेश प्रशासन में समाहित हो गई है। रामजन्मभूमि आंदोलन के साथ मठ भाजपा के करीब आया लेकिन तब भी आरएसएस के नहीं। हाल के दिनों में खासकर 2017 से योगी और आरएसएस करीब आते नजर आए हैं। रिश्तों में यह गर्माहट आरएसएस की ओर से अधिक दिख रही है। लेकिन आज भी उत्तर प्रदेश सरकार आरएसएस के सारे अनुरोध नहीं मानती।
योगी आदित्यनाथ अपनी मर्जी के मालिक हैं। घोसी उपचुनाव यही दिखाता है। भविष्य के गर्भ में क्या है यह कोई नहीं जानता।