सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी रणदीप अरोड़ा ने जब रुपये ऑनलाइन ट्रांसफर करने की कोशिश की तो उन्होंने पाया कि उनका बैंक खाता ‘ग्राहक को जानें (केवाईसी)’ मानक का ‘अनुपालन’ न होने के कारण फ्रीज कर दिया गया है। यानी वह अपने खाते से रुपये नहीं निकाल सकते थे। वह 30 वर्षों से बैंक के ग्राहक थे और पहले वेतन खाता तथा बाद में पेंशन खाते के रूप में वह उसी खाते का इस्तेमाल कर रहे थे।
जब बैंक के पास उनका पेंशन पेमेंट ऑर्डर, आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि सब कुछ मौजूद था तो उनके धन को अवैध तरीके से रोककर उन्हें एक तरह से परेशान ही किया जा रहा था। उन्हें केवाईसी अद्यतन कराने के बारे में कोई पूर्व सूचना भी नहीं दी गई थी।
एक शाम जब इरफान खान नाम के एक व्यक्ति ईंधन खरीदने गए तो उन्होंने पाया कि उन्हें पहले कोई सूचना दिए बगैर ही उनका डेबिट कार्ड ब्लॉक कर दिया गया है। खान को पता चला कि ऐसा ‘केवाईसी अनुपालन’ नहीं करने की वजह से किया गया है। उनका मानना है कि उन्होंने कुछ ही वर्ष पहले केवाई अद्यतन कराया था।
उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देश पढ़े और पाया कि ऐसा कोई भी कदम उठाने के पहले बैंक को उन्हें लिखित सूचना देनी चाहिए। अगले दिन जब वह अपने केवाईसी दस्तावेजों के साथ बैंक प्रबंधक से मिलने गए तो उसने उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी कि आखिर उनका खाता क्यों फ्रीज किया गया। इसी तरह राहुल सिंह ने जब केनरा बैंक के अपने खाते से एक चेक जारी किया और वह बाउंस हो गया तब उनको पता चला कि उनका बैंक खाता फ्रीज कर दिया गया है। वह जोर देकर कहते हैं कि उन्होंने बैंक में केवाईसी दस्तावेज जमा किए थे लेकिन बैंक ने उसे कोर बैंकिंग सॉफ्टवेयर में अपडेट नहीं किया।
निरंजन मोदी जब अपने ऐक्सिस बैंक खाते से रुपये ट्रांसफर करने में नाकाम रहे तब उन्हें पता चला कि पत्नी के साथ उनका संयुक्त खाता फ्रीज कर दिया गया क्योंकि उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी का केवाईसी अपडेट लंबित था।
ये मामले (सभी नाम बदले हुए) उन हजारों मामलों में से कुछ हैं जो हर रोज अपना ही धन इस्तेमाल नहीं कर पाते क्योंकि बैंकों ने उनके खाते फ्रीज कर दिए हैं।
अक्सर बैंक अधिकारी बिना नोटिस या अनुपालन के लिए पर्याप्त समय दिए केवाईसी को दोबारा जमा न करने के मामलों में लोगों पर इस तरह का दंड थोप देते हैं। ऐसे एकतरफा ढंग से खातों को फ्रीज करना स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन, ऋण अदायगी, क्रेडिट कार्ड के भुगतान या बिल भुगतान आदि को बुरी तरह प्रभावित करता है। पेंशन के सहारे जीवन यापन करने वाले वरिष्ठ नागरिक बिना किसी गलती के निरुपाय रह जाते हैं। एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि हम यह मानते हैं कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय ने बैंकों को यह अधिकार दिया है कि वे केवाईसी दस्तावेज अद्यतन न कराने वाले ग्राहकों के खाते फ्रीज कर सकते हैं।
परंतु अब जो जानकारी सामने आ रही है कि न तो बैंकों और न ही रिजर्व बैंक को ऐसा करने का अधिकार है। दरअसल रिजर्व बैंक ने बैंकों तथा रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित अन्य संस्थानों के ग्राहक सेवा मानकों को लेकर केंद्रीय बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर बी पी कानूनगो की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसने बैंक ग्राहकों की समस्याएं दूर करने के बारे में बेहतरीन अनुशंसाएं कीं।
उसी रिपोर्ट में समिति कहती है, ‘समिति के सामने ऐसे मामले आए हैं जहां कुछ बैंकों ने खाताधारक द्वारा समय पर मांगे गए केवाईसी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करने पर खाते का संचालन रोक दिया…, हालांकि नियम इसकी वकालत नहीं करते। कई मामलों में तो खाता धारकों द्वारा जारी किए गए चेक को भी नकार दिया गया।’
इस बात ने हमें अवाक कर दिया। इस पूरी अवधि में बैंक यह दलील देकर लोगों के बैंक खाते फ्रीज करते रहे कि हमें अपनी पहचान के प्रमाण बैंक को बारंबार पेश करने होंगे ताकि बैंकों का दुरुपयोग धनशोधन या वित्तीय धोखाधड़ी के लिए न किया जाए। वहीं बैंक कहते हैं कि रिजर्व बैंक के निरीक्षक उन्हें परेशान करते हैं कि उन्होंने केवाईसी न होने की स्थिति में ग्राहकों के खाते फ्रीज क्यों नहीं किए? अब हमें बताया जा रहा है कि ऐसा करना गैर कानूनी है।
रिजर्व बैंक ने कानूनगो समिति की रिपोर्ट पेश की है और 7 जुलाई तक जनता से इसकी अनुशंसाओं पर टिप्पणियां और प्रतिपुष्टि आमंत्रित की है। उसके बाद इसे अपनाने या न अपनाने का निर्णय लिया जाएगा। परंतु एक ऐसे मामले को लेकर 7 जुलाई तक प्रतीक्षा क्यों करना जिसके बारे में रिजर्व बैंक पहले ही जानता है कि बैंकों द्वारा खातों को फ्रीज करना अवैध है और यह ग्राहकों को बहुत प्रताड़ित करता है।
आज ही बैंकों को यह निर्देश क्यों नहीं दे दिया जाता कि वे केवाईसी अपडेट के नाम पर खाते फ्रीज करना बंद करें? यकीनन रिजर्व बैंक बहुत पहले कदम उठा सकता था। जनवरी 2021 में जब मेरे एक सहकर्मी ने सूचना के अधिकार के तहत खाते फ्रीज करने को लेकर जानकारी मांगी थी तो रिजर्व बैंक की ओर से जवाब मिला था, ‘हमने इस विषय में कोई विशेष निर्देश जारी नहीं किए हैं।’
उसके दिशानिर्देशों में बैंकों से ग्राहकों की पहचान की प्रक्रिया को लेकर खास निर्देशों का पालन करने को कहा गया है। इसक बावजूद रिजर्व बैंक, दूसरे बैंकों द्वारा लोगों को इस प्रकार परेशान करने को लेकर लापरवाह बना हुआ है। इसके लिए धनशोधन रोकने को वजह बनाया जा रहा है जबकि अपराधी और धोखाधड़ी करने वाले ऐसा लगातार कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि समिति की रिपोर्ट ऐसे लगभग सभी मामलों से निपटती है जो ग्राहकों की दिक्कतों से ताल्लुक रखते हैं।
रिपोर्ट यह स्वीकार करती है कि बैंकों की एकतरफा आंतरिक लोकपाल व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है। उसने बैंकों की जवाबदेही बढ़ाने की मांग भी की है, खासकर तब जब बार-बार शिकायतें आ रही हैं। कई मामलों में रिजर्व बैंक ने सामान्य निर्देश जारी किए हैं और बैंकों को अपने हिसाब से उनका क्रियान्वयन करने को कहा है। इससे ग्राहकों की दिक्कत बढ़ जाती है क्योंकि परिभाषा में काफी अंतर रहता है।
ऐसे निर्देशों की जगह मानक परिचालन प्रक्रिया पेश करनी चाहिए, खासकर नामांकन और उत्तराधिकार के मामलों में। समिति यह भी कहती है कि तकनीक की राह दोतरफा होनी चाहिए और नए खाते और सेवाएं ऑनलाइन शुरू किए जा सकते हैं तो बंद करने की प्रक्रिया भी ऑनलाइन होनी चाहिए। एक जानेमाने उद्योगपति ने मुझसे कहा था कि खाते बंद करना इतना जटिल है कि वह थोड़ा सा धन खाते में रहने देते हैं और उसे भूल जाते हैं। आशा है समिति की रिपोर्ट का क्रियान्वयन इस तरह होगा कि बैंक ग्राहकों की ऐसी तमाम दिक्कतें दूर हों। (लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक हैं)