बिहार में हाल में हुए विधानसभा चुनावों के परिणामों का विश्लेषण करते हुए पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हम नतीजा स्वीकार करते हैं। हम बिहार में अपने प्रदर्शन को लेकर निराश हैं। कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) उचित समय पर इसकी समीक्षा करेगी और हमारे रुख को लेकर एक आधिकारिक बयान जारी करेगी…मेरा मानना है कि 10 सीट इधर से उधर होने से सरकार बदल जाती।’ बिहार में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन वह 19 पर ही जीत दर्ज कर सकी। इस तरह वह अपने साथ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को भी नीचे ले लाई, जिससे तेजस्वी यादव को सरकार बनाने का मौका नहीं मिल सका।
जी23 के एक सदस्य चिदंबरम के इस स्पष्टवादी रुख को लेकर उदासीन थे। जी23 नाम इसलिए क्योंकि इस साल की शुरुआत में कांग्रेस के 23 नेताओं के एक समूह ने पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग को लेकर पार्टी आलाकमान को एक पत्र लिखा था। उन्होंने कहा, ‘वर्ष 2014, 2019 और अन्य चुनावों में हमारी हार की कोई समीक्षा नहीं हुई। ऐसे में इस बार कुछ अलग क्यों होना चाहिए?’
पार्टी बिहार में पिछले कई वर्षों में कभी सत्ता के इतने नजदीक नहीं आई थी, जितनी इस बार आई। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, ‘ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने पांच सीटें जीती हैं। भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए उसे हमें समर्थन देने के लिए थोड़ा सा मनाने की जरूरत होती। थोड़ी सी और मेहनत करने की जरूरत थी। ऐसे में क्या यह कांग्रेस की कहानी बनने जा रही है? हमेशा का अफसोस?
जी23 की मांग
उनका कहना है कि जब जी23 ने अगस्त में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सक्रिय और ‘पूर्णकालिक’ कांग्रेस अध्यक्ष की मांग की थी तो वे गांधी परिवार के नेतृत्व करने की वैधता या अधिकार पर सवाल नहीं उठा रहे थे। इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक और जम्मू-कश्मीर क पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘इसका मकसद कांग्रेस को सक्रिय और मजबूत बनाना है। लेकिन जिन्हें ‘नियुक्ति पत्र’ मिल गए, वे लगातार हमारे प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों के चुनाव में क्या नुकसान है, जिनकी पार्टी में निश्चित अवधि होगी।
नेतृत्व की तरफ से प्रतिक्रिया नाराजगीभरी थी। एक प्रस्ताव में कहा गया, ‘कांग्रेस कार्यसमिति यह साफ कर देती है कि इस समय किसी भी व्यक्ति को पार्टी और उसके नेतृत्व को कमजोर करने की मंजूरी नहीं दी जाएगी।’ लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति ने यह भी फैसला किया है कि चुनाव छह महीने के भीतर कराए जाएंगे। आजाद ने कहा, ‘दरअसल, राहुल और सोनिया गांधी ने कहा कि चुनाव एक महीने के भीतर कराते हैं, लेकिन हमने कहा कि यह संभव नहीं है। इसलिए यह हमारी जीत है कि छह महीने बाद हमें पूर्णकालिक अध्यक्ष मिल जाएगा।’ इस छह महीने की अवधि में से तीन महीने निकल गए हैं। मगर चुनाव तो छोडि़ए, हाल फिलहाल अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र की किसी योजना का ही कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है।
सदस्यों का चयन
जी23 के एक सदस्य ने कहा, ‘विधानसभा चुनावों में आप बाहरी नेताओं के जिम्मे सब कुछ नहीं छोड़ सकते। स्थानीय नेताओं को जमीनी हकीकत की बेहतर जानकारी होती है। उन्हें उम्मीदवारों और अभियान का फैसला लेने की आजादी दी जानी चाहिए। बिहार में स्थानीय नेतृत्व मामूली नजर आता था।’
कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला हरियाणा से आते हैं। उन्हें बिहार में चुनाव का अहम प्रभार दिया गया था। संयोजक मोहन प्रकाश उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। बिहार के कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री शकील-उज-जमां अंसारी को एक सदस्य बनाया गया। लेकिन नतीजों के बाद उन्होंने कहा, ‘हमने स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन अविनाश पांडेय को सही उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया।’ पांडेय बिहार के हैं, मगर उनका राजनीतिक कार्यक्षेत्र महाराष्ट्र रहा है। कांग्रेस ने माना कि उसने तगड़ी सौदेबाजी की और वह 70 सीटें लेने में कामयाब रही। लेकिन इन 70 सीटों में से कम से कम 20 ऐसी थीं, जहां कांग्रेस पिछले कई दशकों में जीतने में नाकाम रही थी। इनमें नालंदा, वैशाली और मुजफ्फरपुर शामिल हैं। इसके अलावा सीमांचल में पार्टी की सीटों में भारी गिरावट आई है, जहां पहले उसकी तगड़ी मौजूदगी थी। इसके बजाय मुस्लिम बहुल इलाकों में एआईएमआईएम जीतने में कामयाब रही।
जी23 मायूस और चिंतित है। गुलाम नबी आजाद के राज्य सभा से फरवरी 2021 में सेवानिवृत्त होने और पार्टी संस्थाओं में धीरे-धीरे बदलाव से बगावत जारी रहेगी क्योंकि अब आगे पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु में चुनाव होंगे। नेताओं का कहना है कि आलाकमान को यह फैसला लेना होगा कि वह पार्टी को कहां ले जाना चाहता है।