रिलायंस कैपिटल की निस्तारण प्रक्रिया को इस सप्ताह राष्ट्रीय कंपनी लॉ पंचाट की मुंबई शाखा के समक्ष 12 जनवरी को होने वाली अगली सुनवाई तक स्थगित कर दिया गया। पीठ का यह निर्णय न केवल इस मामले से संबंधित पक्षकारों को प्रभावित करेगा बल्कि यह ऋणशोधन निस्तारण प्रक्रिया पर भी असर डालेगा। इस प्रक्रिया पर रोक टॉरंट समूह की आपत्ति के बाद लगाई गई है।
टॉरंट समूह ने रिलायंस कैपिटल के लिए सबसे ऊंची बोली लगाई है। हिंदुजा समूह ने नीलामी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद एक नई पेशकश की थी और टॉरंट समूह ने इस पर आपत्ति की। कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) इस सप्ताह किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकी क्योंकि मामला पहले ही वाद के अधीन है और उसे एनसीएलटी के निर्देशों का इंतजार करना होगा।
हिंदुजा समूह ने अब 9,000 करोड़ रुपये की बोली लगाई है और उसने पूरी राशि का पेशगी भुगतान करने को कहा है। टॉरंट समूह ने रिलायंस कैपिटल के लिए 8,640 करोड़ रुपये के विलंबित भुगतान की बात कही थी। हिंदुजा समूह ने पहले 8,100 करोड़ रुपये की पेशकश की थी। प्रतिस्पर्धी बोली को देखते हुए यह बात समझ में आती है कि कर्जदार हिंदुजा समूह की नीलामी के बाद की पेशकश स्वीकार करें क्योंकि यह न केवल टॉरंट की बोली से ऊंची है बल्कि इसमें पूरा भुगतान पहले ही किया जा रहा है।
चूंकि एनसीएलटी भी चाहेगा कि कर्जदार को अधिक से अधिक वसूली मिले इसलिए वह नीलामी के बाद की बोली पर विचार कर सकता है। हालांकि यहां दो अहम कारक हैं जिन पर निर्णय लेने वाली संस्था और सीओसी को विचार करना होगा।
पहली बात, संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के निस्तारण में गति की अपनी भूमिका है और ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के क्रियान्वयन के पीछे एक कारण यह भी था कि मामलों का जल्दी निपटान किया जाए। अगर एनसीएलटी सीओसी को नीलामी के बाद की बोली पर विचार करने की इजाजत देता है तो इससे प्रक्रिया में देरी होगी और एक गलत नजीर पेश होगी।
हाल ही में खबर आई थी कि सरकार आईबीसी को मजबूत बनाने के लिए संशोधनों पर विचार कर रही है। इस संदर्भ में एक बदलाव तो यही होना चाहिए कि एक बार नीलामी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद बोली न लग सके। इससे गंभीर बोलीकर्ताओं को प्रोत्साहन मिलेगा और वे उचित बोली लगाने को प्रेरित होंगे। रिलायंस कैपिटल के मामले में हिंदुजा समूह नीलामी समाप्त होने के पहले भी अच्छी पेशकश कर सकता था। अगर सभी बोली लगाने वालों को अपनी योजना बार-बार बदलने की इजाजत दी गई तो इससे निस्तारण की अवधि बढ़ेगी और परिसंपत्ति के मूल्य में भी कमी आ सकती है।
दूसरा, यह बात भी ध्यान देने वाली है कि संशोधित बोली भी नकदीकृत मूल्य से काफी कम है। दो मूल्यांकनकर्ताओं की रिपोर्ट के अनुसार रिलायंस कैपिटल का नकदीकृत मूल्य क्रमश: 12,500 करोड़ रुपये और 13,200 करोड़ रुपये है। नकदीकृत मूल्य से कम बोली लगाने में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि बोलीकर्ताओं के बीच मूल्यांकन को लेकर अलग-अलग राय हो सकती है। लेकिन सीओसी बेहतर विकल्प का चयन करके नकदीकरण के लिए आगे बढ़ सकती है।
यह भी देखना होगा कि सीओसी मामले को कैसे देखती है और निर्णय लेने वाले क्या तय करते हैं। बहरहाल सैद्धांतिक तौर पर विचार यह होना चाहिए कि ऋणशोधन प्रक्रिया को जल्दी से जल्दी पूरा किया जाए। वर्तमान हालात के हिसाब से देखें तो प्रक्रिया देरी से भरी हुई है और इसका असर वसूली पर भी पड़ रहा है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि आईबीसी के तहत होने वाली वसूली पारंपरिक तरीकों के ही समान है। आईबीसी को सही प्रोत्साहन के साथ आगे बढ़ाने से समय पर निस्तारण हो सकेगा और पूंजी की क्षति कम करने में मदद मिलेगी।