facebookmetapixel
Groww IPO को मिला शानदार रिस्पॉन्स, 18 गुना से ज्यादा सब्सक्राइबसेबी ने आईपीओ के वैल्यूएशन पर जताई चिंता, छोटे निवेशकों की सुरक्षा के लिए कड़े कदमों की जरूरत बताईशॉर्ट सेलिंग, प्रतिभूति उधारी ढांचे की समीक्षा करेगा सेबीबेहतर रिटर्न के लिए म्युचुअल फंडों का डेरिवेटिव्स पर दांवTata Capital Healthcare Fund -2 ने 95% पूंजी का किया निवेश, फार्मा, हेल्थ-टेक क्षेत्रों में दिखा जबरदस्त भरोसाHexaware ने साइबर सुरक्षा कंपनी साइबरसॉल्व को $6.6 करोड़ में खरीदा, IT कारोबार को मिलेगी नई ताकतBritannia ने बिक्री और उपभोक्ता रणनीति पर लगाया बड़ा दांव, Q2 में मुनाफा 23% बढ़कर ₹654 करोड़ पहुंचाहिंडाल्को का मुनाफा 21% बढ़कर ₹4,741 करोड़ पहुंचा, भारतीय कारोबार से कंपनी को मिली मददQ2 Results: बजाज ऑटो, टॉरंट फार्मा से लेकर डिवीज लैबोरेटरीज तक; किस कंपनी ने Q2 में कितने कमाए?Goldman Sachs ने भारत से रिकॉर्ड 49 प्रबंध निदेशक बनाए, बेंगलूरु बना कंपनी का ग्लोबल टेक हब

बढ़ती असमानता

Last Updated- January 17, 2023 | 6:56 PM IST
Rupee
Shutter Stock

अगर देश में बढ़ती असमानता के ज्यादा प्रमाणों की आवश्यकता थी तो गैर सरकारी संगठन ऑक्सफैम की ताजा वैश्विक संपत्ति रिपोर्ट इसके पुख्ता प्रमाण प्रस्तुत करती है। दावोस में विश्व आर्थिक मंच के शुरुआती दिन जारी की गई इस रिपोर्ट का शीर्षक है: ‘सरवाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी’। यह रिपोर्ट दिखाती है कि न केवल पांच फीसदी भारतीयों के पास देश की कुल संपत्ति का 60 फीसदी हिस्सा मौजूद है बल्कि निचले पायदान पर मौजूद 50 फीसदी आबादी संपत्ति में केवल तीन फीसदी की हिस्सेदार है।

अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि कोविड काल में भी भारत के अमीरों का प्रदर्शन अच्छा रहा और 2020 से 2022 के बीच अरबपतियों की तादाद 102 से बढ़कर 166 हो गई। अध्ययन में अनुमान जताया गया है कि इस अवधि में देश के अरबपतियों की संपत्ति हर मिनट 121 फीसदी यानी करीब 2.5 करोड़ रुपये बढ़ी। ऐसे समय में जब देश मुश्किलों से जूझ रहा था और बेरोजगारी दर ऊंची बनी हुई थी तब यह बढ़ोतरी उल्लेखनीय है।

ऐसे रुझान कारोबारी जगत में भी दिखाई दिए। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने हाल ही में कारोबारी प्रबंधन समूह प्राइम इन्फोबेस का एक विश्लेषण प्रस्तुत किया था जो दिखाता है कि भारत के औसत शीर्ष कार्याधिकारी यानी मुख्य परिचालन अधिकारी, प्रबंध निदेशक तथा वरिष्ठ पदाधिकारी अब मझोले दर्जे के कर्मचारी के औसत वेतन भत्तों की तुलना में 241 गुना आय अर्जित करते हैं।

इतना ही नहीं यह आंकड़ा महामारी के पहले के वर्ष यानी 2018-19 के 191 गुना की तुलना में भी काफी अधिक है। शीर्ष अधिकारियों का औसत वेतन भी वित्त वर्ष 2019 के 10.3 करोड़ रुपये की तुलना में बढ़कर 12.7 करोड़ रुपये हो गया है। इस असंतुलन को लेकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि कॉर्पोरेट भारत अभी भी मोटे तौर पर प्रवर्तकों द्वारा संचालित है और शीर्ष पदों पर अक्सर परिवार के सदस्य तथा रिश्तेदार ही काबिज रहते हैं।

हालांकि कुछ अंशधारकों ने प्रवर्तक-सीईओ के वेतन पैकेज को लेकर विरोध किया है लेकिन भारतीय कंपनियों के बोर्ड की स्थिति को देखते हुए यह उम्मीद करना बेमानी है कि उनके मुखिया टिम कुक की तरह अपने वेतन में 40 फीसदी की कटौती करेंगे।

2022 में कंपनी के शेयरों की कीमत में भारी गिरावट के बाद अंशधारकों ने मतदान किया जिसके पश्चात कुक ने इस वर्ष अपने वेतन में 40 फीसदी की कटौती स्वीकार की है। भारतीय कंपनियों के शीर्ष प्रबंधन में खुद को बेहतर वेतन भत्ते देने की संस्कृति एक नैतिक समस्या का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि हमारे देश में अभी भी गरीबों की तादाद बहुत अधिक है। बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मसले को उठाया था और कंपनियों के सीईओ तथा वरिष्ठ पदाधिकारियों से कहा था कि वे इस पर ध्यान दें।

ऑक्सफैम का अध्ययन संपत्ति कर को दोबारा शुरू करने का सुझाव देता है और इस बात को रेखांकित करता है कि ऐसे अवास्तविक लाभ से किस तरह का सामाजिक निवेश किया जा सकता है। अध्ययन बिना नाम लिए देश के सबसे अमीर व्यक्ति की संपत्ति का उल्लेख करता है और बताता है कि कैसे अगर 2017 से 2021 के बीच उनकी संपत्ति के केवल 20 फीसदी हिस्से पर कर लगाकर प्राथमिक शिक्षा को बहुत बड़ी मदद पहुंचाई जा सकती थी जिसके तमाम संभावित लाभ होते।

यह उपाय तार्किक प्रतीत होता है लेकिन संपत्ति कर के साथ भारत के अनुभव बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। पहली बार यह कर 1957 में लगाया गया था और बड़े पैमाने पर कर वंचना देखने को मिली थी। असमानता कम करने में इससे कोई खास मदद नहीं मिली थी। वर्ष 2016-17 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह कहते हुए इस कर को समाप्त कर दिया था कि इसे जुटाने की लागत इससे होने वाले हासिल से अधिक होती है।

आय और संपत्ति में बढ़ते असंतुलन को दूर करने के उपाय देश की सामाजिक आर्थिक नीति से ही निकाले जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बुनियादी संरचना में निवेश करना। अमीरों पर भारी भरकम कर लगाने से बात नहीं बनेगी क्योंकि वे उसे न चुकाने की पूरी कोशिश करेंगे।

First Published - January 16, 2023 | 10:05 PM IST

संबंधित पोस्ट