अगले कुछ दिनों में एयर इंडिया की उड़ान171 की दुर्घटना पर प्रारंभिक रिपोर्ट आने की उम्मीद है। इस रिपोर्ट में कुछ ठोस बातें सामने आ सकती हैं या शायद नहीं भी। मगर 12 जून को अहमदाबाद में हुए इस हादसे के कारणों पर जब तक अंतिम रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक लोगों के मन में बैठे डर को दूर करना मुश्किल साबित होगा। अहमदाबाद हवाई अड्डे से उड़ान भरने के कुछ सेकंड बाद ही यह विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसमें सवार 241 लोग मारे गए। जिस परिसर में यह विमान गिरा वहां भी इस दुर्घटना की चपेट में आकर 34 लोग मारे गए। लाखों लोगों ने टेलीविजन पर विमान को आग के गोले में बदलते देखा जिसके बाद उनके मन में हवाई यात्रा करने को लेकर एक अजीब भय समा गया है। इस दुर्घटना की वास्तविक वजह सामने आने के बाद ही न केवल दोषियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी बल्कि भविष्य में विमानन सुरक्षा के लिए उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा तय हो सकेगी। फिलहाल स्थिति साफ नहीं है।
सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर इस दुर्घटना के पीछे साजिश की आशंका भी जताई जा रही है। दुर्घटना के तुरंत बाद ब्लैक बॉक्स ठीक-ठाक स्थिति में मिलने के बावजूद अभी तक कोई आधिकारिक संकेत नहीं मिलने से स्थिति और पेचीदा हो गई है। खबरों के अनुसार दुर्घटनाग्रस्त विमान में दो ब्लैक बॉक्स थे जिनमें एक 13 जून को और दूसरा 16 जून को बरामद किया गया था। देश के भीषणतम विमान हादसों में एक इस दुर्घटना के कारणों को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इनमें तोड़फोड़ से लेकर दोषपूर्ण सीट विन्यास, पायलट की गलती से लेकर इंजन की खराबी आदि की आशंका जताई जा रही है। हालांकि, बताया जा रहा है कि दुर्घटना के कारणों को दर्शाने वाली ये सामग्री आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से तैयार की गई हैं और फर्जी हैं।
ब्लैक बॉक्स को लेकर भी कुछ अनसुलझे सवाल हैं, खासकर इसके रिकॉर्डर में कैद डेटा के विश्लेषण को लेकर। ब्लैक बॉक्स से दुर्घटना के कारणों तक पहुंचा जा सकेगा इसलिए इसके डेटा का विश्लेषण कहां हो रहा है यह भी चर्चा का एक विषय है। दुर्घटना के एक सप्ताह बाद नागर विमानन मंत्रालय ने कहा था कि उसी के अंतर्गत आने वाला विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) यह तय करेगा कि डेटा का विश्लेषण कहां किया जाए। जब ब्लैक बॉक्स अमेरिका भेजे जाने की खबरें आईं तो अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि डेटा का विश्लेषण भारत में ही हो रहा है। तो क्या इस पर सरकार का इरादा बदल गया था और ऐसा हुआ था तो क्यों? इस समाचार पत्र में हाल ही में प्रकाशित एक खबर में कहा गया कि अगस्त 2020 में कोझिकोड हवाई दुर्घटना के बाद एक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिया गया था कि भारत को उड़ान डेटा और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (ब्लैक बॉक्स) का विश्लेषण करने के लिए अपनी प्रयोगशाला तैयार करनी चाहिए। केरल के कोझिकोड में दुबई से आ रहा एयर इंडिया एक्सप्रेस का एक विमान भारी बारिश में उतरते समय हवाई पट्टी (रनवे) से आगे निकल गया और इस दुर्घटना में 21 लोगों की मौत हो गई थी। अप्रैल 2025 में अहमदाबाद विमान दुर्घटना से लगभग दो महीने पहले तथा कोझिकोड दुर्घटना के पांच साल बाद एक ब्लैक बॉक्स प्रयोगशाला (एएआईबी के हिस्से के रूप में) का उद्घाटन किया गया था। ब्लैक बॉक्स का कहां विश्लेषण किया जाएगा इस बारे में भ्रम की स्थिति ने इस प्रयोगशाला की दक्षता पर सवालिया निशान लगा दिया है। नई दिल्ली में एएआईबी की स्थापना के लगभग 13 साल बाद यह प्रयोगशाला अस्तित्व में आया था।
विमानन उद्योग से जुड़े लोगों का दावा है कि उन्होंने इस बात का अच्छा-खासा अंदाजा लगा लिया है कि अहमदाबाद विमान दुर्घटना की क्या वजह रही होगी। प्रारंभिक रिपोर्ट दुर्घटना के एक महीने के भीतर यानी 12 जुलाई से पहले आनी चाहिए मगर कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ब्लैक बॉक्स डेटा का पहले ही विश्लेषण किया जा चुका है तो इतनी देर तक इंतजार करने का कोई कारण नहीं है।
यह स्थिति हमें संकट के दौरान संचार के महत्त्व की तरफ खींच लाती है। दुर्घटना के बाद शुरुआती दिनों में एयर इंडिया को अधिक संवाद नहीं करते देखा गया। टाटा संस एवं एयर इंडिया के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने एक मीडिया साक्षात्कार में माना कि संवादहीनता की स्थिति रही है मगर यह भी कहा कि इसे सुधारने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। इसके तुरंत बाद एयर इंडिया के मुख्य कार्यकारी एवं प्रबंध निदेशक कैंपबेल विल्सन ने यात्रियों को ई-मेल भेजे जिनमें उड़ानों के रद्द होने के कारण बताए गए और उनके मन में बैठे डर को भी दूर करने के भी प्रयास किए गए। खबरों के मुताबिक चंद्रशेखरन दुर्घटना के बाद स्वयं अधिक सक्रिय हो गए हैं जिनमें उनका ज्यादातर ध्यान संवाद (आंतरिक और बाहरी) पर है।
बहरहाल, मामला केवल एयर इंडिया तक ही सीमित नहीं है। पिछले एक महीने में भारत में विमानों के मार्ग परिवर्तन, विमानों के आपात स्थिति में उतरने और दुर्घटनाएं होने से बाल-बाल बचने की कई घटनाएं सामने आई हैं। एक साथ ये सभी बातें पहले कभी नहीं हुई थीं। कारण चाहे दोषपूर्ण रोस्टरिंग, पायलटों के मन में भय या तकनीकी गड़बड़ी, जो भी हों मगर अब नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) को विमानन क्षेत्र में सबसे अधिक हवाई सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। कोई बड़ी दुर्घटना होने के बाद प्रतिक्रियात्मक कदम उठाने के बजाय यात्रियों की सुरक्षा और भारत में एक सुगम विमानन प्रणाली विकसित करना उसकी शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए। इसी तरह, संकट के समय में प्रभावी संचार को ड्रिल का हिस्सा बनाना भी एक अच्छा विचार हो सकता है। देश में विमानन क्षेत्र तेजी से प्रगति कर रहा है। डीजीसीए के अनुसार घरेलू हवाई यात्री यातायात 2014 में लगभग 6.7 करोड़ से बढ़कर 2024 में 16.1 करोड़ हो गया। इस रफ्तार को देखते हुए प्रशिक्षित और अनुभवी मानव संसाधन (जिसमें पायलट और इंजीनियर शामिल हैं) की आवश्यकता के साथ तालमेल स्थापित नहीं हो पा रहा है। हवाई दुर्घटना पर सीधे टिप्पणी करने से बचते हुए विमानन क्षेत्र के विशेषज्ञ नियामकीय निगरानी के बड़े एवं महत्त्वपूर्ण मुद्दे को उठा रहे हैं। निगरानी के स्तर पर महत्त्वपूर्ण सुधार करने की आवश्यकता है।
हाल में हुई हवाई दुर्घटना और उसके बाद कई छोटी-बड़ी घटनाओं के बाद ब्रिटेन की तरह भारत में भी संसद में कानून बना कर एक स्वायत्त विमानन नियामक का गठन किया जाना चाहिए। हालांकि, इस नियामक के गठन के बाद नागर विमानन मंत्रालय की भूमिका कम हो जाएगी।