राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा मंगलवार को जारी किए गए राष्ट्रीय आय के आंकड़ों की कई वजहों से प्रतीक्षा थी। इन अनुमानों में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2022) के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुमान शामिल हैं।
चालू वित्त वर्ष की दो आरंभिक तिमाहियों के सालाना वृद्धि के आंकड़े कमजोर आधार के कारण प्रभावित हुए थे क्योंकि 2021-22 की पहली छमाही में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया महामारी की दूसरी लहर से बाधित हुई थी। ऐसे में तीसरी तिमाही के आंकड़ों से अर्थव्यवस्था की वास्तविक शक्ति की झलक मिलने की उम्मीद थी।
ज्यादातर विश्लेषकों का अनुमान था कि वृद्धि के आंकड़े पहली और दूसरी तिमाही के आंकड़ों से कमजोर रहेंगे। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में इस तिमाही में 4.4 फीसदी वृद्धि हुई जो भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों के अनुरूप थी।
इसके अलावा जारी किए गए आंकड़ों में 2022-23 में राष्ट्रीय आय के दूसरे अग्रिम अनुमान भी शामिल थे जिनमें जीडीपी वृद्धि दर को 7 फीसदी बताया गया। इसके अलावा पिछले वर्षों के वृद्धि के आंकड़ों को भी संशोधित करके सुधारा गया।
उदाहरण के लिए 2021-22 की पूरे वर्ष की वृद्धि को संशोधित करके 9.1 फीसदी कर दिया गया जबकि पिछला अनुमान 8.8 फीसदी का था। 2020-21 की वृद्धि को संशोधित करके 5.8 फीसदी ऋणात्मक बताया गया जबकि इससे पहले का अनुमान 6.6 फीसदी ऋणात्मक था।
इससे संकेत मिलता है कि कोविड वाले वर्ष में गिरावट का स्तर पिछले अनुमानों से कम रहा और बाद के वर्षों में मजबूत सुधार दिखाई दिया। विभिन्न क्षेत्रों की बात करें तो कृषि, वानिकी और मछलीपालन आदि ने महामारी के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया था और इनमें 3.7 फीसदी की वृदि्ध होने का अनुमान है जबकि गत वर्ष की समान तिमाही में यह दर 2.3 फीसदी थी।
रोजगार के लिए अहम विनिर्माण क्षेत्र में इस तिमाही के दौरान 1.1 फीसदी गिरावट आने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष की समान तिमाही में 1.3 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई थी। इस बीच तिमाही के दौरान निजी खपत में केवल 2.1 फीसदी की वृद्धि हुई जो चिंताजनक है।
सकल स्थायी पूंजी निर्माण बढ़कर 8.3 फीसदी हो गया जो उत्साहवर्धक है लेकिन खपत समर्थन के अभाव में वृद्धि निष्फल हो सकती है।
अब जबकि दूसरे अग्रिम अनुमानों में 2022-23 की वृद्धि दर को 7 फीसदी पर अपरिवर्तित रखा गया। इसे गत वित्त वर्ष के कमजोर आधार से भी मदद मिली।
प्रश्न यह है कि 2023-24 में वृद्धि की तस्वीर कैसी होगी? केंद्रीय बजट में 10.5 फीसदी की नॉमिनल वृद्धि का अनुमान लगाया गया। आर्थिक समीक्षा में 6 से 6.8 फीसदी की वृद्धि का अनुमान जताया गया।
चूंकि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था के 5 फीसदी से कम दर से वृद्धि हासिल करने की उम्मीद है इसलिए 2023-24 में छह फीसदी से अधिक की वृद्धि दर हासिल करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।
अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था 2023 में पहले लगाए गए अनुमानों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करेगी लेकिन इसके बावजूद उसमें धीमापन आएगा। मुद्रास्फीति के मोर्चे पर जो हालिया सकारात्मक घटनाक्रम हुआ है उससे संकेत मिलता है कि अभी रिजर्व बैंक को काफी कुछ करना होगा। यानी नीतिगत दरों में आगे और इजाफा हो सकता है तथा वे लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती हैं।
राजकोषीय मोर्चे पर सरकार पहले ही उच्च पूंजीगत व्यय के साथ अर्थव्यवस्था की मदद कर रही है और उसे और अधिक राशि व्यय करने में मुश्किल होगी। नीति निर्माता यदि आने वाले वित्त वर्ष में हस्तक्षेप करते समय इन कारकों को ध्यान में रखें तो अच्छा होगा।